यूं तो भारत की आजादी के लिए कई वीरों ने अपने जान की कुर्बानी दे दी थी। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा भी आजादी का मतवाला था जिसने आजादी की क्रांति का बिगुल 1857 में ही फूंक दिया था। इसीलिए आज भी जब देश के आजादी की बात होती है तो मंगल पाण्डेय का नाम जैसे सबके जुबान पर खुद ब खुद ही बड़े ही अभिमान के साथ आ जाता है।
पता हो कि, मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए भी बहुत प्रेरित किया था। लेकिन उस वक्त किसी में भी उनका साथ देने का सामर्थ्य नहीं था। आखिरकार मंगल पाण्डेय अकेले ही एक घायल और क्रोधित शेर की तरह अंग्रेज़ों से भिड़ गए थे ।
इतिहास भी जिसे कहता है शूरवीर
वहीं इतिहास के अनुसार 1850 के दशक में सिपाहियों के लिए नई इनफील्ड राइफल भारत लाई गई थी। लेकिन तब इसमें लगने वाली कारतूसों को मुंह से काटकर राइफल में लोड करना होता था। वहीं जब बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाहियों को पता चला कि, इनमें लगने वाली कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। यह जानने के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों वर्ग के सिपाहियों ने भयंकर नाराजगी जताई।
इसी मुद्दे पर 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने अपना विद्रोह कर दिया, उस वक्त वह बंगाल के बैरकपुर छावनी में तैनात थे। उन्होंने न केवल कारतूस का इस्तेमाल करने से साफ़ मना किया बल्कि साथी सिपाहियों को ‘मारो फिरंगी को’ नारा देते हुए सैन्य विद्रोह और अगंरेजी हुकुनत से लड़ने के लिए प्रेरित किया। उसी दिन मंगल पाण्डेय निडरता से ने दो अंग्रेज अफसरों पर भी हमला कर दिया था।
इस घटना के बाद उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया और उन्होंने बड़ी ही बहादुरी से अंग्रेज अफसरों के खिलाफ अपने विद्रोह की बात स्वीकार की। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और तारीख मुकर्र हुई 18 अप्रैल। लेकिन फिर बगावत के डर से फिर मंगल पाण्डेय को 10 दिन पहले ही यानी आज के दिन 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी गई। लेकिन तब तक तो मंगल पाण्डेय अपने कर्मों और बहादुरी से देश को जगा चुके थे। इस घटना के बाद सैन्य बगावत भी हुई जिसने बाद साल 1857 में आजादी के पहले संग्राम का उदय हुआ. साथ ही भारत और इसके देशवासियों में ये भरोसा पैदा हुआ कि, अंग्रेज़ों को हराना और उन्हें यहां से मार भगानासंभव है । इस सैन्य विद्रोह के 90 साल बाद आखिरकार भारत को आज़ादी मिल ही गई।
सैदव स्मरण रहेगा मंगल पाण्डेय का बलिदान
तो दोस्तों आपके और हमारे लिए यह स्मरण रखने की बात है कि, किअसे देश की आने वाली पीढ़ियां आराम से आजाद हवा में सांस ले सकें और उनका भविष्य हर लिहाज से सुरक्षित हो, इसके लिए वैसे कई वीर नौजवानों ने देश के लिए कुर्बानी दे दी। लेकिन इसे सैन्य क्रांति कहें या कहें आजादी की पहली चिंगारी, उसकी मशाल जलाने वाले वीर मंगल पाण्डेय ही तो थे। शहीद मंगल पाण्डेय के इस बलिदान देश हमेशा ऋणी रहेगा।






