Supreme Court Debate : बिहार (Bihar) में वोटर लिस्ट (Voter List) के गहन पुनरीक्षण को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में लंबी बहस हुई। चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा मृत मतदाताओं और राज्य से बाहर शिफ्ट हुए लोगों के नाम हटाने की प्रक्रिया में अब तक 65 लाख नाम सूची से बाहर किए जा चुके हैं। इस कार्रवाई पर विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया, खासकर इस बात पर कि आधार कार्ड (Aadhaar Card) के आधार पर ही वोटर लिस्ट में शामिल करने या बाहर करने का निर्णय लिया जा रहा है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) ने चुनाव आयोग के इस तर्क को सही ठहराया कि आधार कार्ड को एकमात्र पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने विपक्ष के वकीलों को याद दिलाया कि आधार कानून (Aadhaar Act) के सेक्शन 9 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
बहस के बीच जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी पूछा कि बिहार की कुल 7.46 करोड़ आबादी में से कितने लोग राज्य के बाहर हैं। इस पर कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कहा कि अनुमानित संख्या 36 लाख है, जिनमें से 7 लाख अन्य राज्यों के मतदाता हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि फिर 65 लाख नाम कैसे हटाए गए।
जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि 22 लाख नाम मृत्यु के कारण हटाए गए, 36 लाख बाहर शिफ्ट हुए, और इनमें से 7 लाख दूसरी जगह के मतदाता हैं। उन्होंने कहा कि राज्य से बाहर शिफ्ट हुए मतदाताओं का आंकड़ा एक ग्रे एरिया है, जिस पर और स्पष्टता की जरूरत है।
इस बीच अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) ने कहा कि चुनाव आयोग के पास नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह काम संसद से पारित कानून द्वारा होता है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भले ही नागरिकता तय करने का अधिकार संसद के पास है, लेकिन वोटर लिस्ट में नागरिकों को शामिल करने और गैर-नागरिकों को हटाने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। सिंघवी ने इस पर जवाब दिया कि यदि किसी का नाम पहले से वोटर लिस्ट में है, तो उसे इस तरह नहीं हटाया जाना चाहिए।






