Iran-USA Conflict History — ईरान (Iran) और अमेरिका (USA) के बीच परमाणु स्थलों को लेकर हाल में हुए अमेरिकी हमलों के बाद दोनों देशों के संबंधों में एक बार फिर तनाव चरम पर पहुंच गया है। यह तनाव सिर्फ तात्कालिक घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें 72 साल पुरानी एक बड़ी ऐतिहासिक घटना, ऑपरेशन एजैक्स (Operation Ajax) में छिपी हैं, जिसने इन दोनों देशों के बीच स्थायी दुश्मनी की नींव रखी।
1953 में ईरान (Iran) में एक तख्तापलट को अंजाम दिया गया था, जिसमें ब्रिटिश समर्थन के साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराकर शाह मोहम्मद रजा पहलवी (Shah Mohammad Reza Pahlavi) को सत्ता में बैठाया। इस कदम का मकसद सोवियत प्रभाव और ईरान के तेल संसाधनों के राष्ट्रीयकरण को रोकना था। इस तख्तापलट के बाद अमेरिका और ईरान के बीच गहरा अविश्वास पनपने लगा, जो आगे चलकर क्रांति में बदला।
1979 की इस्लामी क्रांति (Islamic Revolution) के बाद शाह को सत्ता से हटा दिया गया और ईरान पूरी तरह धर्मतंत्र के अधीन हो गया। इसके बाद नवंबर 1979 में ईरानी छात्रों ने 66 अमेरिकी राजनयिकों को बंधक बना लिया, जिनमें से 50 से अधिक को 444 दिनों तक बंदी बनाकर रखा गया। इस अपमानजनक घटना ने अमेरिका और ईरान के बीच राजनयिक संबंधों को हमेशा के लिए तोड़ दिया। इस दौरान ऑपरेशन ईगल क्लॉ (Operation Eagle Claw) की विफलता से अमेरिका को और भी आघात पहुंचा।
उसके बाद भी कई मौकों पर दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव हुआ। 1988 में अमेरिका ने ऑपरेशन प्रेइंग मेंटिस (Operation Praying Mantis) के तहत फारस की खाड़ी (Persian Gulf) में ईरान के कई जहाजों और निगरानी प्लेटफॉर्म को तबाह किया। ये कार्रवाई USS Samuel B. Roberts पर हुए हमले के जवाब में की गई थी।
इस बीच 1980 से 1988 के बीच चले ईरान-इराक युद्ध (Iran-Iraq War) में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से भले ही किसी पक्ष का समर्थन न किया हो, लेकिन उसने इराक को अप्रत्यक्ष रूप से खुफिया जानकारी, सैन्य सहायता और आर्थिक मदद प्रदान की। इसका उद्देश्य ईरान की बढ़ती ताकत को रोकना और क्षेत्र में अस्थिरता को कम करना था।
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने ईरान पर हमले के बाद ट्विटर पर “ईश्वर ईरान का भला करे” जैसा बयान देकर सभी को चौंका दिया, लेकिन जब यह स्पष्ट हो गया कि संघर्ष खत्म नहीं हुआ है, तब उन्होंने कड़ी भाषा में कहा कि दोनों देशों को समझ ही नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। ट्रंप का यह बदला हुआ रवैया दिखाता है कि अमेरिका अभी भी ईरान को एक खतरनाक ताकत मानता है, जबकि ईरान अमेरिका को “सबसे बड़ा शैतान” कहता है।
अमेरिका की खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हालिया हमलों से ईरान के परमाणु ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा है, लेकिन वे पूरी तरह नष्ट नहीं हुए। वहीं, ईरान ने भी संयमित जवाबी कार्रवाई करते हुए कतर (Qatar) में अमेरिकी सैन्य अड्डे को निशाना बनाया।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि ईरान और अमेरिका के बीच अविश्वास और वैचारिक टकराव अभी भी वैसा ही है जैसा दशकों पहले था। अब यह देखना अहम होगा कि इस तनावपूर्ण इतिहास के बावजूद क्या दोनों देश किसी समाधान की दिशा में बढ़ते हैं या फिर यह शत्रुता एक और भयावह मोड़ लेगी।