TMC MLA Humayun Kabir और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच छिड़ी सियासी जंग अब एक नए मोड़ पर आ गई है। मुर्शिदाबाद के भरतपुर से विधायक हुमायूं कबीर ने न केवल बाबरी मस्जिद बनाने की अपनी जिद को दोहराया है, बल्कि ममता बनर्जी पर ‘RSS एजेंट’ होने का गंभीर आरोप लगाकर राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। यह विवाद अब टीएमसी के लिए एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।
ममता बनर्जी पर साधा सीधा निशाना
हुमायूं कबीर को टीएमसी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते सस्पेंड कर दिया था, जिससे नाराज होकर उन्होंने ममता बनर्जी पर सीधा हमला बोला है। मीडिया से बातचीत में कबीर ने कहा, “ममता बनर्जी जनता के पैसे से जगन्नाथ मंदिर बनवा रही हैं और दुर्गा पूजा के लिए अनुदान दे रही हैं, लेकिन मुसलमानों के वक्फ के पैसे से इमामों को मात्र 3000 रुपये भत्ता दे रही हैं। यह सीधे तौर पर आरएसएस का काम है।”
बाबरी मस्जिद बनाने पर अड़े
हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की नींव रखने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपने फैसले से पीछे नहीं हटेंगे। तस्वीरों और वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि उनके इस ऐलान के बाद मुर्शिदाबाद के मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उनके समर्थन में खड़ा हो गया है। यह ममता बनर्जी के लिए दोहरी मुसीबत है—एक तरफ पार्टी के भीतर बगावत और दूसरी तरफ मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का डर।
क्या बंगाल के ओवैसी बन रहे हैं हुमायूं?
सियासी गलियारों में अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या हुमायूं कबीर पश्चिम बंगाल के असदुद्दीन ओवैसी बनने की राह पर हैं? कबीर ने ऐलान किया है कि वे 22 दिसंबर तक अपनी नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा करेंगे। खबर है कि वे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में करीब 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं।
अगर ऐसा होता है, तो यह ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी है। मुर्शिदाबाद जैसे जिले में, जहां मुस्लिम आबादी 70% से ज्यादा है, हुमायूं कबीर की पकड़ मजबूत है। यदि वे मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने में कामयाब होते हैं, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है।
राजनीतिक सफर और भविष्य
हुमायूं कबीर का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 2011 में वे कांग्रेस के साथ थे, फिर टीएमसी में आए और मंत्री बने। 2019 में वे टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार के बाद 2021 में वापस टीएमसी में लौट आए और विधायक बने।
अब एक बार फिर वे टीएमसी से अलग राह पकड़ रहे हैं। उनका दावा है कि उन्होंने मुर्शिदाबाद में टीएमसी का वोट शेयर 4% से बढ़ाकर 24% किया था, लेकिन पार्टी ने उनके साथ धोखा किया।
मुख्य बातें (Key Points)
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बगावत: हुमायूं कबीर ने ममता बनर्जी को ‘RSS एजेंट’ करार दिया।
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बाबरी मस्जिद: 6 दिसंबर को मस्जिद की नींव रखने की जिद पर अड़े हैं।
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नई पार्टी: 22 दिसंबर तक नई पार्टी बनाने और 135 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान।
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मुस्लिम वोट बैंक: हुमायूं कबीर के अलग होने से टीएमसी के मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंध लग सकती है।
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राजनीतिक इतिहास: कबीर पहले भी कांग्रेस और भाजपा में रह चुके हैं।






