ढाका (बांग्लादेश), 28 दिसंबर (The News Air): बांग्लादेश में हिंदू विरोधी नीतियों का सिलसिला जारी है। अब प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की सरकार ने हिंदुओं को पुलिस विभाग से पूरी तरह हटाने की दिशा में कदम उठाया है। हाल ही में गृह मंत्रालय और लोक सेवा आयोग ने एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिसमें पुलिस विभाग में हिंदुओं की नियुक्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस आदेश के बाद कांस्टेबल से लेकर डीआईजी स्तर के पदों तक किसी भी हिंदू को नियुक्त नहीं किया जाएगा।
1,500 से अधिक आवेदन खारिज : सूत्रों के मुताबिक, इस नए आदेश के कारण करीब 1,500 हिंदू उम्मीदवारों के आवेदन खारिज कर दिए गए हैं। ये सभी आवेदन पहले से चल रही पुलिस भर्ती प्रक्रिया के अंतर्गत थे। यह कदम बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के अधिकारों पर एक और प्रहार माना जा रहा है।
हिंदू अधिकारियों को बर्खास्त किया गया: शेख हसीना के सत्ता से बाहर जाने के बाद से ही बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ सरकारी स्तर पर कार्रवाई तेज हो गई है। शुरुआत में सौ से अधिक सहायक पुलिस अधीक्षकों, पुलिस अधीक्षकों और डीआईजी रैंक के अधिकारियों को उनके पदों से बर्खास्त कर दिया गया। अब इनकी जगह जमात-ए-इस्लामी और अन्य उग्रवादी संगठनों के सदस्यों को नियुक्त करने की योजना है।
भर्ती प्रक्रिया पर रोक : करीब 79,000 पुलिसकर्मियों की नई भर्ती प्रक्रिया, जो पिछले साल अक्टूबर से शुरू हुई थी, को अब स्थगित कर दिया गया है। यह प्रक्रिया जनवरी में दोबारा शुरू होगी, लेकिन नए आदेश के तहत हिंदुओं को इसमें हिस्सा लेने की अनुमति नहीं होगी।
हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमले: बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पहले से ही लगातार हिंसा और भेदभाव का सामना कर रहा है।
- धार्मिक स्थलों पर हमले: हिंदू मंदिरों और पूजा स्थलों पर बार-बार हमले हो रहे हैं।
- व्यक्तिगत टारगेटिंग: हिंदू व्यवसायियों और आम नागरिकों को धमकाया जा रहा है।
- संपत्ति जब्त: कई हिंदुओं की संपत्ति को अवैध तरीके से कब्जा किया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी: इस घटनाक्रम के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर चुप है। मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र से अपील की जा रही है कि वे बांग्लादेश की स्थिति पर ध्यान दें और हिंदू समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाएं।
क्या कहता है सरकार का पक्ष?: बांग्लादेश सरकार ने इस आदेश को लेकर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है। हालांकि, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह कदम देश को कट्टरवाद की ओर ले जा रहा है।
हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया: बांग्लादेश के हिंदू संगठनों ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। कई संगठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है।
भारत की भूमिका पर सवाल: भारत, जो बांग्लादेश का पड़ोसी देश है, ने अब तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। भारतीय जनता का एक वर्ग सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग कर रहा है।
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर बढ़ता दबाव न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी खतरा है। इस तरह के कदम बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह देखना बाकी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत इस पर क्या रुख अपनाते हैं।