नई दिल्ली, 19 फरवरी (The News Air): कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों… मशहूर शायर दुष्यंत कुमार की ये चंद लाइनें दिल्ली की कुछ ब्लाइंड वुमेन पर सटीक बैठती हैं। यह ब्लाइंड वुमेन अंधेरे से उजाले की तरफ बढ़ने की कोशिश हर रोज कर रही हैं। इनके जज्बे की कहानी बताती है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत हैं, बिना आंखों के भी जिंदगी के हर रंग को महसूस किया जा सकता है। माया आंखों से देख नहीं सकती, लेकिन उसके हाथ बड़े आसानी से काम करते हैं, वह उबलते हुए तेल में टमाटरों को छीलती, काटती और चलाती हैं। उसके पास बस सूंघने और छूने की क्षमता है। जिसके दमपर वह कुछ ही मिनटों में स्वादिष्ट पास्ता सॉस बनकर तैयार कर देती है। यह कुकिंग क्लास एक मशहूर शेफ की गाइडेंस में चल रही है। यह केवल एक कुकिंग क्लास नहीं है, बल्कि दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में जिंदगी के जज्बे की क्लास है।
संवर रहा है नेत्रहीन लोगों का जीवन : 2021 में हौज खास एन्क्लेव स्थित NAB इंडिया-सेंटर फॉर ब्लाइंड वूमेन एंड डिसेबिलिटी स्टडीज के खूबसूरत लॉन में ‘ब्लाइंड बेक’ एक कैफे के रूप में शुरू हुआ। कैफे ने अब अपने लेवल को एक फाइव स्टार होटल तक बढ़ा दिया है, यह एक मजबूत संदेश भेज रहा है कि ब्लाइंड लोग भी खाना बना सकते हैं और रेस्तरां चला सकते हैं। NAB सेंटर की संस्थापक और निदेशक शालिनी खन्ना सोढ़ी को उम्मीद है कि यह पहल नेत्रहीन लोगों के जीवन को संवारने का काम करेगी। उन्होंने बताया कि NAB केंद्र में महिलाओं को जीवन में आगे बढ़ने के लिए बेसिक कुकिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। अब तक लगभग 4000 लड़कियों ने बेसिक कुकिंग सीखी है। कैफे और नए आउटलेट से जुड़ी 6 महिलाओं की टीम हर महीने 15,000 रुपये से 18,000 रुपये तक कमाती है। बेसिक कुकिंग ट्रेनर माया ठकुरी, लड़कियों को कैफे में काम करते देख गर्व महसूस करती हैं। नेपाल के एक छोटे से गांव से आने वाली माया ने NAB सेंटर में सब कुछ सीखा और अब खुद एक स्नातक और प्रशिक्षक हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने 16 साल की उम्र में यहां NAB केंद्र में ही ABCD से शुरू करके सबकुछ सीखा।’ अब 30 वर्षीय माया NAB बेसिक कुकिंग की ट्रेनर हैं।
कैसे किया कठिनाईयों को पार? : होटल में पाक कला (खाना बनाने की कला) के निदेशक अरुण सुंदरराज, कुछ साल पहले जब महिलाओं को खाना पकाने की ट्रेनिंग देने के लिए NAB केंद्र गए थे, तो ये अनुभव उनके लिए भी सीखने का एक नया रास्ता था। सुंदरराज ने बताया, ‘शुरू में मुझे लगा कि खाना बनाने में देखना बहुत जरूरी है, तो ये कैसे काम करेगा? फिर मैंने घर वापस आकर आंखें बंद करके खाना बनाने की कोशिश की। इसी दौरान मुझे खाना पकाने में गंध और स्पर्श की ताकत का एहसास हुआ। मैंने यह भी देखा कि नेत्रहीन लोग स्पर्श और बनावट के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्योंकि यही उन्हें रोज़मर्रा के जीवन में मदद करता है। ये समझ एक शुरुआत थी और तब से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘बाद में, जब NAB केंद्र में ‘ब्लाइंड बेक’ शुरू हुआ, तो मुझे महिलाओं द्वारा बनाए गए प्रोडेक्ट देखकर खुशी हुई और हमने अपने कर्मचारी-भोजन क्षेत्र के लिए कैफे के साथ जुड़ने के बारे में सोचा क्योंकि कोविड महामारी के चलते मौजूद कैफे बंद था।’
पेशेवर रसोई की क्लास भी दी जाएगी : होटल में कैफे चलाने वाली महिलाओं के कौशल को बढ़ाने के लिए, सुंदरराज कुछ विशेष सत्र भी आयोजित करेंगे ताकि उन्हें बताया जा सके कि एक पेशेवर रसोई बड़े स्तर पर कैसे काम करती है। ऐसे ही एक सत्र में, रसोई के काउंटर पर काम कर रही महिलाओं के बीच तारा को हर कदम को ध्यान से दोहराते देखा गया। उसने पिछले महीने अपने पिता को खो दिया था, लेकिन काम पर वापस लौटने का फैसला किया क्योंकि अब उसके पहले से ज्यादा आर्थिक जिम्मेदारियां हैं। तारा 30 साल की है और उसकी दृष्टि सिर्फ 20% है। वह 2021 में NAB केंद्र में ग्राहक सेवा का कोर्स करने आई थी, लेकिन उसे खाना पकाने और बेक करने में दिलचस्पी हो गई। आज, वह ‘ब्लाइंड बेक’ की प्रमुख टीम का हिस्सा है। यह कहानी सिर्फ स्वादिष्ट भोजन की नहीं है, बल्कि दृष्टिबाधित लोगों के हौसले और समाज में उनके योगदान की भी है। उम्मीद है कि ये कहानी दूसरों को भी प्रेरित करेगी और समाज में समावेशिता को बढ़ावा देगी।