Bengal Politics CAA SIR: बंगाल की राजनीति में इस वक्त एक अजीबोगरीब खेल चल रहा है। जरा सोचिए, शहर के एक चौराहे पर पुलिस ड्राइविंग लाइसेंस चेक कर रही हो और उससे ठीक पिछले चौराहे पर सरकार के मंत्री 100 रुपये में लाइसेंस बांट रहे हों, तो उस चेकिंग का क्या मतलब रह जाएगा? ठीक यही स्थिति आज बंगाल में देखने को मिल रही है।
वोटर लिस्ट या धंधा?
एक तरफ चुनाव आयोग करदाताओं के पैसों से एसआईआर (SIR – Special Intensive Revision) करवा रहा है ताकि वोटर लिस्ट में नागरिकों की जांच की जा सके। वहीं दूसरी तरफ, बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन कैंप लगाकर मोतुआ समुदाय के लोगों से सीएए (CAA) के फॉर्म भरवा रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इसके लिए गुलाबी और पीले रंग के कार्ड बांटे जा रहे हैं, जिन्हें ‘हिंदू कार्ड’ कहा जा रहा है। आरोप है कि इन कार्डों और फॉर्म भरने के नाम पर 100 रुपये से लेकर 800 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह वोटर लिस्ट बन रही है या पैसा कमाने का कोई नया धंधा चल रहा है?
गुलाबी-पीले कार्ड का सच
‘द वायर’ और अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर गुलाबी रंग का कार्ड बांट रहे हैं, जबकि उनके भाई और विधायक सुब्रतो ठाकुर पीले रंग का कार्ड। दावा किया जा रहा है कि ये कार्ड मोतुआ समुदाय की हिंदू पहचान की पुष्टि करते हैं।
एक स्वतंत्र पत्रकार ने तो सोशल मीडिया पर ऐसे ‘एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट’ की तस्वीरें भी साझा की हैं, जिन पर बीजेपी सांसद का नाम देखा जा सकता है। विधायक सुब्रतो ठाकुर ने मीडिया से बातचीत में माना भी है कि फॉर्म भरने के लिए पैसे लिए जा रहे हैं, जिसे वे ‘सहायता फीस’ बता रहे हैं।
ममता बनर्जी की चेतावनी
इस पूरे घटनाक्रम पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोतुआ समुदाय को आगाह किया है। 25 नवंबर को बनगांव में एक रैली के दौरान उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कहीं नहीं लिखा है कि धर्म के कार्ड से वोटिंग का अधिकार या नागरिकता मिल जाएगी।
ममता ने सवाल उठाया कि जो लोग पहले बांग्लादेशी थे, उन्हें अब प्रमाण दिया जा रहा है कि वे साबित करें कि वे बांग्लादेशी हैं। उन्होंने साफ कहा कि अगर आप सीएए का फॉर्म भरते हैं, तो आप खुद को विदेशी घोषित कर रहे हैं और यह आपकी पहचान के साथ खिलवाड़ है।
असम में शांति, बंगाल में शोर क्यों?
सबसे बड़ा सवाल जो इस वक्त उठ रहा है वह यह है कि जो एसआईआर (SIR) बंगाल, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में हो रहा है, वह असम में क्यों नहीं हो रहा? असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हजारों करोड़ खर्च करके एनआरसी (NRC) कराई गई थी, लेकिन जब लिस्ट आई तो बीजेपी ने उसे मानने से इनकार कर दिया।
अब चुनाव आयोग का कहना है कि असम के लिए अलग प्रावधान हैं, इसलिए वहां एसआईआर लागू नहीं होता। आलोचक पूछ रहे हैं कि अगर मकसद घुसपैठियों को रोकना है, तो बांग्लादेश सीमा से सटे असम, त्रिपुरा और मेघालय में यह सख्ती क्यों नहीं, सिर्फ बंगाल में ही क्यों?
जानें पूरा मामला
चुनाव आयोग ने देश के कई राज्यों में वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (SIR) का आदेश दिया है ताकि अवैध नागरिकों के नाम हटाए जा सकें। इसी बीच, बंगाल में बीजेपी ने सीएए के तहत नागरिकता देने के लिए 700 से ज्यादा कैंप लगाने का ऐलान किया है। बीजेपी का कहना है कि अगर एसआईआर में किसी का नाम कटता है, तो सीएए के जरिए उन्हें नागरिकता और वोटर कार्ड दिलाया जाएगा। हालांकि, एक ही समय पर नागरिकता की जांच और नागरिकता देने का यह पैरेलल सिस्टम कई सवाल खड़े कर रहा है, जिस पर चुनाव आयोग ने अभी तक चुप्पी साधे रखी है।
मुख्य बातें (Key Points)
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बंगाल में चुनाव आयोग वोटर लिस्ट (SIR) अपडेट कर रहा है, जबकि बीजेपी समानांतर सीएए कैंप चला रही है।
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आरोप है कि ‘हिंदू कार्ड’ और सीएए फॉर्म भरने के नाम पर 100 से 800 रुपये वसूले जा रहे हैं।
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ममता बनर्जी ने मोतुआ समुदाय को चेताया है कि इन कार्डों की चुनाव आयोग में कोई मान्यता नहीं है।
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असम में एनआरसी होने के बावजूद वहां एसआईआर लागू नहीं किया गया है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं।
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बीजेपी का दावा है कि ये कार्ड मतुआ समुदाय के लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे।






