Supreme Court on Digital Arrest Scam: देश भर में तेजी से फैल रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ के जाल पर अब सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। लोगों को वीडियो कॉल पर नकली पुलिस या सीबीआई अधिकारी बनकर डराने और लाखों रुपये ठगने के इस नए तरीके को कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। सोमवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए शीर्ष अदालत ने सीबीआई (CBI) को इस पूरे मामले की राष्ट्रव्यापी स्तर पर व्यापक जांच करने का आदेश दिया है।
डिजिटल अरेस्ट एक ऐसी शातिर धोखाधड़ी है, जिसमें साइबर अपराधी खुद को सरकारी जांच एजेंसियों का अधिकारी बताकर लोगों को वीडियो कॉल पर डराते हैं और उनसे भारी रकम वसूल लेते हैं। यह सिर्फ आम लोगों की गाढ़ी कमाई ही नहीं लूट रहा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह केवल एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित अंतरराष्ट्रीय साइबर नेटवर्क का हिस्सा है।
राज्यों को भी जांच में सहयोग का निर्देश
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह अपराध किसी राज्य की सीमा में बंधा नहीं है और पूरे देश में एक पैटर्न की तरह फैल रहा है। इसलिए, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों समेत सभी प्रदेशों से कहा गया है कि वे सीबीआई को इस घोटाले की गहन जांच के लिए अनुमति दें। यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी साइबर अपराध के मामले में राज्यों को सीधे तौर पर सीबीआई जांच की अनुमति देने का निर्देश दिया है।
सोशल मीडिया और पेमेंट कंपनियों को सख्त हिदायत
आज के दौर में साइबर अपराध सिर्फ बैंकिंग या फोन कॉल तक सीमित नहीं है। इसमें सोशल मीडिया, पेमेंट गेटवे, ई-वॉलेट, क्लाउड स्टोरेज और कई तरह के ऐप्स का इस्तेमाल होता है। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया कंपनियों, पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर्स, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और इंटरनेट सर्विस कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे सीबीआई को हर जरूरी जानकारी मुहैया कराएं। डिजिटल अरेस्ट से जुड़े सभी डेटा रिकॉर्ड और ट्रेल सौंपने में कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, क्योंकि साइबर अपराधों में मिनटों का अंतर भी अपराधियों को बचने का मौका दे देता है।
अंतरराष्ट्रीय गिरोहों पर शिकंजा कसने की तैयारी
कोर्ट ने यह भी माना कि डिजिटल अरेस्ट का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में बैठे साइबर अपराधियों द्वारा संचालित होता है। इनके कॉल सेंटर और सर्वर दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीकी देशों और टैक्स हैवन में स्थित हैं। इसलिए, सीबीआई को निर्देश दिया गया है कि वह इन अंतरराष्ट्रीय अपराधियों तक पहुंचने के लिए इंटरपोल (Interpol) की मदद ले। इंटरपोल की वांटेड लिस्ट, सर्वर ट्रैकिंग और साइबर इंटेलिजेंस की मदद से इन अपराधियों पर शिकंजा कसा जाएगा।
RBI से पूछा- खाते तुरंत फ्रीज क्यों नहीं होते?
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से भी तीखे सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने पूछा कि साइबर अपराधी जिन बैंक खातों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें तुरंत फ्रीज क्यों नहीं किया जाता? क्या बैंक धोखाधड़ी के पैटर्न को पकड़ने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का पर्याप्त इस्तेमाल कर रहे हैं? जब दुनिया भर में AI-आधारित बैंकिंग अलर्ट सिस्टम प्रभावी हैं, तो भारत इसमें पीछे क्यों है? अदालत ने कहा कि लाखों लोगों की बचत सिर्फ इसलिए लुट जाती है क्योंकि बैंक खाते समय पर फ्रीज नहीं हो पाते। एआई और एल्गोरिदम आधारित सिस्टम से संदिग्ध लेनदेन को तुरंत रोका जा सकता है।
जानें पूरा मामला
देश में डिजिटल अरेस्ट के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें ठग खुद को पुलिस, सीबीआई या ईडी का अधिकारी बताकर लोगों को वीडियो कॉल करते हैं और उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ का डर दिखाकर पैसे ऐंठते हैं। इस तरह के मामलों ने आम नागरिकों के साथ-साथ सुरक्षा एजेंसियों की भी चिंता बढ़ा दी थी। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में हस्तक्षेप किया है और सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ स्कैम की राष्ट्रव्यापी जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा।
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राज्यों को सीबीआई जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया गया।
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सोशल मीडिया और पेमेंट कंपनियों को डेटा साझा करने में ढिलाई न बरतने की हिदायत दी गई।
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अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को पकड़ने के लिए इंटरपोल की मदद लेने का निर्देश।
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आरबीआई से पूछा गया कि संदिग्ध बैंक खाते तुरंत फ्रीज क्यों नहीं किए जाते और एआई का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा।






