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मजदूरों की रोजी-रोटी पर ‘राम जी’ बिल का प्रहार! मलविंदर कंग ने केंद्र को घेरा—”यह गरीबों को खत्म करने की साजिश”

किसान विरोधी कानूनों के बाद, अब मोदी सरकार मजदूर विरोधी वीबी-जी राम जी बिल लेकर आई है: कंग

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शुक्रवार, 19 दिसम्बर 2025
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Malvinder Kang
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नई दिल्ली, 19 दिसंबर (राज) आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद मलविंदर सिंह कंग ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र के प्रस्तावित वीबी-जी राम जी बिल का कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे ग्रामीण मजदूरों के लिए देश के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम मनरेगा को कमजोर करने और प्रभावी तरीके से खत्म करने के उद्देश्य से उठाया गया एक खतरनाक और पिछड़ा कदम बताया।

इस बिल पर बहस में हिस्सा लेते हुए कंग ने इसकी तुलना रद्द किए जा चुके कृषि कानूनों से की। उन्होंने कहा कि जिस तरह किसान विरोधी कानूनों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू किए थे क्योंकि वे किसानों की रोजी-रोटी के लिए खतरा थे, उसी तरह मनरेगा में प्रस्तावित बदलाव भारत के सबसे गरीब, अकुशल और कमजोर मजदूरों के लिए ऐसा ही खतरा पैदा करते हैं।

कंग ने कहा कि मनरेगा सिर्फ एक रोजगार योजना नहीं है, बल्कि एक अहम सामाजिक सुरक्षा जाल है। उन्होंने कहा कि इसके लागू होने के बाद गांवों में ऐसी अनगिनत कहानियां सामने आई थीं जहां परिवार सम्मानजनक जीवन जी रहे थे और पहली बार गरीब घरों में सुनिश्चित रोजगार व आमदनी के कारण दीवाली जैसे त्योहार खुशी से मनाए गए।

बिल की विशेष व्यवस्थाओं पर गंभीर आपत्ति उठाते हुए ‘आप’ सांसद ने कहा कि खेती के पीक सीजन के दौरान काम को सीमित करने वाली धाराएं मजदूरों को उस समय रोजगार से वंचित कर देंगी जब उन्हें आमदनी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। उन्होंने सवाल किया कि अगर ग्रामीण मजदूरों को नाजुक समय के दौरान काम देने से इनकार कर दिया जाता है, तो उनके पास रोजी-रोटी का कौन सा विकल्प होगा?

वित्तीय मोर्चे पर कंग ने केंद्र के हिस्से को 90% से घटाकर 60% करने के प्रस्ताव की आलोचना की, जिससे राज्यों पर ज्यादा बोझ पड़ेगा। उन्होंने दलील दी कि राज्य पहले से ही गंभीर वित्तीय दबाव में हैं, क्योंकि राजस्व का बड़ा हिस्सा केंद्र द्वारा जीएसटी के जरिए इकट्ठा किया जा रहा है, जिससे राज्यों के पास सीमित संसाधन रह गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्यों से ज्यादा हिस्सेदारी की उम्मीद करना गैर-वाजिब और बेइंसाफी है।

पंजाब की वित्तीय हालत का जिक्र करते हुए कंग ने बताया कि पिछली सरकारों ने सूबे पर कर्ज का बड़ा बोझ छोड़ा है। उन्होंने सवाल किया कि अगर केंद्र अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटता है तो वित्तीय तौर पर जूझ रहे राज्य मनरेगा को कैसे बरकरार रख पाएंगे।

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कंग ने स्पष्ट तौर पर मांग की कि 90% केंद्रीय हिस्से और 10% राज्य के हिस्से के मूल फंडिंग पैटर्न को बरकरार रखा जाना चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार से ग्रामीण रोजगार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता कम न करने की अपील की।

उन्होंने मनरेगा की बहुत कम मजदूरी का मुद्दा भी उठाया और कहा कि मौजूदा दरें बुनियादी गुजारे के लिए नाकाफी हैं। कंग ने मांग की कि मनरेगा के तहत न्यूनतम दैनिक दिहाड़ी बढ़ाकर 500 रुपये की जाए और राज्यों को इसे सही तरीके से लागू करने में मदद के लिए जरूरी केंद्रीय सहायता दी जाए।

अपने संबोधन के अंत में कंग ने कहा कि “विकसित भारत” का विजन गांवों को कमजोर करके हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने ग्रामीण रोजी-रोटी को खत्म करने वाली नीतियों की बजाय मजबूत सामाजिक सुरक्षा व्यवस्थाओं की मांग करते हुए कहा कि भारत तभी विकसित हो सकता है जब इसके गांव मजबूत होंगे, और गांव तभी मजबूत हो सकते हैं जब किसान और मजदूर सुरक्षित होंगे।

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