नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (The News Air): पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में एक कहावत कही जाती है। कुछ विवाद तो खुद ब खुद पनपते हैं, कुछ पैदा किए जाते हैं। अब जिसके पास ताकत होती है वो अपने हिसाब से अपने लिये फायदे की बात करता है। अगर इसे बड़े फलक पर देखें तो चीन के संदर्भ में यह कहावत सटीक बैठती है। चीन की विस्तारवादी नीति से दुनिया वाकिफ है। उसका अपने सभी पड़ोसियों से अलग अलग स्तर पर विवाद है। लेकिन बात यहां हम भारत और चीन की करेंगे। विवाद के इतिहास को समझने से पहले यहां यह समझना जरूरी है कि रूस के कजान शहर में ब्रिक्स से पहले पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग और अन्य मुद्दे पर जो सहमति बनी है अब उसे जमीन पर अमल में लाया जा रहा है। दोनों देशों की सेनाओं ने देपसांग और डोकलाम इलाके से करीब 40 फीसद टेंट और दूससे इंफ्रास्ट्रक्चर को हटा चुके हैं।
बताया जा रहा है कि देपसांग और डेमचोक में अस्थाई ढांचों को हटाने पर काम तेजी से चल रहा है। आज 20 फीसद और टेंपरेरी ढांचों को हटाया जा सकता है। इन दोनों पॉइंट्स पर दोनों देशों के स्थानीय कमांडर हर सुबह हॉटलाइन पर बात कर जानकारी साझा कर रहे हैं आगे क्या क्या करना है। एक या दो बार मीटिंग पॉइंट पर मुलाकात भी हो रही है। जिसमें डिसइंगेजमेंट को लेकर प्रक्रिया पर बातचीत हो रही है ताकि किसी तरह की शंका किसी भी पक्ष के दिल में ना बने।
डेमचोक में भारत और चीन दोनों तरफ से 10 से 12 तर अस्थाई ढांचा पत्थरों के बनाए गए थे। करीब 12 टेंट भी थे। इसी तरह देपसांग में चीन की सैनिक गाडियों में से 40 फीसद पीछे हटाई गई हैं। बताया जा रहा है कि इस प्रक्रिया के बाद दोनों तरफ की टीम साझा रूप में जमीनी हकीकत को जाचेंगी। फिलहाल किसी तरह का जमीनी जांच पड़ताल नहीं हुई है। बताया ये भी जा रहा है कि वेरिफिकेशन कीा प्रक्रिया दोनों तरह यानी जमीनी और एरियल होगी।