Prashant Kishor : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ को करारी हार का सामना करना पड़ा है। 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली ‘जन सुराज’ का खाता भी नहीं खुल सका। 150 सीटें जीतने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक झटका है, जो NDA की सुनामी में कहीं टिक नहीं पाए।
बिहार की राजनीति को बदलने और 30 साल के RJD-JDU-BJP के राज को खत्म करने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर को बिहार की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है।
150 सीटों का दावा, नतीजा ‘शून्य’
प्रशांत किशोर ने अपनी महीनों लंबी पदयात्रा के बाद यह ताल ठोकी थी कि वह 2025 में 150 सीटें जीतकर ‘किंग मेकर’ नहीं, बल्कि ‘किंग’ बनेंगे। उन्होंने यहां तक कहा था कि उनकी पार्टी या तो ऊंचाई पर जाएगी या पूरी तरह नीचे गिर जाएगी।
आज के चुनावी परिणाम दूसरे विकल्प को सही साबित करते दिखे। एक तरफ जहां NDA 200 से ज्यादा सीटों पर जीत का जश्न मना रही है, वहीं पीके की पार्टी ज्यादातर सीटों पर चौथे या पांचवें नंबर के लिए संघर्ष करती दिखी।
जाति के ‘ब्रांड’ के आगे ‘मुद्दे’ हुए फेल
प्रशांत किशोर ने अपनी हार की जो सबसे बड़ी वजहें रहीं, उनमें से एक उनका ‘जाति’ के बजाय ‘मुद्दों’ पर चुनाव लड़ना था। बिहार जैसे ‘जाति प्रधान’ प्रदेश में पीके ने पलायन, बेरोजगारी और व्यवस्था परिवर्तन जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन वे जातीय समीकरणों के आगे टिक नहीं पाए।
जन सुराज की हार ने यह साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में जाति और पहले से स्थापित ‘ब्रांड’ (लालू-नीतीश-मोदी) ही जनता की प्राथमिकता हैं।
गलत रणनीति, कमजोर संगठन
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पीके की हार का एक बड़ा कारण सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारना था। सभी सीटों पर फोकस करने के चक्कर में वोट बिखर गए और पार्टी का आधार ही कमजोर पड़ गया।
इसके अलावा, पार्टी में मजबूत चेहरों की भारी कमी थी। खुद प्रशांत किशोर ने भी चुनाव नहीं लड़ा। जिन लोगों को टिकट नहीं मिला, उन्होंने बगावत कर दी और कई निर्दलीय या दूसरी पार्टियों में चले गए, जिससे पार्टी में अंदरूनी कलह भी खुलकर सामने आ गई।
क्या वादे के मुताबिक राजनीति छोड़ेंगे प्रशांत किशोर?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या प्रशांत किशोर अपने वादे पर कायम रहेंगे? उन्होंने कई बार कहा था कि अगर वे विफल रहे तो यह मान लेंगे कि यह काम उनके बस का नहीं और वे राजनीति छोड़ देंगे।
इस ‘शून्य’ के झटके ने न केवल उनके राजनीतिक भविष्य पर, बल्कि उनकी एक रणनीतिकार के तौर पर साख पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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बिहार चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ का खाता भी नहीं खुला, पार्टी ‘शून्य’ पर सिमटी।
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पीके ने 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 150 सीटें जीतने का दावा किया था।
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बिहार के ‘जाति प्रधान’ समीकरणों के आगे प्रशांत किशोर की ‘मुद्दों’ पर आधारित राजनीति फेल हो गई।
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सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारना और मजबूत चेहरों की कमी को हार का मुख्य कारण माना जा रहा है।






