कोटक महिंद्रा बैंक पर हाल में आरबीआई ने बैन लगाया है. लेकिन ये इकलौता ऐसा मामला नहीं है, इसकी एक लंबी फेहरिस्त है. भारत के बैंकिंग सिस्टम की कई लापरवाहियों ने देश के एक बड़े सपने को चकनाचूर करने का काम किया है. चलिए समझते हैं…
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कोटक महिंद्रा बैंक पर ऑनलाइन नए ग्राहक जोड़ने और क्रेडिट कार्ड जारी करने पर बैन लगा दिया है. लेकिन इससे पहले भी कई इंडियन बैंक पर गाज गिर चुकी है. इससे देश को डिजिटल इंडिया बनाने का पीएम नरेंद्र मोदी का सपना भी चकनाचूर हुआ है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि भारतीय बैंक इस काम में विफल रहे हैं?
बीते कुछ सालों में भारत ही नहीं, दुनिया की तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने आबादी के सभी वर्गों तक फाइनेंशियल सर्विस पहुंचाने (वित्तीय समावेशन) के लिए डिजिटल सिस्टम पर बहुत निवेश किया है. भारत में तो पूरा पब्लिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है. इसमें यूपीआई, जनधन खाता, आधार कार्ड, रुपे कार्ड और मोबाइल बैंकिंग जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं. इसके बावजूद घरेलू मार्केट में काम करने वाले बैंक इसका फायदा उठाने में नाकाम रहे हैं.
यूपीआई को अपनाने में की बहुत देरी
अगर यूपीआई के केस को ही देखें, तो आज नुक्कड़ पर चाय के लिए 10 रुपए के पेमेंट से लेकर ज्वैलरी शॉप पर लाख रुपए तक का पेमेंट यूपीआई से होता है. इस्तेमाल में आसान इस सिस्टम को जहां बैंकों को पॉपुलर करना चाहिए था, वहां इसके लिए आज सबसे जाना-पहचाना नाम गूगल पे और फोनपे है, जो टोटल यूपीआई ट्रांजेक्शन का 85 प्रतिशत हैंडल करती हैं.
भारतीय बैंक इन नई टेक्नोलॉजीस पर पर्याप्त निवेश करने में विफल रहे. वह पुरानी पीढ़ी की तकनीकों पर ही डिपेंड रहे और इसने बैंकों के बोझ को बढ़ाने का काम किया. इसने पीएम नरेंद्र मोदी के उस सपने को भी चकनाचूर किया जिसमें वह सिर्फ इंडिया को डिजिटल नहीं बनाना चाहते थे, बल्कि भारत की डिजिटल पेमेंट टेक्नोलॉजी को एक्सपोर्ट करने के पक्ष में भी रहे, ताकि दुनिया इनका इस्तेमाल करे. लेकिन अभी इस प्लान पर जोखिम के बादल मंडरा रहे हैं.
कोटक से पहले और बैंक भी नपे
ईटी की एक खबर के मुताबिक देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के बैंकों से मॉर्डन होने के लिए कहा था, लेकिन साथ में एक हिदायत दी थी कि वह घरेलू फाइनेंशियल सिस्टम के साथ समझौता नहीं करें. इस नीति से काम नहीं करने के चलते ही आज कोटक महिंद्रा बैंक को आरबीआई के बैन का सामना करना पड़ रहा है. जबकि इससे पहले देश-विदेश में भारतीय बैंकों के साथ इस तरह की घटनाएं घट चुकी हैं.
इस महीने की शुरुआत में कोटक महिंद्रा बैंक के डिजिटल ट्रांजेक्शंस में परेशानी आई जिसकी वजह से आरबीआई को उसकी ऑनलाइन ऑनबोर्डिंग सर्विस पर रोक लगानी पड़ी. इससे पहले सरकारी क्षेत्र के यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहकों ने भी डिजिटल और नेट बैकिंग में परेशानी को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट की, तो उनकी यूपीआई सर्विस कई घंटों तक बाधित रही.
साल 2020 की वो घटना तो आपको याद ही होगी, जब टेक्नीकल सिस्टम में रिस्क के चलते आरबीआई ने देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक एचडीएफसी बैंक की डिजिटल सर्विस पर जुर्माना लगाया था. ये घटनाएं सिर्फ बैंकों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विस जैसी एनबीएफसी के साथ भी घटीं, जहां उन्हें अपने लोन पोर्टफोलियो में 1.5 अरब रुपए के फ्रॉड का सामना करना पड़ा.
इसी तरह सरकारी ‘बैंक ऑफ बड़ौदा’ ने पिछले साल अपने दर्जनों कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया था, क्योंकि उन्होंने कस्टमर्स को बैंक की मोबाइल ऐप से जोड़ने में अनियमितताएं बरती थीं. देश के बाहर सिंगापुर में डीबीएस ग्रुप होल्डिंग्स को भी आरबीआई की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उसकी डिजिटल सर्विसेस बाधित हुईं थीं.