केजरीवाल मामले में अमेरिकन डिप्लोमेट तलब…

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भारत ने अमेरिकन डिप्लोमेट को किया तलब... जानें राजनयिक का काम क्या है?
 

नई दिल्ली, 28 मार्च (The News Air) दिल्ली के शराब घोटाला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिकन डिप्लोमेट ग्लोरिया बर्बेना और जर्मनी के दूतावास के डिप्टी चीफ को तलब किया. आइए इसी बहाने जानते हैं कि डिप्लोमेट का काम क्या होता है, इनके पास कितनी चुनौतियां होती हैं.

दिल्ली के शराब घोटाला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिका और जर्मनी के बयान पर सख्त रुख अपनाया है. भारत ने अमेरिकन डिप्लोमेट ग्लोरिया बर्बेना और जर्मनी के दूतावास के डिप्टी चीफ को तलब किया. भारत ने यह कदम दोनों देशों के बयान के बाद उठाया है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर हमारी नजर है. हम उनके लिए पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया की उम्मीद करते हैं. वहीं, जर्मनी ने भी गिरफ्तारी के मामले में टिप्पणी की थी.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर आपत्ति जताते हुए डिप्लोमेट को तलब किया था. ऐसे में सवाल है कि आखिर दूसरे देशों डिप्लोमेट भारत में क्यों रहते हैं और इनका काम क्या है?

भारत में क्या करते हैं दूसरे देशों के डिप्लोमेट?

डिप्लोमेट यानी राजनयिक विदेश नीति के मुताबिक काम करते हैं और अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए वहां से हितों की रक्षा करते हैं. दुनिया के कई देशों ने एक डिप्लोमेटिक की जिम्मेदारी तीन हिस्सों में बांटी हुई है. पॉलिटिकल, ट्रेड यानी व्यापार और कॉन्सुलर सर्विस.

 पॉलिटिकल मामलों से जुड़े डिप्लोमेट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश की छवि को बेहतर बनाने का काम करते हैं. विदेशी नीति के जरिए अपने देश के हितों की रक्षा करते हैं. इसके लिए वो यहां की सरकार के सामने अपनी बात रखते हैं. पॉलिटिकल फील्ड से जुड़े डिप्लोमेट अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं.

कुछ डिप्लोमेट दूसरे देश में रहकर अपने देश के व्यापार को बढ़ाने पर फोकस करते हैं. एक ट्रेड ऑफिसर अपने देश की कंपनियों को दूसरे देश में स्थापित करने में मदद करता है. दोनों देशों के लिए तालमेल को बेहतर करता है. व्यापार के मौके तलाशता है और उन्हें पूरी मदद करता है. इसके अलावा उन कंपनियों को जानकारी उपलब्ध कराता है जिन्हें इसकी जरूरत होती है.

इसके अलावा कॉन्सुलर सर्विस से जुड़े डिप्लोमेट ट्रैवल से जुड़े मामले देखते हैं. जैसे- कोई शख्स अमेरिका से भारत आया है और उसका पासपोर्ट खो गया है या उसे खास मदद की जरूरत है तो ये डिप्लोमेट ऐसे मामलों में मदद करते हैं. वह अपने देश के लोगों की जरूरतों के लिए काम करते हैं.

डिप्लोमेट के पास कितनी चुनौतियां?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि डिप्लोमट को वहां की सरकार आकर्षक वेतन, घर समेत कई सुविधाएं देती है, लेकिन इनके पास चुनौतियां भी कम नहीं हैं. कई बार इनकी लोकेशन बदल दी जाती है. इनकी तैनाती ऐसे किसी देश के ऐसे क्षेत्र की जा सकती है जहां हालात बिगड़े हुए हैं. जैसे- प्राकृतिक आपदा या आतंकी गतिविधियों के बीच. इस तरह इनकी सुरक्षा का मुद्दा अहम हो जाता है. इनकी जान का जोखिम बढ़ जाता है.

लम्बे वर्किंग ऑवर, एक के बाद यात्राएं समेत डिप्लोमेट के सामने कई चुनौतियां होती हैं. जिसके कारण पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में तालमेल बिठा पाना मुश्किल होता है. संवेदनशील राजनीतिक मुद्दों, मानवीय संकट और मानवाधिकारों के हनन से निपटना राजनयिकों को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे नैतिक संकट और मनोवैज्ञानिक तनाव हो सकता है. राजनयिक से जुड़ी जिम्मेदारियों में दर्दनाक घटनाओं को देखना या संबोधित करना शामिल हो सकता है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है.

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