Bangladesh Crisis Update: ढाका की सड़कों पर लाखों की भीड़, जलते हुए दफ्तर और भारत विरोधी नारे—बांग्लादेश के हालात एक बार फिर बेकाबू हो चुके हैं। छात्र नेता उस्मान हादी की मौत के बाद शुरू हुआ यह बवाल अब सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं रहा, बल्कि यह एक गृह युद्ध जैसी स्थिति में बदलता जा रहा है, जिसने 12 फरवरी को होने वाले आम चुनावों पर भी बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब और अल्टीमेटम
ढाका में उस्मान हादी के जनाजे में ऐतिहासिक भीड़ उमड़ी। संसद भवन के बाहर लाखों लोग जमा हुए, लेकिन मातम जल्द ही गुस्से में बदल गया। हादी के संगठन ‘इंकलाब मंच’ और उनके समर्थकों ने मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को सीधा अल्टीमेटम दे दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर 24 घंटे के अंदर सरकार यह खुलासा नहीं करती कि हादी की मौत के जिम्मेदार कौन हैं और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता, तो सरकार को परिणाम भुगतने होंगे। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मुख्य आरोपी भारत भाग गए हैं, जिससे वहां भारत विरोधी भावनाएं और भड़क गई हैं।
हिंसा का तांडव: मीडिया और दफ्तरों को बनाया निशाना
इस गुस्से का शिकार बांग्लादेश के प्रमुख संस्थान बने हैं। उपद्रवियों ने ढाका में दो बड़े अखबारों के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया। इतना ही नहीं, शेख मुजीबुर रहमान के घर और आवामी लीग के दफ्तर को भी जला दिया गया। यह हिंसा यहीं नहीं रुकी, कुष्टिया इलाके में चुनाव कार्यालय (Election Office) को भी आग लगा दी गई। यह साफ संकेत है कि प्रदर्शनकारियों का निशाना अब सीधे तौर पर प्रशासनिक व्यवस्था और आने वाले चुनाव हैं।
भारत पर सीधा असर और हिंदुओं पर खतरा
चटगांव में भारतीय उच्चायोग (Indian High Commission) के ऑफिस पर उपद्रवियों ने हमला किया, जो भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है। उस्मान हादी अपनी कट्टर भारत विरोधी छवि के लिए जाना जाता था और उसने हाल ही में ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का एक विवादित नक्शा भी जारी किया था। जानकारों का मानना है कि अगर बांग्लादेश की कमान कट्टरपंथियों के हाथ में चली गई, तो वहां रहने वाले 1 करोड़ हिंदुओं के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है। भारत के साथ बांग्लादेश की लंबी सीमा लगती है, इसलिए वहां की कोई भी अस्थिरता सीधे भारत की सुरक्षा पर असर डालती है।
क्या चुनाव अब नहीं होंगे?
विशेषज्ञों के मुताबिक, उस्मान हादी की मौत के बाद उपजा यह भावनात्मक ज्वार और हिंसा महज एक इत्तेफाक नहीं है। कुष्टिया में चुनाव दफ्तर को जलाना यह साबित करता है कि इसके पीछे एक बड़ी साजिश है, जिसका मकसद 12 फरवरी को होने वाले चुनावों को रोकना है। मोहम्मद यूनुस की सरकार कानून-व्यवस्था संभालने में पूरी तरह विफल साबित हो रही है। अगर सुरक्षा का यही हाल रहा, तो चुनाव आयोग के लिए मतदान कराना असंभव हो जाएगा, जो बांग्लादेश को और गहरे राजनीतिक संकट में धकेल देगा।
विश्लेषण: अनुभवहीन सरकार और कट्टरपंथ का उभार
बांग्लादेश में वर्तमान हालात यह दर्शाते हैं कि मोहम्मद यूनुस और उनकी अंतरिम सरकार के पास इस तरह की विषम परिस्थितियों से निपटने का न तो कोई राजनीतिक अनुभव है और न ही कोई ठोस ढांचा। छात्रों और युवाओं का यह उग्र आंदोलन अब नियंत्रण से बाहर है। जिस तरह से ‘इंकलाब मंच’ जैसे कट्टरपंथी संगठन मुख्यधारा में आ रहे हैं और अपनी शर्तें मनवा रहे हैं, वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह अस्थिरता न केवल बांग्लादेश के भविष्य को अंधकार में डाल रही है, बल्कि दक्षिण एशिया की शांति के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुकी है।
क्या है पृष्ठभूमि
उस्मान हादी ‘इंकलाब मंच’ का प्रवक्ता था और उसने शेख हसीना सरकार को गिराने वाले आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। वह आगामी आम चुनाव में ढाका से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर प्रचार कर रहा था। हादी की हत्या के बाद उसके समर्थकों का मानना है कि यह एक राजनीतिक हत्या है, जिसका फायदा उठाकर कट्टरपंथी ताकतें अब सत्ता पर काबिज होने की कोशिश कर रही हैं, जबकि खालिदा जिया बीमार हैं और शेख हसीना देश से बाहर हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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Usman Hadi के जनाजे के बाद ढाका में भारी हिंसा, अखबार और चुनाव दफ्तर जलाए गए।
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प्रदर्शनकारियों ने यूनुस सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है।
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चटगांव में भारतीय उच्चायोग पर हमला, भारत विरोधी भावनाएं चरम पर।
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12 फरवरी को होने वाले आम चुनावों के टलने की प्रबल संभावना बन गई है।






