Bharat Bhushan Ashu Land Scam Case : लुधियाना (Ludhiana) में 2400 करोड़ रुपए के कथित भूमि घोटाले में फंसे पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु (Bharat Bhushan Ashu) को अदालत से बड़ा झटका लगा है। अतिरिक्त सत्र न्यायधीश गुरप्रीत कौर (Gurpreet Kaur) की अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। यह फैसला उस समय आया है जब आशु लुधियाना पश्चिमी (Ludhiana West) विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस (Congress) की ओर से प्रत्याशी हैं।
डीएसपी विनोद कुमार (DSP Vinod Kumar), जिन्होंने इस मामले में समन भेजा था, ने कोर्ट में कहा कि अभी तक आशु को केस में नामजद नहीं किया गया है। इसके बावजूद कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। इससे पहले 6 जून को अतिरिक्त सत्र न्यायधीश जसपिंदर सिंह (Jaspinder Singh) की अवकाशकालीन पीठ ने आशु को 11 जून तक अंतरिम जमानत दी थी।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान, आशु की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने मांग की कि यदि गिरफ्तारी होनी है तो विजिलेंस ब्यूरो (Vigilance Bureau) कम से कम तीन दिन पहले का नोटिस दे। इस पर सरकारी वकील पुनीत जग्गी (Puneet Jaggi), रमणदीप तूर गिल (Ramandeep Toor Gill), मोनिता गुप्ता (Monita Gupta), अजय सिंगला (Ajay Singla) और गुरप्रीत ग्रेवाल (Gurpreet Grewal) ने याचिका का विरोध करते हुए दलीलें पेश कीं।
मामले की शुरुआत 8 जनवरी 2025 को हुई थी, जब पुलिस थाना डिवीजन नंबर 5 (Police Station Division No. 5) में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420, 120-बी, 467, 468, 471 और 409 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। यह केस लुधियाना इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (Ludhiana Improvement Trust – LIT) द्वारा दशकों पहले सराभा नगर (Saraba Nagar) में स्कूल संचालन हेतु आवंटित 4.7 एकड़ भूमि से जुड़ा है, जो केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए दी गई थी।
जांच में सामने आया कि इस जमीन का उपयोग अवैध रूप से व्यवसायिक गतिविधियों के लिए किया जा रहा था। प्लेवे स्कूल और अन्य निजी व्यवसाय यहां से संचालित हो रहे थे, जिनसे कथित तौर पर भारी किराया वसूला जा रहा था। इससे जुड़े वित्तीय अनियमितताओं का अनुमान लगभग 2400 करोड़ रुपए का लगाया गया है।
इस मामले में कांग्रेस (Congress) के चुनाव कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी आयोजित की गई, जहां लीडरशिप ने इसे राजनीतिक साजिश बताया। वहीं विजिलेंस ब्यूरो ने 4 जून को समन जारी कर आशु को 6 जून को पूछताछ के लिए पेश होने का निर्देश दिया था।
यह मामला तब गंभीर हो गया जब LIT के अध्यक्ष की शिकायत के आधार पर पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी थी। जांच के दौरान भारी वित्तीय गड़बड़ी के संकेत मिलने पर मामला सतर्कता ब्यूरो को सौंपा गया। अब अदालत के इस फैसले के बाद आशु की राजनीतिक और कानूनी मुश्किलें दोनों बढ़ सकती हैं।