CIA Nuclear Device Lost In Himalayas – हिमालय की शांत और खूबसूरत वादियों में बर्फ के नीचे एक ऐसा राज दफन है जो किसी भी वक्त तबाही का कारण बन सकता है। 1960 के दशक में चीन की जासूसी करने के इरादे से नंदा देवी पर्वत पर ले जाया गया एक बेहद जहरीला न्यूक्लियर डिवाइस रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था। यह डिवाइस इतना खतरनाक है कि इसके मिलने या लीक होने का डर आज भी दुनिया को सता रहा है।
नंदा देवी की ऊंची चोटियों पर आज भी एक अनसुलझा रहस्य छिपा हुआ है। यह कहानी शुरू होती है 1960 के दशक में, जब पूरी दुनिया Cold War के दौर से गुजर रही थी। एक तरफ अमेरिका था और दूसरी तरफ सोवियत यूनियन। इसी बीच चीन तेजी से अपनी परमाणु ताकत बढ़ा रहा था। अमेरिका को गहरा शक था कि चीन चुपचाप मिसाइल और परमाणु हथियारों पर काम कर रहा है और इसी शक ने एक बेहद खतरनाक मिशन को जन्म दिया।
जान पर खेलकर शुरू हुआ खुफिया मिशन
चीन पर नजर रखने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने फैसला किया कि जासूसी सेटेलाइट से नहीं, बल्कि जमीन से की जाएगी। इसके लिए हिमालय की सबसे ऊंची और पवित्र चोटियों में से एक नंदा देवी को चुना गया, ताकि वहां ऊंचाई पर निगरानी उपकरण लगाकर चीन के मिसाइल टेस्ट और रेडियो सिग्नल पकड़े जा सकें। New York Times की रिपोर्ट के मुताबिक, इस काम के लिए अमेरिकी पर्वतारोहियों की एक टीम को चुना गया, जिन्हें उनकी स्किल्स के आधार पर भेजा गया था।
यह मिशन बहुत खतरनाक था क्योंकि टीम को 25,600 फीट की ऊंचाई पर जाना था। टीम अपने साथ एंटीना, केबल और सबसे अहम चीज ‘स्नैप 19 सी’ (SNAP 19C) लेकर ऊपर चढ़ रही थी। यह एक पोर्टेबल जनरेटर था जिसे Top Secret लैब में तैयार किया गया था। करीब 50 पाउंड वजनी यह डिवाइस रेडियोएक्टिव फ्यूल यानी प्लूटोनियम से चलता था, जो परमाणु बम बनाने में इस्तेमाल होता है। इसे सालों तक बिना किसी इंसान के काम करने के लिए बनाया गया था।
तूफान और गायब हुआ ‘मौत का डिवाइस’
अक्टूबर 1965 में जब टीम शिखर के करीब पहुंची, तो कुदरत ने अपना कहर बरपाया। वहां भीषण बर्फीला तूफान आ गया, जिससे हालात बेहद खतरनाक हो गए। भारतीय मिशन के प्रमुख कैप्टन एम एस कोहली को अपनी टीम की जान बचाने के लिए उस भारी-भरकम डिवाइस को वहीं ‘कैंप फोर’ पर छोड़कर तुरंत नीचे लौटने का आदेश देना पड़ा। टीम ने उस न्यूक्लियर डिवाइस को बर्फ में बांधकर सुरक्षित छोड़ दिया था।
लेकिन जब अगले साल टीम वहां लौटी, तो वह डिवाइस वहां से पूरी तरह गायब था। माना जाता है कि सर्दियों में आए किसी भारी हिमस्खलन (Avalanche) ने उस जहरीले जेनरेटर को बर्फ और ग्लेशियर की गहराइयों में कहीं दफना दिया। कई तलाशी अभियानों के बाद भी आज तक कोई नहीं जानता कि उस जहरीले कैप्सूल के साथ क्या हुआ।
करोड़ों लोगों की जान पर खतरा
डिवाइस के गायब होने से 1970 के दशक में भारत और अमेरिका की राजनीति में भूचाल आ गया था। सबसे बड़ा डर यह था कि इस डिवाइस में मौजूद प्लूटोनियम-238 (Pu-238) बेहद रेडियोएक्टिव है। अगर यह धीरे-धीरे पिघलती बर्फ के साथ गंगा नदी के स्रोत में मिल गया, तो यह पानी में जहर घोलने जैसा होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने संसद में भरोसा दिलाया था कि गंगा के पानी में रेडिएशन का कोई संकेत नहीं मिला है। वहीं, रिपोर्ट बताती है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और भारतीय नेतृत्व ने मामले को दबाने के लिए हाथ मिला लिया था।
कैंसर और डर्टी बम का खौफ
वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्लूटोनियम बहुत जहरीला होता है। अगर यह सांस या खाने के जरिए शरीर में चला जाए, तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। दावा है कि अमेरिकी पर्वतारोही जिम मैक्कार्थी को बाद में टेस्टिकुलर कैंसर हो गया था, जिसका कारण उन्होंने इसी मिशन के रेडिएशन को माना था। एक और बड़ी चिंता यह है कि अगर यह प्लूटोनियम गलत लोगों के हाथ लग गया, तो इसका इस्तेमाल ‘डर्टी बम’ (Dirty Bomb) बनाने में किया जा सकता है, जिसका मकसद धमाका करना नहीं बल्कि रेडियोएक्टिव जहर फैलाना होता है।
क्या है पृष्ठभूमि
साल 1965 में चीन की परमाणु गतिविधियों की जासूसी करने के लिए अमेरिका और भारत ने नंदा देवी पर्वत पर एक संयुक्त खुफिया मिशन चलाया था। इस दौरान प्लूटोनियम से चलने वाला एक न्यूक्लियर जनरेटर बर्फ़ीले तूफ़ान के कारण पहाड़ पर ही छूट गया और बाद में गायब हो गया। यह डिवाइस आज तक नहीं मिला है और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है।
मुख्य बातें (Key Points)
-
1965 में चीन की जासूसी के लिए नंदा देवी पर एक सीक्रेट न्यूक्लियर डिवाइस ले जाया गया था।
-
खराब मौसम के कारण टीम को प्लूटोनियम से भरा जनरेटर वहीं छोड़ना पड़ा, जो बाद में गायब हो गया।
-
डर है कि डिवाइस के लीक होने से गंगा का पानी रेडियोएक्टिव हो सकता है।
-
यह डिवाइस गलत हाथों में पड़ने पर ‘डर्टी बम’ बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।






