Aravalli Range Definition को लेकर फैलाए जा रहे तमाम भ्रमों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने विराम लगा दिया है। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि अब पहाड़ की तलहटी और दो पहाड़ों के बीच की खाली जमीन भी ‘अरावली रेंज’ का हिस्सा मानी जाएगी, जिससे अवैध निर्माण और खनन पर करारी चोट लगेगी।
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में उन बारीकियों को उजागर किया गया है जिसे अक्सर लोग छुपा जाते हैं, जिससे यह साफ हो गया है कि अरावली का 90% हिस्सा अब पूर्ण संरक्षण में है।
100 मीटर की पहाड़ी और 1/2 किलोमीटर का नियम
अक्सर यह बहस होती है कि अरावली पहाड़ी क्या है और अरावली रेंज क्या है। भू-विज्ञान (Geology) के विश्वस्तरीय मानकों और रिचर्ड मर्फी की परिभाषा के अनुसार, 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को पर्वत माना जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इसलिए खास है क्योंकि इसमें स्पष्ट किया गया है कि कोई भी पर्वत श्रृंखला ईंट की दीवार की तरह सीधी खड़ी नहीं होती।
फैसले के मुताबिक, संरक्षण केवल पहाड़ की चोटी तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके बेस (धरातल) से लेकर ऊंचाई तक पूरा हिस्सा संरक्षित है। सबसे बड़ी बात यह है कि अगर एक 100 मीटर की पहाड़ी है और दूसरी पहाड़ी उसके पास है, और दोनों के बीच में आधा किलोमीटर (500 मीटर) का फासला है, तो वह बीच की जमीन भी ‘अरावली रेंज’ का ही हिस्सा मानी जाएगी और वह भी पूरी तरह संरक्षित रहेगी।
खनन को लेकर फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश
अरावली क्षेत्र में माइनिंग को लेकर कई तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि नए नियमों और परिभाषा के बाद अरावली का 90% हिस्सा सुरक्षित हो चुका है। इसमें प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट, रिजर्व फॉरेस्ट और इको-सेंसिटिव जोन (1 किलोमीटर का दायरा) शामिल हैं।
आंकड़ों की बात करें तो माइनिंग एक्टिविटी के लिए 1% से भी कम, यानी सिर्फ 0.19% क्षेत्र की बात कही गई है, और वहां भी अभी कोई खदान नहीं खोली गई है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं कि अगर भविष्य में कोई स्वीकृति दी भी जाती है, तो उसके लिए पहले एक वैज्ञानिक मैनेजमेंट प्लान बनाना होगा और ICFRE (वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद) से अनुमति लेनी होगी।
दिल्ली से गुजरात तक संरक्षण का दायरा
यह नई परिभाषा केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है। अरावली, जो भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है, दिल्ली से शुरू होकर हरियाणा और राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली, फरीदाबाद और गुड़गांव में माइनिंग की कोई गुंजाइश नहीं है।
गुड़गांव की सुल्तानपुर झील, अलवर का सरिस्का, उदयपुर की झीलों और अजमेर की पुष्कर व आनासागर झील के आसपास का 500 मीटर का एरिया भी संरक्षित क्षेत्र घोषित है। यह पूरी टोपोग्राफी, जो गुजरात के बनासकांठा और साबरकांठा तक जाती है, अब सख्त कानूनी पहरे में है।
आम आदमी और पर्यावरण पर असर
इस फैसले का सीधा असर अवैध खनन और रियल एस्टेट के अवैध विस्तार पर पड़ेगा। जो लोग पहाड़ों के बीच की खाली जमीन को ‘समतल’ बताकर वहां निर्माण कार्य करने या अवैध गतिविधियां चलाने की फिराक में थे, उनके लिए रास्ते बंद हो गए हैं। यह फैसला न केवल अरावली के अस्तित्व को बचाएगा, बल्कि दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में गिरते भूजल स्तर और बढ़ते प्रदूषण को रोकने में भी मददगार साबित होगा। अरावली एक प्राकृतिक बैरियर है जो थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकता है, इसलिए इसका संरक्षण आम आदमी के जीवन के लिए बेहद जरूरी है।
जानें पूरा मामला
अरावली में अवैध खनन को रोकने और जंगल को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया और पर्यावरण मंत्रालय ने मिलकर अरावली की एक व्यापक परिभाषा तय की है। इसका मुख्य उद्देश्य अवैध खनन को जड़ से खत्म करना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पर्यावरण मंत्रालय के ‘ग्रीन अरावली वॉल मूवमेंट’ की भी सराहना की है, जो इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को बचाने की एक बड़ी मुहिम है।
मुख्य बातें (Key Points)
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Gap Rule: दो पहाड़ियों के बीच मौजूद 1/2 किलोमीटर (500 मीटर) तक की जमीन भी अब अरावली रेंज का हिस्सा मानी जाएगी।
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Protection: अरावली का लगभग 90% हिस्सा अब पूरी तरह से संरक्षित (Protected) घोषित है।
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Mining Limit: माइनिंग की संभावना 1% से भी कम (0.19%) क्षेत्र में है, वह भी सख्त वैज्ञानिक शर्तों के साथ।
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Scope: यह नियम दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान से लेकर गुजरात तक पूरी अरावली बेल्ट पर लागू होगा।






