हनुमान जी की 12 अद्भुत कहानियां। Lord Hanuman Short Stories Hindi
श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। जिनमें उनके बल पराक्रम, बुद्धि चातुर्य और असामान्य साहसवृति का परिचय मिलता है। भागवान शिव के अंश “हनुमान” अमर अजर बताए गए हैं, कलियुग में इनकी पूजा अर्चना त्वरित फलदायक बताई गई है। वायु देव (पवन पुत्र) और माँ अंजनी के पुत्र हनुमान बाल्यकाल में अत्यंत शरारती थे।
कहा जाता है की अंजना एक अप्सरा थीं ओर किसी अपराध वश उन्हें ऋषि दुर्वासा से शाप मिला, इसी के फल स्वरूप उनका जन्म वानर कुल में हुआ, वे गिरज की पुत्री बनी और उनका विवाह केसरी से हुआ, इसी लिए बंजरंगबलि केसरी नंदन कहे जाते हैं। राम भक्त हनुमान ब्रह्मचारी हैं, अमर हैं और इनके भक्तों को भय, निराशा, ग्रह पीड़ा, दारिद्र और संकट से मुक्ति मिलती है। हनुमान जयंती के पावन अवसर पर इनसे जुड़ी अद्भुत कहानियां प्रस्तुत है।
दिव्य फल से हनुमान जन्म
अंजना माँ को पुत्र प्राप्ति की इच्छा थी। उसी काल में अयोध्या के राजा दशरथ भी पुत्रों की प्राप्ति के लिए यज्ञ करवा रहे थे। जिनमें से उत्पन्न हुए फल को तीन रानीयों नें खाया लेकिन यग्योत्पति से निकला एक फल पक्षी ले उड़ा, उसनें वह फल एक पर्वत पर गिरा दिया, जहाँ अंजना माँ भ्रमण कर रही थीं, महादेव की प्रेरणा से उन्होंने उस फल को खाया, जिससे हनुमान जी का जन्म हुआ। इसी कारण बजरंगबली भरत सम भाई कहे जाते हैं।
पुत्र पर वार से पवन देव का क्रोध
भूख लगने पर एक बार बाल हनुमान सूर्य को फल समझ बैठे और उसे निगलने उड़ चले, तब राहू ने इंद्र से सहायता मांगी, देवेन्द्र नें बाल हनुमान के विराट स्वरूप पर प्रहार किया और वह मुर्छित हो कर धरा पर आ गिरे। इस बात का पता जब पवन देव को चला तो वह बहुत क्रोधित हुए, उन्होंने पूरी श्रृष्टि का वायुचक्र बाधित कर दिया, इस कारण सभी जीवों का दम घुंटने लगा। जिसके बाद उन्हें समझा-बुझा कर मनाया गया और समस्त जीवों नें राहत की सांस ली।
हनुमान जी अपनी शक्तियां क्यों भूल गए
बालक हनुमान अत्यंत शरारती थे, वह किसी भी बाग़ बगीचे में घुस कर उत्पात मचाते और फल खा लेते, शिव के अंश हनुमान को गदा कुबेर से मिली, इसके अलावा उन्हें कई देवताओं से दिव्यास्त्र और विद्याएं प्राप्त थी, उत्सुकता और चंचलता वश बाल हनुमान ऋषियों को खूब सताते, कभी वह उनकी लंगोट फाड़ देते तो कभी कमण्डल का पानी गिरा कर भाग जाते, एक बार अंगिरा और भृंग वंश के ऋषि तपस्या कर रहे थे, तब हनुमान नें उन्हें भी सताया, इसके फल स्वरूप उन्हें सारी शक्तियां भूल जाने का शाप मिला, फिर आगे चल कर माँ सीता की खोज के अभियान के दौरान याद दिलाने पर उन्हें सारी शक्तियां वापिस प्राप्त हो गईं।
हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज की गाथा
वीर हनुमान ब्रह्मचारी हैं, लेकिन रावण राम युद्ध के समय हनुमान का सामना पाताल लोक में मकरध्वज से हुआ, वह खुद को हनुमान पुत्र बता रहा था, जिस से बजरंग बली क्रोधित हुए, परंतु जब मकरध्वज ने तर्क दिया तो हनुमान जी उनकी बात से संतुष्ट हो गए, तर्क यह था, की पूर्व काल में हनुमान जब लंका दहन कर समुद्र के ऊपर से जा रहे थे तब उनके शरीर का तापमान प्रचंड रूप से गर्म था, वह पसीने से तरबतर थे, उनके बदन से टपका पसीना एक मादा मगरमच्छ के मुह में गिरा, उसी से मकरध्वज उत्पन्न हुआ ।
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मृत्युदंड पाने के बाद भी हनुमान को राम जी मार न सके
नारद जी ने ऋषिगण की आवभगत करने का कार्यभार हनुमान जी को सौंपा, लेकिन इन सब में से राम के गुरु विश्वामित्र का सत्कार न करने को कहा, हनुमान जी इस रहस्य को समझ नहीं पाए, लेकिन उन्होंने नारदजी की आज्ञा का पूर्णतः पालन किया।
जिस के फल स्वरूप विश्वामित्र क्रोधित हुए और राम को हनुमान को मृत्यु दंड देने को कहा, गुरु की आज्ञा से विवश राम अपने प्रिय हनुमान पर प्रहार करना शुरू करते हैं, लेकिन नारद जी ने कहा था कि, हनुमान आप चिंतामुक्त हो कर राम नाम का जाप करें कुछ नहीं होगा, हनुमान जी ने इस आज्ञा का भी पालन किया, तब राम के ब्रह्मास्त्र समेत सारे अस्त्र विफल हो गए। यह सब देख कर गुरु विश्वामित्र ने राम से इस घटना का विस्तारण जाना, और अंत में हनुमान जी पर से उनका क्रोध समाप्त हो गया। और उन्होंने अपना आदेश वापिस ले लिया।
गदाधारी भीम का घमंड भी उतार दिया
श्री कृष्ण की कृपा छाया में पांचों पांडव धर्म युद्ध लड़ने वाले थे। लेकिन उसके पहले उन्हें कौरवों ने खूब सताया, लाक्षागृह, वनवास और जुआ कपट इसी के हिस्से थे, वनवास के दौरान भीमसेन भाइयों से रुठ कर घने जंगल की और भ्रमण करने निकल गये, जहाँ रास्ते में एक वृद्ध वानर अपनी पूंछ पसारे बैठा था। क्रोध में आग बबूले भीम नें पूंछ उठाने को कहा, तब निर्बल वानर नें थकान और अपनी असमर्थता का हवाला दे कर भीम को ही यह कार्य कर देने को कहा, भीम ने खूब हाथ पैर मारे, लेकिन वानर की पूंछ टस से मस नहीं हुई। अंत में भीम को यह भास् हुआ की वह कोई दिव्यात्मा है। भीम ने दर्शन देने को कहा तब, हनुमान जी नें अपना असल रूप दिखाया, और पांडव पक्ष को विजय का आशीर्वाद भी दिया।
अर्जुन का अहंकार भी हनुमान जी ने तोड़ दिया
अर्जुन एक बार रामेश्वरम पहुंचे, जहाँ एक वानर श्रीराम की भक्ति में लीन था, अपनी धनुरविद्या के अहंकार में मग्न पार्थ ने वाण चलाया, तब हनुमान जी नें प्रकट हो कर इस कृत्य का कारण पूछा, तो अर्जुन बोले की श्री राम तो धनुर्धर थे, उन्हें पत्थरों के पूल की आवश्यकता क्या पड़ी? वाणों का ही पूल बना लेते, पूरी सेना त्वरित गति से लंका जा पहुँचती, इस पर हनुमान जी नें कहा, की हमारी सेना में ऐसे विराट और बलशाली योद्धा थे जिनका भार वाण का पूल नहीं उठा पाता, इसी लिए पत्थरों का पूल बनाया गया। इस बात पर अर्जुन नें दिव्य वाण चला कर विशाल पुल का निर्माण कर दिया और वानर रूप में छिपे हनुमान जी को चुनौती दे दी। तब हनुमान जी उस पर चढ़े और वाणों का पूल भरभरा कर पानी में डूब गया। अंत में अर्जुन का अहंकार टुटा और हनुमान जी नें उसे दर्शन भी दिए।
हनुमान ने शनिदेव को रावण के चंगुल से मुक्त कराया
रावण अति बलशाली योद्धा था, उसने सभी ग्रहों को बंदी बना लिया था, समस्त देवता भी उनके आगे हाथ बांधे खड़े रहते थे। लंका में जब हनुमान जी गए तो खलबली मचा दी थी, वहीँ उन्हें रावण के कारागार में शनिदेव बंदी अवस्था में मिले, तब बजरंगबली ने अपने पराक्रम से उन्हें मुक्त करा लिया। इसी के फल स्वरूप उन्होंने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया, की जो भी व्यक्ति सच्चे भाव से बजरंगबली की भक्ति करता है, वह (शनिदेव) उस पर प्रकोप नहीं लाएंगे उसका आनिष्ठ भी नहीं करेंगे।
छह महीने बाद हनुमान जीवित हुए
हनुमान जी अमर हैं लेकिन उनकी भी मृत्यु हुई थी, राक्षस सहस्शिरा को मारने के लिए एक बार भगवान राम निकले। बहुत समय हुआ तो माँ सीता की आग्या पर हनुमान उन्हें खोजते हुए विलंका आए, जहाँ एक जादुई सरोवर था। ग्रामदेवी के प्रभाव से वह विषैला था, जो भी व्यक्ति विलंका में शत्रुता की भावना से आता उसके गले में ग्राम देवी बैठ जातीं और प्यासा जीव सरोवर से जल पीता तब मारा जाता, हनुमान जी नें भी वही किया, और ज़हर के प्रभाव मृत्यु को प्राप्त हुए, तब पवन देव ने क्रोध में आ कर अपनी गति रोक दी, इस पर ब्रह्माण्ड में हांहांकार मच गया। अंत में देवताओं ने हनुमान जी को जीवित करने का वचन दिया तब पवनदेव शांत हुए।
हनुमान जी के प्रकोप से कर्ण मरते मरते बचा
अर्जुन और कर्ण में भयंकर युद्ध चल रहा था। कर्ण के कुछ वाण श्री कृष्ण को भी लगे, जिस से उनका कवच टूट गया, यह सब देख हनुमान जी नें प्रचंड गर्जना की, उनके आग्नेय नेत्र कर्ण को ऐसे घूर रहे थे जैसे अभी उसे भस्म कर देंगे। हनुमान जी की मुट्ठियाँ कस चुकी थीं, उनकी पूंछ काल बन कर हवा में लहराने लगी, यह सब देख कर कर्ण और उनके सारथि थर थर कांपने लगे, अंततः श्री कृषण ने हनुमान को शांत कराया, और कर्ण की जान में जान आई।
हनुमान जी ने रूद्र मंत्र से बंधे यमराज की बेड़ियां तोड़ दी
शिव भक्त रावण नें यमराज को रूद्र मंत्र की बेड़ियों से बांध रखा था, और जो भी बिना अनुमति लंका में प्रवेश करे उसे पीठ पर लात मारने का आदेश दे रखा था। हनुमान जी के लंका में जाते ही यमराज नें उन्हें भी पीठ पर ज़ोर की लात मारी, और घमंड से कहा कि मुझे रूद्र मंत्र से बांधा गया है, इसी लिए मैं विवश हूँ, इसके अलावा मुझे कोई रोक नहीं सकता, शिव के बाद तो मेरा कोई मुकाबला ही नहीं, इस बात पर हनुमान जी आगे बढे और उन्होंने रुद्र मंत्र वाली बेड़ियां एक झटके में तोड़ दी, यह देख कर यमराज का घमंड भी उतर गया।
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