चंडीगढ़, 19 दिसंबर (The News Air): केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर पर की गई हालिया टिप्पणियां अपमानजनक और अस्वीकार्य दोनों हैं। ये टिप्पणियां न केवल बाबासाहेब अंबेडकर की अद्वितीय विरासत का अपमान करती हैं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा समानता, न्याय और समावेशिता के उन मूलभूत सिद्धांतों के प्रति लगातार उपेक्षा को भी दर्शाती हैं, जिनकी उन्होंने इस राष्ट्र के लिए कल्पना की थी।
इन टिप्पणियों को और भी अधिक निंदनीय बनाने वाली बात यह है कि ये टिप्पणियां संसद में संविधान पर बोलते समय की गई थीं। संसद भारत के एक अरब लोगों के लिए पूजा स्थल से कम नहीं है, जो लोकतंत्र को संजोते हैं। यह प्रत्येक नागरिक की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है, और इसकी पवित्रता को ऐसे बयानों से कभी भी धूमिल नहीं किया जाना चाहिए जो डॉ. अंबेडकर जैसे दूरदर्शी व्यक्ति के योगदान को कमतर आंकते हैं।
भाजपा नेतृत्व को यह याद रखना चाहिए कि संसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनके पद बाबासाहेब द्वारा सावधानीपूर्वक बनाए गए संविधान के कारण हैं। डॉ. अंबेडकर की दूरदृष्टि ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों को सुनिश्चित किया, जो जाति, पंथ या वर्ग के बावजूद हर नागरिक को देश के सर्वोच्च पदों पर पहुंचने की आकांक्षा रखने के लिए सशक्त बनाता है। यह विशेष रूप से विडंबनापूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अक्सर अपनी ओबीसी पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हैं, इस देश का नेतृत्व करने की अपनी क्षमता का श्रेय डॉ. अंबेडकर और हमारे लोकतंत्र के संस्थापक पिताओं के अथक प्रयासों को देते हैं। उनके काम ने सुनिश्चित किया कि प्रत्येक भारतीय को वोट देने का अधिकार हो और भेदभाव से मुक्त होकर सत्ता के पदों पर पहुंचने का अवसर मिले।
डॉ. अंबेडकर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करते समय भाजपा द्वारा इसे स्वीकार न करना उनके गहरे विरोधाभासों और भारत की बहुलवादी विरासत के प्रति अनादर को उजागर करता है। सामाजिक न्याय, समानता और हाशिए पर पड़े समुदायों के सशक्तिकरण के लिए डॉ. अंबेडकर की आजीवन प्रतिबद्धता भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार की आधारशिला है। उनकी विरासत का कोई भी अपमान लाखों भारतीयों की आकांक्षाओं का अपमान है। इसलिए मैं अमित शाह से आग्रह करता हूं कि वे अपनी टिप्पणी के लिए तत्काल और बिना शर्त सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।
बाबासाहेब अंबेडकर के राष्ट्र के प्रति योगदान को कम नहीं आंका जा सकता और न ही कम किया जाना चाहिए। भाजपा को अपनी मनुवादी मानसिकता को त्यागना चाहिए और संविधान में निहित आदर्शों का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। इससे कम कुछ भी भारत के लोगों और उनके प्रिय लोकतंत्र के प्रति गंभीर अन्याय होगा।