Safety Pin Invention Story को लेकर हाल ही में संसद में एक दिलचस्प किस्सा सुनाया गया। राज्यसभा सांसद और लेखिका सुधा मूर्ति (Sudha Murty) ने सामाजिक नवाचारों (Social Innovations) की बात करते हुए उस छोटी सी चीज का जिक्र किया, जिसके बिना भारतीय महिलाओं का जीवन शायद थम सा जाता। उन्होंने बताया कि कैसे एक मामूली कर्ज चुकाने की मजबूरी ने दुनिया को ‘सेफ्टी पिन’ जैसा नायब तोहफा दिया।
न्यूयॉर्क की वो शाम और 15 डॉलर का बोझ
इतिहास के पन्ने पलटें तो कहानी 1849 के अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की है। वहां वाल्टर हंट (Walter Hunt) नाम का एक मैकेनिक रहता था। वाल्टर एक बेहद होनहार इन्वेंटर थे, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन पर किसी का 15 डॉलर का कर्ज था।
आज के समय में यह रकम बहुत छोटी लग सकती है, लेकिन उस जमाने में यह एक बड़ा बोझ था। वाल्टर अपनी वर्कशॉप में बैठे परेशान थे और सोच रहे थे कि यह उधारी कैसे चुकाई जाए। उस वक्त उनके हाथ में पीतल का एक तार था।
महज 3 घंटे में हो गया कमाल
चिंता में डूबे वाल्टर हंट अनजाने में उस पीतल के तार को मरोड़ रहे थे। मरोड़ते-मरोड़ते उन्होंने तार के बीच में एक स्प्रिंग जैसा घुमाव दिया, ताकि उसमें तनाव (Tension) पैदा हो सके। इसके बाद उन्होंने तार के एक हिस्से को नुकीला किया।
दूसरे सिरे पर उन्होंने एक छोटा सा हुक या कैप लगा दिया, ताकि नुकीला हिस्सा उसमें सुरक्षित छिप जाए और उंगलियों को चुभे नहीं। इससे पहले जो पिन आते थे, वे खुले होते थे और अक्सर लोगों को घायल कर देते थे। वाल्टर ने अपनी इस नई ईजाद को ‘ड्रेस पिन’ (Dress Pin) का नाम दिया। यह आविष्कार महज 3 घंटे की मशक्कत का नतीजा था।
400 डॉलर में बेच दिया करोड़ों का आइडिया
इस कहानी का सबसे दुखद पहलू यह है कि वाल्टर को अंदाजा ही नहीं था कि उन्होंने क्या बना दिया है। उन्हें बस अपने 15 डॉलर के कर्ज की चिंता थी। उन्होंने तुरंत इस डिजाइन का पेटेंट करवाया और उसे ‘डब्ल्यू आर ग्रेस एंड कंपनी’ को मात्र 400 डॉलर में बेच दिया।
जिस कंपनी ने यह पेटेंट खरीदा, उसने बाद में इससे करोड़ों-अरबों डॉलर कमाए। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वाल्टर हंट के हाथ कुछ नहीं लगा। सुधा मूर्ति ने सही कहा है कि कई बार सोशल इनोवेशन करने वाले गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।
भारतीय महिलाओं के लिए बना ‘लाइफ सेवर’
भले ही यह आविष्कार अमेरिका में हुआ हो, लेकिन इसका असली सम्मान भारत में हुआ है। भारतीय महिलाओं, माताओं और बहनों के लिए सेफ्टी पिन सिर्फ एक टूल नहीं, बल्कि एक ‘लाइफ सेवर’ है।
साड़ी के पल्लू को संभालने से लेकर दुपट्टे को सेट करने तक, यह छोटा सा पिन हर रोज काम आता है। यहां तक कि टूटी हुई चप्पल को जोड़ने और पजामे में नाड़ा डालने तक, यह हर संकट का साथी है। तकनीकी रूप से यह कोई माइक्रोचिप नहीं है, लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव किसी स्मार्टफोन से कम नहीं है।
बिजनेस में कच्चे थे वाल्टर हंट
वाल्टर हंट ने सिलाई मशीन का भी आविष्कार किया था, लेकिन पेटेंट के डर से उसे रजिस्टर नहीं कराया। वे एक महान दिमाग वाले व्यक्ति थे, लेकिन बिजनेस में कच्चे थे।
आज जब हम सेफ्टी पिन का इस्तेमाल करते हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि यह एक आदमी की मजबूरी और बुद्धिमानी का नतीजा है, जिसने फैशन की दुनिया को हमेशा के लिए सुरक्षित बना दिया।
मुख्य बातें (Key Points)
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आविष्कारक: वाल्टर हंट ने 1849 में न्यूयॉर्क में सेफ्टी पिन बनाया।
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कारण: 15 डॉलर का कर्ज चुकाने की टेंशन में पीतल के तार से इसे बनाया।
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सौदा: पेटेंट को डब्ल्यू आर ग्रेस एंड कंपनी को सिर्फ 400 डॉलर में बेच दिया।
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इस्तेमाल: भारत में साड़ी, दुपट्टा और रोजमर्रा के कई कामों में यह अहम भूमिका निभाता है।






