इन दिनों बॉलीवुड में असल जिंदगी और वास्तविक लोगों पर बेस्ड फ़िल्म बनाना बहुत लोकप्रिय हो गया है । इस हफ़्ते बॉक्सऑफ़िस पर रिलीज हुई है अक्षय कुमार की फ़िल्म रुस्तम । ये फ़िल्म 1959 नानावटी केस, जो कि एक नौसेना के अधिकारी के.एम. नानावटी की असल जिंदगी की कहानी है, पर आधारित है । इस केस ने भारतीय न्यायिक प्रणाली का पूरा चेहरा बदल कर रख दिया था । क्या रुस्तम बॉक्सऑफ़िस पर चल पाएगी या बिना कई राज खोले डूब जाएगी, आइए विश्लेषण करते हैं ।
फ़िल्म रुस्तम, 1959 के एक आवधिक युग के साथ शुरू होती है, जब मुंबई बॉम्बे हुआ करता था, और उस समय न्याय लेने का काम ज्यूरी मेंबर का होता था न कि किसी जज का । अपनी वर्दी के आदी कमांडर रुस्तम पावरी (अक्षय कुमार) और उनकी प्यारी पत्नी सिंथिया पावरी (इलियाना डिक्रूज़) के परिचय से फ़िल्म की शुरूआत होती है । एक दिन, जब रुस्तम पावरी अपनी ड्यूटी से , अपनी बताई तारीख से पहले अपने घर लौटता है , तो वह हैरान हो जाता है जब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी सिंथिया एक बहुत ही खराब अमीर आदमी विक्रम मखीजा (अर्जन बाजवा) के साथ घर के बाहर चली गई है और दो दिनों से घर नहीं लौटी है । रुस्तम पावरी, गुस्से से आगबबूला हो जाता है और सिंथिया और विक्रम को एक साथ रंगे हाथों पकड़ने के लिए विक्रम के घर पहुंचता है । रुस्तम पावरी अपनी पत्नी के धोखे को बर्दाश्त नहीं कर पाता, इसलिए वह अपनी ऑफ़िस की बंदूक को लोड कर, शैतानी दिमाग वाले विक्रम को गोली मार देता है और उसके बाद विक्रम मर जाता है । हमेशा से ईमानदार और न्यायप्रिय होने के नाते रुस्तम पावरी खुद ही पुलिस स्टेशन जाता है और आत्मसमर्पण कर देता है । जब विक्रम मखीजा की मौत की खबर ‘ऊंची पहुंच’ रखने वाली उसकी बहन प्रीती मखीजा के कानों तक पहुंचती है , तो वो अपने भाई की मौत का बदला लेने की कसम खाती है । जैसे ही ये केस अदालत तक जाता है, तो पता चलता है कि रुस्तम को अपने किए पर कोई मलाल नहीं है । और इसके बाद शुरू होता है हाई वॉल्टेज़ कोर्ट रुम ड्रामा , बदनामी, मीडिया का रोल, और सब कुछ । सभी अंततः एक आम बात के लिए अग्रणी हैं । आखिर इस पूरे केस का क्या निष्कर्ष निकला, क्या रुस्तम पावरी वाकई दोषी हैं या पर्दे के पीछे की सच्चाई कुछ और ही है ?
सबसे पहली बात, रुस्तम अनिवार्य रूप से एक क्राइम थ्रिलर फ़िल्म है । हालांकि फ़िल्म की स्टोरीलाइन में रहस्य या जासूसी कहानी जैसा कुछ भी नहीं है, जैसे-जैसे फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती जाती है प्रीडिक्टेबल होती जाती है । तथ्य सिर्फ़ यही है कि, इस कहानी के ऊपर पहले भी दो फ़िल्में बनाई जा चुकी है । वो दो फ़िल्में थी, सुनील दत्त-लीला नायडू अभिनीत ये रास्ते हैं प्यार के (1963) और दूसरी फ़िल्म है विनोद खन्ना-फ़रीदा जलाल अभिनीत अचानक (1973) । विपुल के रावल, जिसने इस फ़िल्म की पटकथा, कहानी और संवाद लिखें, ने रुस्तम की कहानी को आज के हिसाब से पेश किया है । जब एक फ़िल्म के हीरो अक्षय कुमार होते हैं तो फ़िल्म अपनेआप ही मनोरंजक हो जाती है और दर्शकों को सीट से चिपकाए रखती है । लेकिन रुस्तम में इसकी कमी है । फिल्म की पटकथा न सिर्फ फिल्म की गति को धीमा कर देती है, बल्कि यह बहुत औसत भी है । अगर पटक्था मनोरंजक होती और अच्छी पकड़ रखती तो शायद कहानी कुछ अलग निकलकर आती । फ़िल्म की कहानी विश्वसनीयता और अविश्वसनीयता के बीच झूलती नजर आती है । यद्यपि ये फ़िल्म सुप्रसिद्द केस नानावती केस पर आधारित है , पर इसे और मनोरंजक बनाने के लिए अपना खुद का तड़का भी लगाया गया है । वो लोग, जो इस केस के बारें में नहीं जानते वो निश्चित रूप से रुस्तम को पसंद करेंगे ।
एक निर्देशक के रूप में रुस्तम टीनू सुरेश देसाई (उनकी बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म 1920 लंदन है) की दूसरी फ़िल्म है । एक निर्देशक के रूप में टीनू ने काफ़ी अच्छा काम किया है । जबकि फ़िल्म की नींव फ़िल्म के प्रथम भाग में रखी गई है , मध्यांतर के बाद फ़िल्म में कोर्ट रुम ड्रामा अधिक रूप से छाया हुआ है । हालांकि कई मौको पर फ़िल्म ढीली पड़ जाती है , पर टीनू सुरेश देसाई खत्म होने से पहले-पहले फ़िल्म को वापस पटरी पर लाने में सफ़ल रहे हैं । अदालत के सीन में उनके निर्देशन में कुछ कमजोरी महसूस की जा सकती है । सामान्यरूप से अदालत के सीन काफ़ी ज्यादा नाटकीय ढंग से और भारी-भरकम संवादों से भरे होते हैं, जो कि रुस्तम में पूरी तरह से नदारद हैं । दूसरी तरफ़, स्थितीजन्य हास्य दर्शकों को कुछ हद तक जोड़ने में सफ़ल होता है ।
अभिनय की बात करें तो, इसमें कोई दोराय नहीं की फ़िल्म में अक्षय कुमार, जो इस फ़िल्म की जान हैं, का अभिनय अद्दितीय रहा है । अक्षय कुमार, जो (विविध) फिल्मों के चयन को लेकर अत्यंत बहुमुखी हैं, ने रुस्तम का चयन कर अपने खाते में और एक विशिष्टता को जोड़ लिया है । अक्षय कुमार ने अपने फ़िल्मी करियर में पहली बार एक नौसेना अधिकारी की भूमिका निभाई है । और अक्षय ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हुए एक बेदाग और अनिन्दनीय अभिनय का प्रदर्शन किया है । और फ़िल्म के मुख्य अभिनेता के साथ मेल करते हुए फ़िल्म की अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज़ भी रुस्तम पावरी की पत्नी सिंथिया पावरी की भूमिका में दमदार लगी हैं । ज्यादा अवसर नहीं मिल पाने के बावजूद इलियाना डिक्रूज़ अपने शांत प्रदर्शन से प्रभावित करती हैं । वहीं दूसरी तरफ़ ईशा गुप्ता एक बदला लेने वाली महिला की भूमिका में बेहतर लगीं । अर्जुन बाजवा अपना छोटा रोल होने के बावजूद प्रभावशाली हैं । इसके अलावा दूसरे कलाकार कुमुद मिश्रा (एक अखबार के संपादक की भूमिका में), उषा नाडकर्णी (नौकर के रूप में),सचिन खेडेकर (लोक अभियोजक लक्ष्मण खांगानी के रूप में) और पवन मल्होत्रा (इंस्पेक्टर लोबो के रूप में) फ़िल्म के मजबूत भाग हैं जो फ़िल्म को साथ लेकर चलते हैं ।
इस फ़िल्म का संगीत (अर्को, राघव सच्चर, अंकित तिवारी और जीत गांगुली) बहुत औसत है । फिल्म का छायांकन (संतोष ठुंडीईल) शालीन है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है । श्री नारायण सिंह द्वारा किया गया इस फिल्म का संपादन औसत है ।
कुल मिलाकर, रुस्तम एक बढ़िया क्राइम थ्रिलर फ़िल्म है जो उम्मीदों पर खरी उतरती है । इसमें जहां एक तरफ़ मनोरंजक पल हैं वहीं दूसरी तरफ़ फ़िल्म ढीली-ढाली भी पड़ गई है । बॉक्सऑफ़िस पर, मोहेंजो दारो के मुकाबले ये फ़िल्म कमजोर पड़ सकती है । हालांकि, लंबे वीकेंड के बाद और फ़िल्म के बारें में बोली गईं सकारात्मक बातें, फ़िल्म के लिए फ़ायदेमंद साबित होंगी ।