जब तक बल्ब का अविष्कार नहीं हो गया, तब तक थॉमस अल्वा एडिशन ने प्रयोग नहीं छोड़ा था… 2022 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रयोग को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब इस बयान के जरिए दे रहे थे. इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से सियासत में आए अखिलेश 2017 से लेकर अब तक 5 सियासी फॉर्मूला तैयार कर चुके हैं. यूपी के चुनावों में अखिलेश के इन प्रयोगों की खूब चर्चा हुई. हालांकि, अखिलेश का सिर्फ एक ही फॉर्मूला अब तक हिट हुआ है.
इस स्पेशल स्टोरी में अखिलेश के सभी 5 प्रयोग को डिटेल में पढ़ते हैं…
1. सपा मुखिया बने तो कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया
2017 में मुलायम सिंह की जगह पर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने. उस वक्त यूपी में अखिलेश के नेतृत्व में सपा की सरकार थी. सपा मुखिया बनने के बाद अखिलेश ने सबसे पहला प्रयोग कांग्रेस के साथ गठबंधन का किया.
अखिलेश ने यह गठबंधन उस वक्त यूपी की सियासत में तेजी से उभर रही बीजेपी को रोकने के लिए था, लेकिन अखिलेश इसमें सफल नहीं हुए. उनके नेतृ्त्व में पार्टी 50 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.
अखिलेश के इस प्रयोग की काफी आलोचना हुई. सपा के भीतर एक गुट ने कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने को लेकर भी सवाल उठाया. 2017 के चुनाव के बाद अखिलेश ने कांग्रेस से रास्ता अलग कर लिया.
2. बहनजी की पार्टी का लिया साथ लेकिन यहां भी हुआ खेल
2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने गठबंधन का नया प्रयोग किया. 23 साल बाद अखिलेश ने बहनजी की पार्टी बीएसपी के साथ गठबंधन की पहल की. प्रयोग के तहत सपा और बीएसपी का यूपी में गठबंधन भी हुआ. अखिलेश ने मायावती की पार्टी को एक सीट ज्यादा दी.
इस गठबंधन में अजित सिंह की पार्टी रालोद को भी शामिल किया गया. हालांकि, 2019 के चुनाव में यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया. गठबंधन का फायदा बसपा को तो हुआ, लेकिन सपा की सीटों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.
अखिलेश के 2 चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव बदायूं से और अक्षय यादव फिरोजाबाद से चुनाव हार गए. पत्नि डिंपल यादव भी कन्नौज से चुनाव नहीं जीत पाईं. रिजल्ट आने के बाद मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया.
3. छोटी पार्टियों का लिया साथ, सीटें बढ़ी पर सत्ता नहीं मिली
2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने बड़ी पार्टियों की बजाय छोटी पार्टियों का साथ लिया. सपा ने सुभासपा, आरएलडी, अपना दल (कमेरावादी) और केशव देव मौर्य की महान दल के साथ गठबंधन किया.
अखिलेश ने इस गठबंधन के सहारे बीजेपी को मजबूत चुनौती दी, लेकिन उनकी पार्टी सरकार में नहीं आ पाई. समाजवादी पार्टी 2022 के चुनाव में 111 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि उसके सहयोगियों को करीब 15 सीटों पर जीत मिली.
इतना ही नहीं, चुनाव बाद अखिलेश के पाले से धीरे-धीरे ये सहयोगी बाहर जाने लगे. इन छोटी पार्टियों के पुराने सहयोगी में अब अखिलेश के साथ कोई नहीं है.
4. पीडीए का फॉर्मूला तैयार किया, कांग्रेस को साथ लिया
2024 लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने एनडीए के खिलाफ पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का फॉर्मूला तैयार किया. इतना ही नहीं, अखिलेश ने चुनाव से पहले राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को भी साथ लिया.
अखिलेश का यह दोनों प्रयोग सफल रहा. स्थापना के बाद पहली बार समाजवादी पार्टी को यूपी की 37 लोकसभा सीटों पर जीत मिली. सपा गठबंधन ने 80 में 43 सीटों पर जीत दर्ज कर यूपी में बीजेपी को पटखनी दे दी.
अखिलेश को मिली इस सफलता में पीडीए की रणनीति सबसे कारगर रही.
5. अब पीडीए में अल्पसंख्यक के साथ अगड़ा भी जोड़ा
2024 तक पीडीए में ए का मतलब अल्पसंख्यक था, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने पीडीए के ए में अगड़ा को भी जोड़ दिया. पार्टी ने कद्दावर ब्राह्मण नेता माता प्रसाद पांडेय को यूपी विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाया है. इससे पहले सपा में यह पद पिछड़े नेताओं के पास था.
यूपी में करीब 9 प्रतिशत ब्राह्मण हैं और पूर्वांचल के क्षेत्र में इनका काफी सियासी दबदबा है. खासकर गोरखपुर, देवरिया, बस्ती और सिद्धार्थनगर इलाके मेयूपी के इन इलाकों में विधानसभा की 39 सीटें आती हैं, जहां पर पिछले चुनाव में सपा को सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली थी.
अखिलेश को उम्मीद है कि इन इलाकों में माता प्रसाद के जरिए ब्राह्मण वोट सपा के पाले में आएंगे.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं अखिलेश
मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई करने के बाद अखिलेश इंजीनियरिंग करने मैसूर चले गए. उन्होंने यहां सिविल विभाग से अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की. अखिलेश इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय चले गए, जहां से वे पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की.