Federalism Under Threat: मनरेगा एक्ट को समाप्त कर उसकी जगह लाए गए नए कानून के विरोध में मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार द्वारा आज पंजाब विधानसभा में आयोजित सत्र के दौरान पेश किए गए प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कैबिनेट मंत्री श्री हरभजन सिंह ई.टी.ओ. ने कहा कि मनरेगा योजना को खत्म करना गरीबों को रोटी से वंचित करने की एक सोची-समझी साज़िश है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार संघवाद के सिद्धांत के विपरीत जाकर राज्यों के अधिकारों को खत्म करने के रास्ते पर चल पड़ी है। इसके प्रमाण बी.बी.एम.बी., पंजाब यूनिवर्सिटी और चंडीगढ़ से जुड़े पिछले समय के घटनाक्रम हैं, जो सभी के सामने हैं।
कैबिनेट मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार बहाने बनाकर राज्य सरकारों के अधिकारों को कमजोर करने और उन्हें समाप्त करने की चालें चल रही है।
उन्होंने कहा कि संविधान में मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 1993 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से 29 अधिकार ग्राम पंचायतों को सौंपे थे। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए मनरेगा की शुरुआत की गई थी, जिसमें गांव की पंचायतों की आवश्यकता के अनुसार कार्यों के नियम बनाए गए थे, जिससे गांवों को उनकी जरूरत के मुताबिक धनराशि मिलती थी और विकास कार्य संभव हो पाते थे।कैबिनेट मंत्री ने कहा कि नए कानून के लागू होने से पंचायतों को मिले 29 अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करना कठिन हो जाएगा।
एम पंचायतें न तो अपने कार्य स्वतंत्र रूप से चला पाएंगी और न ही अपनी आवश्यकताओं के अनुसार नीतियां बना सकेंगी। उन्होंने कहा कि इस नए एक्ट से ‘राइट टू वर्क’ यानी काम के अधिकार को लागू करना भी मुश्किल हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट टकराव वाले संघवाद पर आधारित था, लेकिन संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने सहकारी संघवाद (कोऑपरेटिव फेडरलिज़्म) का सिद्धांत लागू किया था। मौजूदा केंद्र सरकार अप्रत्यक्ष रूप से फिर से 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट को लागू करने की दिशा में बढ़ रही है।
कैबिनेट मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार राज्यों और केंद्र के बीच टकराव की राजनीति को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि नया कानून दलित विरोधी है, क्योंकि मनरेगा के तहत काम करने वाले लगभग 73 प्रतिशत श्रमिक दलित समुदाय से संबंधित हैं।






