चंडीगढ़, 5 नवंबर (The News Air) पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी के मुद्दे पर केंद्र सरकार का यू-टर्न, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की एक और तानाशाही नीति के खिलाफ पंजाब और पंजाबियों की जीत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कदम ने राज्य सरकार के उस रुख को सही साबित कर दिया है, जिसमें इस कार्रवाई को तर्कहीन, गैर-जिम्मेदाराना और अनुचित बताया गया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले से ही इस फैसले का कड़ा विरोध कर रही थी और इस पक्षपाती निर्णय को अदालत में चुनौती देने के लिए पूरी तरह तैयार थी। भगवंत सिंह मान ने अहंकारी भाजपा नेतृत्व को किसान आंदोलन के बाद एक और सबक सिखाने के लिए पंजाबियों को बधाई दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाबियों को यह जज़्बा महान सिख गुरुओं से विरासत में मिला है, जिन्होंने हमें किसी भी प्रकार के ज़ुल्म, अन्याय और अत्याचार का विरोध करना सिखाया। उन्होंने दोहराया कि 1947 में देश के विभाजन के बाद लाहौर स्थित मूल विश्वविद्यालय के नुकसान की भरपाई के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी की स्थापना “पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947 (एक्ट VII)” के अंतर्गत की गई थी।
भगवंत सिंह मान ने कहा कि 1966 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व बरकरार रखा गया, जिसका अर्थ था कि विश्वविद्यालय पहले की तरह काम करता रहेगा और वर्तमान पंजाब राज्य के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों पर इसका अधिकार क्षेत्र इसी तरह कायम रहेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि तब से पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ राज्य की भावनात्मक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और समृद्ध विरासत का अभिन्न हिस्सा रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का यह तर्कहीन फैसला न केवल संबंधित हितधारकों को निराश करता है, बल्कि अच्छे शासन और विधि के सिद्धांतों के भी विरुद्ध है। उन्होंने बताया कि इससे शिक्षकों, पेशेवरों, तकनीकी विशेषज्ञों, विश्वविद्यालय के स्नातकों और अन्य वर्गों में व्यापक रोष उत्पन्न हुआ है।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य सरकार ने पहले ही यह निर्णय ले लिया था कि वह पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ की सीनेट और सिंडिकेट को अवैध रूप से भंग करने के खिलाफ हाई कोर्ट जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम स्थापित नियमों की गंभीर उल्लंघना है और यह क्षेत्र के सबसे पुराने और प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक, पंजाब यूनिवर्सिटी के लोकतांत्रिक और स्वायत्त अस्तित्व पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा कि सीनेट और सिंडिकेट जैसी प्रतिनिधि संस्थाओं को कमजोर करने की कोई भी कोशिश, न केवल अकादमिक समुदाय, बल्कि पंजाब के लोगों की आकांक्षाओं और सहभागिता की अवहेलना के समान है।
भगवंत सिंह मान ने कहा कि यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि पंजाब यूनिवर्सिटी पर पंजाब के अधिकारों की रक्षा करना राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार विश्वविद्यालय के कामकाज में अपने अधिकार, हिस्सेदारी या भूमिका को किसी भी तरह कम नहीं होने देगी।
उन्होंने शैक्षणिक संस्थाओं की स्वायत्तता और गरिमा के प्रति अपनी सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि पंजाब सरकार ऐसे मनमाने निर्णयों का विरोध करने के लिए राज्य की जनता के साथ मजबूती से खड़ी है।






