जेलेंस्की की नजर में समस्या यह है कि ये देश युद्ध को समाप्त करने की जरूरत तो बताते हैं, लेकिन अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए रूस के साथ व्यापार को आगे भी बढ़ा रहे हैं। वे युद्ध पर कोई रुख अपनाने से बचने के लिए बातचीत की आवश्यकता का हवाला देते हैं। इसलिए, जेलेंस्की की रणनीति अब दोहरी जान पड़ती है। उनकी रणनीति है कि तटस्थ देशों को रूस का परोक्ष समर्थक करार दें और जो शांति लाने की बात करते हैं, उन पर इस दिशा में कदम उठाने का दबाव बनाएं।
इस प्रक्रिया में, जेलेंस्की युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत के लिए मापदंड निर्धारित कर रहे हैं। इस तरह की बातचीत यूक्रेन के पीस फॉर्म्युले और पीस समिट की संयुक्त विज्ञप्ति से निकलनी चाहिए या उनका गंभीरता से अनुसरण किया जाना चाहिए। वार्ता फॉर्म्युले या विज्ञप्ति के विशिष्ट बिंदुओं पर भी हो सकती है, जैसे कि जबरन निर्वासित यूक्रेनी बच्चों की वापसी। इस तरह, जेलेंस्की को लगता है कि यूक्रेन बातचीत को अपने पक्ष में नियंत्रित कर सकता है।
दूसरा, जेलेंस्की को अच्छे से पता है कि अभी शांति वार्ता में शामिल होना यूक्रेन के लिए फायदेमंद नहीं है। यूक्रेन कुर्स्क ऑपरेशन के बावजूद रूसी हमले को पूरी तरह से रोक नहीं पाया है। इसकी वजह यूक्रेन को अमेरिका से सैन्य आपूर्ति मिलने में देरी जबकि रूस के पास पहले से पड़े हथियारों का खजाना है। रूस युद्ध के मैदान में लाशों की ढेर लगाने का जोखिम उठा सकता है, लेकिन यूक्रेन नहीं। इसलिए जैसा कि जेलेंस्की ने साक्षात्कार में कहा, यूक्रेन को अपनी जमीन देकर अपने लोगों को बचाना होगा। दूसरी तरफ, पुतिन, रूसी राजनीतिक व्यवस्था में अपनी स्थिति को देखते हुए जमीन के बदले यूक्रेन के लोगों छोड़ सकते हैं। यूक्रेन अगर रूस को अपनी जमीन दे दे तो युद्ध समाप्त करने का संभावित रास्ता तैयार हो सकता है।
इस नुकसान से बचने के लिए जेलेंस्की के पास अब एक ‘विजय योजना’ है। वो चाहते हैं कि पश्चिमी देश यूक्रेन को नाटो की सदस्यता के साथ-साथ लंबी दूरी के हथियारों का पैकेज दे। जेलेंस्की को लगता है कि इन दोनों कदमों से रूस अपनी सैन्य रणनीति पर दोबारा विचार करने को मजबूर होगा। इससे यूक्रेन के लिए रूस की बराबरी करने में मदद मिलेगी क्योंकि अभी तक यूरोपीय देशों के बीच भी इस बात पर एकमत नहीं है कि उन्हें कीव के लिए किस स्तर का समर्थन निर्धारित करना चाहिए। इतना ही नहीं, किसी भी देश में सरकार के बदलने पर समर्थन के मौजूदा स्तर में भी पूरी तरह बदलाव आ सकता है।
जेलेंस्की को लगता है कि अगर यूक्रेन को नाटो की सदस्यता देकर यूरोपियन सिक्यॉरिटी स्ट्रक्चर का हिस्सा बना लिया जाता है तो वह रूस के साथ निर्णायक बातचीत की मेज पर सौदेबाजी की अधिक शक्ति होगी। जेलेंस्की को यह भी डर है कि युद्ध यूं ही चलता रहा तो रूस भविष्य में कभी भी इसे तेज कर सकता है। यूरोपीय और नाटो की सिक्यॉरिटी गारंटी भविष्य में रूस के ऐसे नापाक मंसूबों को विफल करने का सबसे अच्छा तरीका है।
और अंत में, जेलेंस्की भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की सराहना करने लगे हैं। वो भारत-रूस रक्षा और तेल व्यापार को लेकर अभी भी निराश हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि इस समय नई दिल्ली के पास यूक्रेन का नजरिया समझने के लिए चीन से अधिक गुंजाइश हो सकती है। बीजिंग और मॉस्को के बीच दोस्ती के बहुत कम दिन हुए हैं। दूसरी ओर, नई दिल्ली ब्रिक्स और क्वाड के बीच तालमेल बिठा सकती है। यही कारण है कि वह भारत को यूक्रेनी बच्चों की वापसी की दुहाई दे रहे हैं।
मोदी, पुतिन से यूक्रेनी बच्चों की तलाश और कीव वापस करने के लिए कह सकते हैं। हालांकि, पुतिन दलील दे सकते हैं कि इन बच्चों को युद्ध से बचाने के लिए यूक्रेन से रूस लाया गया था। यह निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को शर्मिंदा करेगा, लेकिन यूक्रेन को उसके बच्चे वापस मिल जाएंगे। दूसरी तरफ मोदी को एक कूटनीतिक जीत और पुतिन को कुछ श्रेय मिलेगा।
यह बदले में भारत के लिए भी एक लिटमस टेस्ट होगा कि वह बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए कितनी दूर तक जाने को तैयार है। और अगर बच्चों को वापस करने पर प्रगति होती है, तो युद्ध को समाप्त करने के लिए अन्य वार्ताएं भी हो सकती हैं।
जेलेंस्की जानते हैं कि युद्ध को समाप्त करने के लिए उन्हें बातचीत की मेज पर आना होगा। उन्हें पता है कि युद्ध के मैदान में अकेले सैन्य ताकत रूस को नहीं रोक पाएगी। उन्हें एक हाइब्रिड स्ट्रैटिजी की आवश्यकता है जो रूस को अग्रिम मोर्चे पर रोकने और वैश्विक दक्षिण देशों के साथ बातचीत को एक साथ जोड़े ताकि वे एक मजबूत बातचीत की स्थिति में हों। चूंकि अमेरिकी चुनाव बहुत करीब हैं, इसलिए वे अपनी बाजी सुरक्षित रख रहे हैं। जेलेंस्की लचीला होने की इच्छा दिखा रहे हैं।