NGT Action on Open Defecation: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) के दौरान खुले में शौच की घटनाओं पर सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी की मुख्य पीठ ने शौचालय सुविधाओं की कमी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके साथ ही, प्रयागराज मेला प्राधिकरण (Prayagraj Mela Authority) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) को भी नोटिस भेजा गया है।
महाकुंभ में खुले में शौच पर याचिका का मामला
यह याचिका निपुण भूषण (Nipun Bhushan) द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यह दावा किया गया कि स्थानीय अधिकारियों ने भले ही अत्याधुनिक बायो-टॉयलेट्स लगाने की बात कही हो, लेकिन उनकी संख्या या साफ-सफाई की कमी के कारण श्रद्धालु अब भी गंगा नदी (Ganga River) के किनारे खुले में शौच करने को मजबूर हैं। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि लाखों की संख्या में लोग पर्याप्त सुविधाओं की अनुपलब्धता की वजह से स्वच्छता मानकों का पालन नहीं कर पा रहे हैं।
वीडियो क्लिप और रिपोर्ट से सामने आई सच्चाई
याचिकाकर्ता ने अपने दावे के समर्थन में कुछ वीडियो क्लिप भी साक्ष्य के रूप में जमा किए हैं। हाल ही में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) ने एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें प्रयागराज (Prayagraj) में चल रहे महाकुंभ मेले के दौरान गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता को लेकर गंभीर चिंताएं जताई गई हैं। रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि जिस जगह श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगा रहे हैं, वहां पानी में फेकल कोलीफॉर्म (Fecal Coliform) का उच्च स्तर पाया गया है, जो मानव और पशुओं के मल से उत्पन्न होता है।
24 फरवरी को होगी अगली सुनवाई
एनजीटी ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 24 फरवरी तय की है। इस दिन यूपी सरकार (UP Government), प्रयागराज मेला प्राधिकरण (Prayagraj Mela Authority) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया गया है। एनजीटी इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई कर सकता है अगर संबंधित अधिकारियों की ओर से ठोस समाधान नहीं पेश किया गया।
महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में साफ-सफाई और स्वच्छता बनाए रखना न केवल प्रशासन की जिम्मेदारी है, बल्कि यह आम श्रद्धालुओं की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है। इस मुद्दे पर एनजीटी की सख्ती यह दर्शाती है कि भविष्य में इस तरह की लापरवाहियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।