The News Air- लुधियाना अब पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स भी अपनी पढ़ाई के दौरान ही भविष्य की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर जियोस्पेशल लैब(रिमोट सेंसिंग और ज्योग्राफिक एरिया के बारे में सेटेलाइट इमेज के जरिए जानकारी जुटाने में मददगार) के जरिए रिसर्च और कृषि में किए जाने वाले नए बदलावों के संबंध में प्रोजेक्ट तैयार कर सकेंगे। इसके लिए पीएयू में जियोस्पेशल लैब की स्थापना की जाएगी। इसके लिए केंद्र की ओर से यूनिवर्सिटी को एफआईएसटी-लेवल 1 प्रोजेक्ट हासिल हुआ है।
साइंटिस्ट भी कर सकेंगे इस लैब का इस्तेमाल
1.52 करोड़ के इस प्रोजेक्ट की मदद से यूनिवर्सिटी में स्टेट ऑफ द आर्ट जियोस्पेशल लैब की स्थापना की जाएगी। जिसका इस्तेमाल सिर्फ यूनिवर्सिटी के पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स ही नहीं, साइंटिस्ट भी कर सकेंगे। यही नहीं यूनिवर्सिटी द्वारा अन्य साइंटिस्ट को भी इस लैब में नियम बना कर इस्तेमाल करने का अवसर दिया जाएगा। इस लैब की स्थापना से भविष्य की खेती और भविष्य में बनने वाले प्रोजेक्ट्स के लिए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी(आईटी) का इस्तेमाल कर उन्हें और भी बेहतर बनाया जा सकेगा।
अभी पीआरएससी की मदद से जुटाया जा रहा है डाटा
गौरतलब है कि तकनीक और आईटी में लगातार हो रहे बदलाव का इस्तेमाल कृषि प्रोजेक्टों की बेहतरी के लिए भी किया जा रहा है। आमतौर पर जमीनी हकीकत को जाने बिना कुछ इलाकों के बारे में रिसर्च कर प्रोजेक्ट तैयार किए जाते हैं। लेकिन रिमोट सेंसिंग टेक्नीक की मदद से उस संबंधित इलाके के बारे में जानकारी लेकर उसके मुताबिक विकास, खेती व अन्य बदलाव के काम किए जा सकते हैं। पंजाब में पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर(पीआरएससी) की मदद से सेटेलाइट का इस्तेमाल कर खेती में हो रहे बदलावों, खेती के बढ़-घट रहे इलाके, गिर रहे पानी के स्तर, किसानों द्वारा पराली को लगाई जा रही आग जैसे कई तरह के डाटा जुटाए जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी में ये लैब प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. जेपी सिंह, साइंटिस्ट डॉ. सुमनप्रीत कौर, डॉ. महेश सिंह और डॉ. परवीन द्वारा स्थापित किया जाएगा।
लैब से कई प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मिलेगी मदद
प्रोजेक्ट इंचार्ज और पीएयू के मिट्टी व पानी इंजीनियरिंग विभाग के हेड डॉ. जेपी सिंह ने बताया कि यूनिवर्सिटी में इस लैब की मदद से कई प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। जैसे किस इलाके में पानी का स्तर गिर रहा है, कहां पर बाढ़ के कारण असर पड़ा है, किस जगह पर कौन सी फसल उग रही है और उसकी कितनी उपज हो रही है। यूनिवर्सिटी के एमटैक व बीटैक रिमोट सेंसिंग व जीआईएस के स्टूडेंट्स, पीएचडी के स्टूडेंट्स इसका फायदा ले सकेंगे। वहीं, कोई भी साइंटिस्ट जो लेटेस्ट डाटा अपनी रिसर्च के लिए चाहता इस्तेमाल कर सकता है। लैब की क्षमता 15-20 स्टूडेंट्स को होगी।