Rupee vs Dollar Record Low की खबर ने बुधवार की सुबह पूरे देश को चौंका दिया। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की बैठक शुरू होने से पहले ही डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 90 का स्तर पार कर गया। पिछले आठ महीनों से जारी गिरावट के दौर ने रुपये को अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया है। जो रुपया लंबे समय से स्थिर माना जाता था, वह महज एक साल के भीतर 85 से 90 के पार चला गया। बुधवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 25 पैसे गिरकर 90.21 के ऑल टाइम लो (All-time low) पर बंद हुआ।
आजादी के वक्त $1 = ₹1 का सच
अक्सर यह कहा जाता है कि 15 अगस्त 1947 को 1 डॉलर 1 रुपये के बराबर था। लेकिन आरबीआई के ऐतिहासिक आंकड़े बताते हैं कि यह दावा गलत है। आजादी के समय भारतीय रुपया डॉलर से नहीं, बल्कि ब्रिटिश पाउंड से जुड़ा था। उस समय एक पाउंड 13.33 रुपये के बराबर था और डॉलर के मुकाबले पाउंड की वैल्यू को देखते हुए, 1 डॉलर की कीमत लगभग 3.30 रुपये थी। यानी तब भी डॉलर रुपये से महंगा था, लेकिन हालात आज से कहीं बेहतर थे।
गिरावट का ऐतिहासिक सफर
रुपये की गिरावट की कहानी 1966 से शुरू हुई, जब इंदिरा गांधी सरकार ने रुपये का 57.5% अवमूल्यन किया और डॉलर 4.76 रुपये से बढ़कर 7.50 रुपये हो गया। इसके बाद 1991 के आर्थिक संकट ने रुपये की कमर तोड़ दी और डॉलर 21 रुपये से सीधे 26 रुपये पर पहुंच गया। 2008 की वैश्विक मंदी और 2013 में ‘टेपर टैंट्रम’ (Taper Tantrum) के दौरान भी रुपये ने बड़े झटके सहे। 2013 में तो डॉलर 55 से उछलकर 68.80 रुपये तक जा पहुंचा था।
2025 में क्यों टूटा रुपया?
हालिया गिरावट के पीछे कई बड़े कारण हैं। डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद शुरू हुआ ‘टैरिफ वॉर’ इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जिससे निर्यात पर असर पड़ा। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों द्वारा लगातार भारतीय बाजार से पैसा निकालना (बिकवाली) और कच्चे तेल के आयात के लिए डॉलर की बढ़ती मांग ने रुपये को कमजोर कर दिया है।
आम आदमी पर मार
रुपये की इस गिरावट का सीधा असर आपकी जेब पर पड़ेगा। भारत अपनी जरूरत का 80% से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है, जिसका भुगतान डॉलर में होता है। डॉलर महंगा होने से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे ट्रांसपोर्टेशन महंगा होगा और महंगाई बढ़ेगी। विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों और घूमने जाने वालों के लिए भी अब खर्च बढ़ जाएगा।
जानें पूरा मामला
रुपया और डॉलर का रिश्ता किसी भी देश की आर्थिक सेहत का थर्मामीटर होता है। जब रुपया कमजोर होता है, तो आयात महंगा हो जाता है और देश का चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ जाता है। वर्तमान में वैश्विक अनिश्चितता, युद्ध और अमेरिकी नीतियों के कारण डॉलर मजबूत हो रहा है, जबकि भारतीय रुपया दबाव में है। सरकार और आरबीआई के सामने अब इसे संभालने की बड़ी चुनौती है।
मुख्य बातें (Key Points)
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रुपया पहली बार डॉलर के मुकाबले 90 के पार जाकर 90.21 पर बंद हुआ।
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आजादी के वक्त 1 डॉलर की कीमत लगभग 3.30 रुपये थी, न कि 1 रुपये।
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2025 में अब तक रुपया 5.16% कमजोर हो चुका है।
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विदेशी निवेशकों की बिकवाली और अमेरिकी टैरिफ वॉर गिरावट की मुख्य वजहें हैं।
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रुपये की कमजोरी से पेट्रोल-डीजल और विदेश यात्रा महंगी होने का खतरा है।






