PM Modi Vande Mataram Speech के दौरान संसद में इतिहास के वो पन्ने खुले, जिनमें त्याग, तपस्या और बलिदान की गाथा छिपी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर चर्चा की शुरुआत करते हुए देश को याद दिलाया कि यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज है। उन्होंने भावुक होकर कहा कि जब इस गीत ने 100 साल पूरे किए थे, तब देश Emergency (आपातकाल) के अंधेरे में जकड़ा हुआ था, लेकिन आज 150वें साल में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर चमक रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों के दौर में एक Fashion बन गया था—भारत को कमजोर, निकम्मा और आलसी कहना। अंग्रेजों की इसी हीन भावना को तोड़ने के लिए बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (बंकिम बाबू) ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की। उन्होंने बताया कि भारत माता सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि ज्ञान, समृद्धि और शक्ति की देवी है।
‘बंगाल को प्रयोगशाला बनाया’
मोदी ने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत बंगाल को अपनी प्रयोगशाला बनाया था। 1905 में उन्होंने बंगाल का विभाजन किया क्योंकि वे जानते थे कि बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्य पूरे देश को दिशा देता है। अंग्रेजों को लगा कि बंगाल टूट गया तो देश टूट जाएगा। लेकिन, उनके इस पाप के खिलाफ ‘वंदे मातरम’ चट्टान बनकर खड़ा हो गया। यह गीत गली-गली का नाद बन गया और स्वदेशी आंदोलन की मशाल बन गया।
‘कोड़े पड़े, पर नहीं रुका वंदे मातरम’
संसद में उस दौर के जुल्मों की दास्तान सुनाते हुए पीएम मोदी ने बताया कि अंग्रेजों ने इस गीत को गाने, छापने और बोलने तक पर Ban लगा दिया था। लेकिन जज्बा ऐसा था कि बारी साल में महिलाओं ने इसके लिए अपनी चूड़ियां तक उतार दी थीं। फरीदपुर और नागपुर में छोटे-छोटे बच्चों को कोड़े मारे गए, जेल में डाला गया, लेकिन उन्होंने ‘वंदे मातरम’ बोलना नहीं छोड़ा। बंगाल की गलियों में बच्चे गाते थे—”जीवन भी चला जाए तो धन्य है, अगर वंदे मातरम कहते हुए जाए।”
‘फांसी के फंदे पर गूंजा मंत्र’
प्रधानमंत्री ने खुदीराम बोस, मदन लाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और मास्टर सूर्य सेन जैसे क्रांतिकारियों को याद किया। उन्होंने कहा कि अलग-अलग जेलों और अलग-अलग इलाकों में होने के बावजूद, फांसी के फंदे पर चढ़ते वक्त इन सबके होंठों पर एक ही मंत्र था—’वंदे मातरम’। चाहे लंदन का इंडिया हाउस हो, जहां वीर सावरकर ने इसे गाया, या पेरिस में मैडम भीकाजी कामा का अखबार, हर जगह यह गीत अंग्रेजों की नींद हराम करने के लिए काफी था।
‘गांधी जी ने बताया था नेशनल एंथम’
पीएम मोदी ने महात्मा गांधी के 1905 के एक लेख का भी जिक्र किया जो उन्होंने ‘इंडियन ओपिनियन’ में लिखा था। गांधी जी ने लिखा था कि ‘वंदे मातरम’ बंगाल में इतना लोकप्रिय हो गया है जैसे यह हमारा National Anthem बन गया हो। यह गीत लाखों लोगों को एक सूत्र में बांधने वाला मंत्र बन गया था। पीएम ने यह भी बताया कि तमिलनाडु के सुब्रमण्यम भारती ने इसका तमिल अनुवाद किया था और इसे अपने ध्वज गीत में शामिल किया था।
जानें पूरा मामला
संसद के शीतकालीन सत्र में ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा आयोजित की गई है। इस चर्चा की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने इस गीत की ऐतिहासिक यात्रा, स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका और 1975 के आपातकाल के दौरान इसके 100वें वर्ष पर देश की स्थिति का तुलनात्मक विवरण दिया। उन्होंने इसे 2047 के विकसित भारत के संकल्प के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
मुख्य बातें (Key Points)
-
‘वंदे मातरम’ के 100वें साल पर देश में Emergency लगी थी, जिसे पीएम ने काला अध्याय बताया।
-
अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल विभाजन किया, जिसके जवाब में ‘वंदे मातरम’ एकता का सूत्र बना।
-
बंकिम चंद्र ने अंग्रेजों के अहंकार को तोड़ने के लिए इस गीत में भारत को दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में दिखाया।
-
महात्मा गांधी ने 1905 में ही इसे अघोषित National Anthem मान लिया था।






