CJI BR Gavai Major Judgments भारत के 52वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस बीआर गवई अब रिटायर हो चुके हैं। उनका छोटा सा कार्यकाल भी ऐसे बड़े फैसलों से भरा रहा कि उन्हें भारतीय न्यायपालिका में लंबे समय तक याद किया जाएगा। जस्टिस गवई ने रिटायरमेंट से पहले दिए गए अपने पांच सबसे बड़े फैसलों के जरिए देश की राजनीति, समाज, लोकतंत्र और पर्यावरण पर गहरी छाप छोड़ी है।
1. बुलडोजर जस्टिस पर लगा ब्रेक
देश भर में बिना नोटिस के मकान गिराए जा रहे थे, जिसे देखकर बहुतों को लगता था कि कोर्ट शायद चुप रहेगा। लेकिन जस्टिस गवई की बेंच ने बुलडोजर जस्टिस पर सबसे बड़ा ब्रेक लगाया। उन्होंने फैसला दिया कि बिना नोटिस दिए किसी की प्रॉपर्टी गिराई नहीं जा सकती और कम से कम 15 दिन का समय देना अनिवार्य है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य आरोपी बन सकते हैं, जज नहीं। जस्टिस गवई ने इस फैसले को अपना सबसे महत्वपूर्ण फैसला बताते हुए कहा कि यह आदेश प्रशासन को याद दिलाता है कि कानून किसी बुलडोजर से बड़ा होता है।
2. आर्टिकल 370 पर संवैधानिक मुहर
देश के इतिहास के सबसे बड़े संवैधानिक विवादों में से एक, जम्मू-कश्मीर की खास स्थिति (आर्टिकल 370) हटाने के फैसले पर जस्टिस गवई की बेंच ने मुहर लगाई। वह पाँच जज संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिसने माना कि आर्टिकल 370 अस्थाई था। बेंच ने यह फैसला दिया कि राष्ट्रपति और संसद के पास इसमें बदलाव का अधिकार था, और सरकार का फैसला संवैधानिक रूप से वैध है। इस निर्णय ने जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति पर हमेशा के लिए स्पष्टता ला दी।
3. इलेक्ट्रोरल बॉन्ड्स का ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस गवई की संविधान बेंच ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड्स को असंवैधानिक घोषित करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला दिया। राजनीति में पारदर्शिता लाने की दिशा में दिए गए इस फैसले ने पहली बार भारत की जनता को यह जानने का अधिकार दिया कि राजनीतिक पार्टियों को पैसा कहाँ से आता है, कौन देता है और क्यों देता है। बेंच ने कहा कि यह नागरिकों के जानने के अधिकार के खिलाफ है और लोकतंत्र में पारदर्शिता सबसे जरूरी है।
4. एससी/एसटी उप-वर्गीकरण को मंजूरी
आरक्षण को और अधिक न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में यह एक दूरदर्शी फैसला था। जस्टिस गवई की सात जजों की बेंच ने दृष्टिकोण दिया कि राज्य एससी/एसटी में उपवर्ग बना सकता है। इस फैसले के तहत क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू हो सकती है, ताकि आरक्षण का लाभ उन तक पहुंचना चाहिए जो सबसे ज्यादा वंचित हैं। इस निर्णय को सामाजिक न्याय की क्वालिटी इंप्रूवमेंट जैसा माना गया।
5. पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा
जस्टिस गवई ने पर्यावरण को सिर्फ फाइलों का केस नहीं माना, बल्कि इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए उठाया गया कदम बताया।
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उन्होंने झारखंड के सारंडा जंगल को वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया।
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उन्होंने अरावली के लिए एक समान परिभाषा निर्धारित करने का निर्देश दिया ताकि फर्जी खनन न हो।
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टाइगर रिजर्व के आसपास 1 किलोमीटर बफर जोन बनाया गया, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया।
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उन्होंने कहा कि विकास और विनाश में फर्क करना भी न्यायपालिका की जिम्मेदारी है।
क्या है पृष्ठभूमि
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि आज वह जिस मुकाम पर हैं, वह केवल संविधान और डॉ. अंबेडकर के कारण संभव हो सका। उन्होंने कहा कि एक नगरपालिका के स्कूल में जमीन पर बैठकर पढ़ने वाला लड़का इस पद तक पहुंचे, इसकी कल्पना भी मुश्किल है। उनके फैसले आने वाले कई वर्षों तक भारत की राजनीति, समाज और पर्यावरण को दिशा देते रहेंगे।
मुख्य बातें (Key Points)
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जस्टिस बीआर गवई (52वें CJI) ने बिना नोटिस प्रॉपर्टी गिराने पर रोक लगाई और कम से कम 15 दिन का समय देना अनिवार्य किया।
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उन्होंने 5 जज बेंच का हिस्सा रहते हुए आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया।
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उनकी बेंच ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड्स को असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे नागरिकों के जानने के अधिकार के खिलाफ बताया।
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उन्होंने फैसला दिया कि राज्य एससी/एसटी में उपवर्ग (क्रीमी लेयर) बनाकर लाभ सबसे वंचितों तक पहुंचा सकता है।
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उन्होंने सारंडा जंगल, अरावली और टाइगर रिजर्व के आसपास 1 किलोमीटर बफर जोन बनाकर पर्यावरण सुरक्षा पर जोर दिया।






