Aravalli Hills Mining Issue: देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों को रेगिस्तान बनने से रोकने वाली अरावली की पहाड़ियों (Aravalli Hills) पर एक नई और तीखी बहस छिड़ गई है। सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले के बाद यह डर सताने लगा है कि क्या विकास और खनन के नाम पर अब इन पहाड़ियों का अस्तित्व मिटा दिया जाएगा? हालांकि, केंद्र सरकार ने भरोसा दिलाया है कि पहाड़ियां सुरक्षित हैं, लेकिन जमीनी हकीकत पर स्थानीय लोग ‘ईंट से ईंट बजाने’ को तैयार बैठे हैं।
यह पूरा विवाद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद गरमाया है, जिसमें कहा गया कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को जंगल के रूप में वर्गीकृत (Classify) नहीं किया जा सकता। इस खबर के आते ही पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय निवासियों की नींद उड़ गई है।
पर्यावरण मंत्री का दावा- ‘भ्रम फैलाया जा रहा है’
इस मुद्दे पर मचे बवाल के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को खुद सामने आकर सफाई देनी पड़ी। उन्होंने साफ कहा कि अदालत के आदेश को लेकर कुछ लोग बेवजह ‘भ्रम’ फैला रहे हैं। मंत्री ने डेटा पेश करते हुए दावा किया कि सरकार ‘ग्रीन अरावली’ के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “मेरा यह स्टेटमेंट लिख लीजिए, 90% से ज्यादा अरावली सुरक्षित है।”
मंत्री ने आंकड़ों का हवाला देते हुए समझाया कि कुल अरावली क्षेत्र 14,47,000 वर्ग किलोमीटर है। उनके अनुसार, अभी के 39 जिलों में से केवल 27 किलोमीटर यानी मात्र 2% हिस्से में ही माइनिंग की संभावना हो सकती है, बाकी हिस्सा सुरक्षित है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर एक पहाड़ी और दूसरी पहाड़ी के बीच 500 मीटर का गैप है, तो वह जमीन भी अरावली रेंज ही मानी जाएगी।
‘जान दे देंगे, पर पहाड़ नहीं देंगे’
सरकार के दावों के उलट, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। अरावली क्षेत्र के आसपास रहने वाले स्थानीय लोग इस फैसले से बेहद आहत और गुस्से में हैं। वीडियो में स्थानीय ग्रामीणों का दर्द साफ झलक रहा है। उनका कहना है कि ये पहाड़ियां ही उनका जीवन हैं। बच्चे यहां खेलते हैं और मवेशी यहां चरते हैं।
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने चेतावनी देते हुए कहा, “हमारी 10-20 पीढ़ियां इस पहाड़ को बचाने में खप गईं। अगर हमारी बकरियां नहीं चरेंगी, तो हम दूध कहां से पिएंगे? अगर सुप्रीम कोर्ट इस गाइडलाइन को वापस नहीं लेता, तो हमें चाहे जान देनी पड़े, हम ईंट से ईंट बजा देंगे, लेकिन अरावली को बचाकर मानेंगे।” लोगों का आरोप है कि सरकार खनन और फैक्ट्रियां लगाकर अपनी इनकम बढ़ाना चाहती है, जबकि इससे उनका जीवन नष्ट हो जाएगा।
विपक्ष का हमला- ‘पहले आइडिया छोड़ो, फिर पलट जाओ’
इस मुद्दे पर सियासत भी तेज हो गई है। विपक्षी नेताओं ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। एक नेता ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार की आदत है कि पहले कोई ‘आइडिया ड्रॉप’ करो, फिर उसका ‘वाटर टेस्ट’ करो और जब विरोध ज्यादा हो तो थोड़ा पलट जाओ। वहीं, एक अन्य नेता ने कहा कि अगर अरावली नहीं बची, तो दिल्ली और हरियाणा में हाहाकार मच जाएगा। हालांकि, सरकार के समर्थकों का कहना है कि विपक्ष सच छिपाकर केवल झूठ फैला रहा है, क्योंकि देश के विकास के लिए मिनरल्स और सीमेंट भी जरूरी हैं।
हमारा विश्लेषण: दिल्ली के अस्तित्व पर संकट?
वरिष्ठ पत्रकार के तौर पर इस मामले का विश्लेषण करें तो यह केवल एक पहाड़ या जमीन के टुकड़े का विवाद नहीं है, बल्कि यह दिल्ली-एनसीआर के अस्तित्व का सवाल है। अरावली हिल्स पश्चिम से आने वाली थार मरुस्थल (Thar Desert) की धूल भरी आंधियों को दिल्ली तक पहुंचने से रोकती हैं। अगर 100 मीटर की ऊंचाई का तर्क देकर छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल दिया गया, तो यह ‘बफर जोन’ खत्म हो जाएगा। इसका सीधा असर यह होगा कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर (AQI) और खतरनाक हो जाएगा और यहां की हवा में नमी खत्म हो जाएगी। अरावली हिल्स दिल्ली के ‘फेफड़े’ हैं, और फेफड़ों के किसी भी हिस्से को काटना जानलेवा साबित हो सकता है।
‘जानें पूरा मामला’
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली हिल्स में जंगल की परिभाषा को लेकर एक टिप्पणी की थी, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों को वन क्षेत्र से बाहर रखने की बात सामने आई। पर्यावरणविदों का मानना है कि इससे बिल्डर माफिया और खनन माफिया को खुली छूट मिल जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक, अरावली का 90% हिस्सा इसी दायरे में आ सकता है, जिससे गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैले इस पर्वत श्रृंखला के ईको-सिस्टम के नष्ट होने का खतरा है।
मुख्य बातें (Key Points)
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अरावली में खनन का खतरा, 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों पर विवाद।
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पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा- 90% अरावली सुरक्षित, केवल 2% क्षेत्र में माइनिंग संभव।
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स्थानीय ग्रामीणों ने दी चेतावनी- ‘जान दे देंगे लेकिन पहाड़ नहीं खोदने देंगे’।
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अरावली हिल्स थार रेगिस्तान को दिल्ली की ओर बढ़ने से रोकने वाली सबसे बड़ी प्राकृतिक दीवार है।






