लेखक- हयात : दुनिया में केवल पिता ही एक ऐसा इंसान है, जो चाहता है कि मेरे बच्चे मुझसे भी ज्यादा कामयाब हो, हर पिता की ख्वाहिश होती है कि जो वह अपने जीवन भर में नहीं कर सका, वो उसके बच्चे जरूर करें।
मैं हयात यह जो कहानी आप को बता रही हूं यह कुछ सच्ची घटना से संबंध रखती है। कहते हैं न कि पिता हम सबके लिए किसी वरदान से कम नहीं होता, एक संतान के लिए आदर्श भी होता है। कभी पिता एक अच्छा दोस्त भी बन जाता है, तो कभी एक सख्त शिक्षक भी, मानो जिंदगी की तमाम मंजिलों पर वो अलग-अलग अपनी अहम भूमिका निभाता नजर आता है, परन्तु अफसोस कुछ कलयुगी पिता ऐसे भी होते हैं, जो अपने बच्चों पर ढेरों जुल्म ढहाते हैं।
मैने इस कहानी में अपने पाठकों को यह बताने की कोशिश की है कि इस कलयुग में कुछ पिता ऐसे भी होते हैं, जो अपनी संतान को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं होते और अनेकों कठनाइयों को झेलते हुए उनकी संतान को इस बेदर्द दुनिया में अकेला ही संघर्ष करना पड़ता है।
अगर यहां पर लड़कियों की बात करें तो एक पिता लड़कियों के लिए तो आदर्श है ही या यह कह लें कि उनके लिए सबसे अधिक प्रेम ही पिता का नाम है। मानो दिल पूरी तरह से गदगद हो जाता है, तरंगे सी उठ जाती है पिता के अस्तित्व के बारे में सोच कर। मगर अफसोस पिता की तरफ से ऐसा न हो तो भी अकसर लड़कियां शादी के पहले के जीवनकाल में अपने हक का प्यार पाने के लिए हर संभव कोशिश करती है और शादी के बाद तो मानो उनकी जिंदगी कठनाईयों से भर ही जाती है। जिससे सुलझाते-सुलझाते वो अपने जिंदगी के कीमती समय को भी खो देती है।
वहीं अगर लड़के की बात करें तो वो भी पिता के अच्छे बुरे दोनों कर्मो को भोगते हैं, क्योंकि वो वही समाज में बढ़े होते हैं, जहां उनको अपने पिता की छवि से हमेशा सामना करना होता है। एक संतान के लिए पिता से बेहतर कोई मार्गदर्शन नहीं होता और यह सच भी है। भले ही एक पिता जो पढ़ा-लिखा नहीं है तो भी वो कोशिश करता है कि अपने बच्चों को किसी भी तरह से जिंदगी में तरक्की की राह दिखा सके, परन्तु अगर पिता खुद ही अपने निजी जीवन में अपने अधम चाल-चलन की पूर्ति के लिए हर समय तत्पर रहे तो वो भला ऐसे हलातों में अपने बच्चों (संतान) का मार्गदर्शन कैसे कर पाएगा। ऐसे पिता बस इस भ्रम में खुद को संतुष्ट रखते है कि वह अपने परिवार समेत बच्चों को सभी आधुनिक वस्तुएं मुहैया करवा रहा है और उन (पिता) के हिसाब से यही पर्याप्त है संतान के जीवन के लिए।
यहां पर आप सोचे कि क्या हो अगर पिता सभी भूमिकाओं को निभाने में सशक्त न हो… जी हां आप सही पढ़ और सोच रहे हैं, जैसे कि सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक वैसे ही यहां पर भी एक दूसरा पहलू है। जहां एक तरफ पिता अपने संतान के लिए दुनिया जहान का सारी सुख-सुविधा देना चाहता है, वहीं दूसरे पहलू में दुनिया में आज भी ऐसी संतानें हैं जो बस एक उम्मीद में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं कि कब उनके पिता उन्हें महत्व देंगे या जो पिता सिर्फ आधुनिक वस्तुएं मुहैया करवा कर खानापूर्ति ही कर रहे हैं।
मैं यहां पर बताना चाहूंगी कि मैं कुछ ऐसे परिवारों को बेहद करीब से देखती आई हूं, जहां एक पिता कभी अपने लड़कपन से बहार ही नहीं निकला पाया, उस इंसान ने शादी की, कुछ समय बाद पिता बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ, परन्तु अफसोस वो न तो एक अच्छा पति बन पाया और न ही एक अच्छा पिता बन पाया। उस पिता-पति को लगता है कि सिर्फ आर्थिक जरूरतों को पूरा कर देने से ही सारी की सारी जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं, परन्तु क्या असलियत में यही उसकी ज़िम्मेदारी बनती है, सिर्फ वो अपने ही परिवार के साथ दोहरी जिंदगी जी रहा है। जहां उसकी अतिरंजित खुशी बहार के लोगो में है। वो घर में एक डर का माहौल बना कर रखता है। जिससे कोई उसे कुछ सवाल न कर सके, कोई उसे यह न बताने की कोशिश करे की क्या गलत है और क्या सही। उसकी पत्नी समाज के डर से सब कुछ अनदेखा करती है। हम यह भी कह सकते हैं कि वो औरत खुद में एक घुटन भरी जिंदगी व्यतीत करती है, उस इंसान के साथ, परन्तु कभी अपने हक की बात इस डर से नहीं कह पाती कि कहीं घर में लड़ाई-झगड़ा न हो जाए। दोहरा समाज भी यही बोल कर तसल्ली देता है कि अपने घर में हो खाने को रोटी, पहनने को कपड़ा मिल रहा और क्या चाहिए जिंदगी में।
यहां पर मैं समाज में रहते ऐसे इंसानों से पूछना चाहती हूं कि क्या यही सच है, सिर्फ यही जिंदगी है। क्या हर इंसान को शादी के बाद एक दूसरे के प्रति वफादार नहीं रहना चाहिए? और क्या ऐसे आदमी हक रखता है पिता बनने का, जो अनैतिक फितरत का शौकीन है। जो किसी के प्रति वफादारी निभाना जानता ही नहीं है। अगर कोई लड़का या लड़की अच्छी पत्नी या अच्छा पति नहीं बन पाया तो वो कभी अच्छे माता-पिता भी नहीं बन सकते। आखिर ये सब बातें कब समझ पाएगा हमारा समाज, शायद कभी नहीं या समझ पाएगा आप खुद ही सोचना कि क्या ऐसे संभव है।
पिता बनकर चाहे वो अपनी संतान को असल में बहुत प्यार कर भी ले, तो भी उसके बच्चे उन नकारात्मकता का शिकार बनेंगे ही जो एक जोड़ी के बीच है। इस लिए मेरा मानना है कि चाहे जो भी हो अगर परिवार बढ़ाने का सोचा है। तो फिर अपनी बहुत सी आदतों को बदलना ही होगा। आप सिर्फ एक शरीर को जन्म नहीं दे रहे, बल्कि एक जिंदगी को जन्म दे रहे हैं और उसकी पूरी जिंदगी आपकी छवि पर निर्भर करती है। एक नाखुश जोड़े (पति-पत्नी) के साथ पले हुए बच्चे हमेशा कहीं ना कहीं कष्ट जरूर सहते ही रहते हैं। जिंदगी में उन्हे अलग-अलग तरह की चिंताएं होना एक आम समस्या है। किसी में आत्मविश्वास कम है तो कोई रिश्तों के बंधन से डरता है तो कोई अपने रिश्ते में हमेशा ही डरा हुआ रहता है या भरोसे की जगह नहीं बना पाता।
यहां हम सिर्फ एक पिता की बात कर रहे हैं, तो यही कहूंगी कि एक पिता का किरदार बहुत साफ, प्रेम से भरपूर, परिवार के हर एक सदस्य को लेकर गंभीर होना, अपने परिवार को महत्वपूर्ण मानने वाला और हर हाल मैं अपने बच्चों को समझने वाला होना चाहिए। तब ही एक पिता एक अच्छी जिंदगी की नींव रख पाएगा और तब ही समाज में एक बड़ा सुधार देखा जा सकता है।
मेरे प्रिय पाठको में यानि हयात अगली बार फिर किसी रिश्ते को लेकर अपने शब्दों में एक कहानी लेकर आउंगी।
एक बात और ये मेरी आस-पास की जिंदगी से मिली सीख की एक छोटी सी कहानी है। इसमे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं माफी मांगती हूं, किसी को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।
लेखक- हयात
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