नई दिल्ली,19 नवंबर (The News Air): Indira Gandhi First Woman Prime Minister of India : भारत देश की पहली महिला प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी एक संपन्न परिवार से थी। उनका पूरा नाम ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी’ था। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू शिक्षा को बहुत महत्व देते थे, इसी कारण उन्होंने अपनी पुत्री इंदिरा की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया। उन्होंने गरीबी मुक्त भारत का एक सपना देखा था जो आज तक साकार नहीं हो पाया।
आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के अवसर पर भारत की आयरन लेडी रहीं इंदिरा गांधी के बचपन से लेकर शहादत तक का सफर, 8 खास बातें…
1. प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म इलाहाबाद में 19 नवंबर 1917 को हुआ। बालपन से ही इंदिरा जी को पत्र-पत्रिकाएं तथा पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था, जो स्कूल के दिनों में भी जारी रहा। इसका फायदा उन्हें यह मिला कि उनके सामान्य ज्ञान की जानकारी सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्हें देश-दुनिया का भी काफी ज्ञान हो गया और वह अभिव्यक्ति की कला में निपुण हो गईं।
2. इंदिरा जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी वानर सेना बनाई और सेनानियों के साथ काम किया। विद्यालय द्वारा आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता में उनका कोई सानी नहीं था। वे हमेशा औसत दर्जे की विद्यार्थी रहीं। अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषयों में वह कोई विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकीं। लेकिन अंग्रेजी भाषा पर उन्हें बहुत अच्छी पकड़ थी। इसकी वजह थी पिता पंडित नेहरू द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए लंबे-लंबे पत्र।
3. उन्होंने सन् 1934-35 में स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में बनाए गए ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ में प्रवेश लिया। इसके बाद 1937 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। जब वे लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही थीं तो वहां आजादी समर्थक ‘इंडिया लीग’ की सदस्य बनीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी और ऐसे में सियासी उतार-चढ़ाव को वे बखूबी समझती थीं। यही वजह रही कि उनके सामने न सिर्फ देश, बल्कि विदेश के नेता भी उन्नीस नजर आने लगते थे। जनता की नब्ज समझने की उनमें विलक्षण क्षमता थी।
4. भारत लौटने पर उनका विवाह फिरोज गांधी से हुआ। वर्ष 1959 में ही उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। नेहरू के निधन के बाद जब लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो इंदिरा ने उनके अनुरोध पर चुनाव लड़ा और सूचना तथा प्रसारण मंत्री बनीं। इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में निडरता थी। साथ ही आपातकाल की घोषणा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल में डालना, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कुछ निर्णयों के कारण उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
5. उड़ीसा में एक जनसभा में गांधी पर भीड़ ने पथराव किया। एक पत्थर उनकी नाक पर लगा और खून बहने लगा। इस घटना के बावजूद इंदिरा गांधी का हौसला कम नहीं हुआ। वे वापस दिल्ली आईं। नाक का उपचार करवाया और तीन चार दिन बाद वे अपनी चोटिल नाक के साथ फिर चुनाव प्रचार के लिए उड़ीसा पहुंच गईं। उनके इस हौसलों के कारण कांग्रेस को उड़ीसा के चुनाव में काफी लाभ मिला। इंदिरा गांधी ने परिणामों की परवाह किए बिना कई बार ऐसे साहसी फैसले लिए, जिनका पूरे देश को लाभ मिला और उनके कुछ ऐसे भी निर्णय रहे जिनका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा लेकिन उनके प्रशंसक और विरोधी, सभी यह मानते हैं कि वे कभी फैसले लेने में पीछे नहीं रहती थीं।
6. इंदिराजी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भाग लेने इलाहाबाद आईं थीं। यह वाकया सन् 1973 का है, जब उनकी सभा के दौरान विपक्षी नेताओं ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया और उन्हें काले झंडे दिखाए गए। लेकिन उस जबरदस्त विरोध प्रदर्शन से इंदिरा जी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई। अपने संबोधन में विरोधियों को शांत करते हुए उन्होंने सबसे पहले कहा कि ‘मैं जानती हूं कि आप यहां इसलिए हैं क्योंकि जनता को कुछ तकलीफें हैं, लेकिन हमारी सरकार इस दिशा में काम कर रही है। इंदिराजी खामियाजे की परवाह किए बगैर फैसले करती थीं।
7. आपातकाल लगाने का काफी विरोध हुआ और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा लेकिन चुनाव में वे फिर चुनकर आईं। ऐसा चमत्कार सिर्फ वे ही कर सकती थीं। इंदिरा की राजनीतिक छवि को आपातकाल की वजह से गहरा धक्का लगा। इसी का नतीजा रहा कि 1977 में देश की जनता ने उन्हें नकार दिया, हालांकि कुछ वर्षों बाद ही फिर से सत्ता में उनकी वापसी हुई। उनके लिए 1980 का दशक खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया।
8. वे एक अजीम शख्यियत थीं और उनके भीतर गजब की राजनीतिक दूरदर्शिता थी। लालबहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा को शुरू में ‘गूंगी गुड़िया’ की उपाधि दी गई थी, लेकिन 1966 से 1977 और 1980 से 1984 के दौरान प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने अपने साहसी फैसलों के कारण साबित कर दिया कि वे एक बुलंद शख्यिसत की मालिक हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वे सिख अलगाववादियों के निशाने पर थीं और उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी तथा उनकी शहादत का सफर यही समाप्त हो गया। इस तरह राजनीति में अपना लोहा मनवाने वाली इंदिरा गांधी का निधन हो गया और वे लौह महिला के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
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