BJP Bengal Election Strategy को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कमर कस ली है। बिहार चुनाव के नतीजों ने पार्टी में नया जोश भरा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साफ इशारे के बाद, अब बंगाल में ममता बनर्जी के ‘जंगल राज’ को उखाड़ फेंकने के लिए एक बड़ी और संगठित रणनीति पर काम शुरू हो गया है। इस बार सिर्फ हवा नहीं, जमीन पर लड़ाई होगी।
6 जोन, 6 सेनापति और जमीनी लड़ाई
पिछली गलतियों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार पश्चिम बंगाल को 6 अलग-अलग जोन में बांटकर चुनाव लड़ेगी। 2021 के आक्रामक प्रचार के बावजूद मिली सिर्फ 77 सीटों की हार को पार्टी भूली नहीं है। इसलिए इस बार प्रचार नहीं, बल्कि जमीनी मुद्दे केंद्र में होंगे। हर जोन की जिम्मेदारी पवन राणा और सिद्धार्थन जैसे अनुभवी संगठन मंत्रियों को सौंपी गई है, जो स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर काम करेंगे।
जनता का सर्वे और ‘एंटी-इनकंबेंसी’
भाजपा ने इस बार जनता की नब्ज टटोलने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया है। पार्टी रिसर्च टीमें गांव-गांव और शहरों में जाकर सर्वे कर रही हैं। खास बात यह है कि ये सर्वे गैर-राजनीतिक लोगों के जरिए कराए जा रहे हैं ताकि जनता बिना किसी दबाव के अपनी राय दे सके। बेरोजगारी, आर्थिक मुद्दे और खराब कानून-व्यवस्था जैसे स्थानीय मुद्दों को पहचाना जा रहा है। लगातार तीन बार से सत्ता में रहीं ममता बनर्जी के खिलाफ लोगों में जो नाराजगी है, उसे भाजपा ‘बदलाव’ की लहर में बदलने की तैयारी कर रही है।
घुसपैठ का मुद्दा और ध्रुवीकरण की बिसात
बंगाल की राजनीति में ‘घुसपैठ’ और ‘ध्रुवीकरण’ हमेशा से बड़े मुद्दे रहे हैं। राज्य में एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) शुरू होने के बाद बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों के लौटने की खबरें आ रही हैं। ममता बनर्जी इसका विरोध कर रही हैं, लेकिन भाजपा का मानना है कि इससे मूल बंगाली समुदाय एकजुट हो रहा है। भाजपा का कहना है कि घुसपैठियों के कारण स्थानीय लोगों के संसाधन और नौकरियां छिन रही हैं और सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है। यह मुद्दा चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।
टीएमसी की ‘तुष्टिकरण’ से भाजपा को फायदा?
टीएमसी नेता हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी ढांचे पर दिए गए विवादित बयान ने एक नया राजनीतिक बखेड़ा खड़ा कर दिया है। भाजपा का आंकलन है कि टीएमसी द्वारा 30% मुस्लिम वोट बैंक को साधने की यह कोशिश हिंदू और अन्य समुदायों को नाराज कर सकती है। पार्टी को लगता है कि अत्यधिक अल्पसंख्यक-केंद्रित राजनीति से बाकी मतदाता एकजुट हो सकते हैं, जो भाजपा के पक्ष में माहौल बना सकता है।
पीएम मोदी का दिसंबर दौरा और ‘नया बंगाल’ का नारा
दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित बंगाल यात्रा से भाजपा के इस महाअभियान की औपचारिक शुरुआत मानी जा रही है। पार्टी ‘अस्मिता’, ‘रोजगार’ और ‘नया बंगाल’ जैसे नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। हालांकि, जानकार मानते हैं कि ममता बनर्जी की पकड़ अब भी मजबूत है और भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी, लेकिन इस बार भाजपा पहले से कहीं ज्यादा संगठित और संसाधनों से लैस होकर चुनाव लड़ रही है। आने वाले महीने बंगाल की राजनीति के लिए बेहद अहम होने वाले हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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भाजपा ने पश्चिम बंगाल को 6 जोन में बांटा है, हर जोन के लिए अलग रणनीति बनेगी।
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गैर-राजनीतिक लोगों के जरिए जमीनी स्तर पर जनता का सर्वे कराया जा रहा है।
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बांग्लादेशी घुसपैठ और टीएमसी की ‘तुष्टिकरण’ नीति को चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा।
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पीएम मोदी की दिसंबर यात्रा से भाजपा के ‘बंगाल मिशन’ का शंखनाद होगा।






