नई दिल्ली, 21 मार्च (The News Air) अगर जन्म के समय आपके बच्चे के चेहरे और शरीर की बनावट दूसरे बच्चों से अलग है. तीन साल की उम्र तक बच्चे का सही मानसिक विकास नहीं हो रहा है तो ये सामान्य बात नहीं है. ये बच्चे में डाउन सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है. डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी होती है. डाउन सिंड्रोम की वजह से बच्चे का व्यवहार सामान्य बच्चों की तरह नहीं होता है. इस बीमारी से पीड़ित बच्चे लगभग एक जैसे ही दिखते हैं. इन बच्चों नाक चपटी होती है और ऊपर की तरफ चढ़ी हुई आंखें रहती है. चेहरा और गर्दन छोटे होते हैं. इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को कई तरह की बीमारी होने का रिस्क रहता है. इन बच्चों को सुनने और देखने में परेशानी के साथ हार्ट डिजीज होने का भी रिस्क रहता है.
डाउन सिंड्रोम की वजह से बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सही प्रकार से नहीं हो पाता है. बच्चा मानसिक रोगी हो सकता है. जिससे वो कई तरह की समस्या का सामना कर सकता है. डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी है. ऐसे में इसको पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है. इस बीमारी का कोई निर्धारित इलाज भी नहीं है. केवल इसको कंट्रोल किया जा सकता है.
क्यों होती है डाउन सिंड्रोम : दिल्ली के मैक्स अस्पताल में ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक बीमारी होती है, जिसमें बच्चे के अंदर एक क्रोमोसोम ज्यादा होता है. आमतौर पर एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है. इनमें 23 क्रोमोसोम माता से और 23 पिता से होते हैं. जब 21वें क्रोमोसोम पर एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मौजूद हो, तो इसे डाउन सिंड्रोम कहते हैं. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे में 47 क्रोमसोम होते हैं. इस कारण बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सही प्रकार से नहीं हो पाता है. बच्चा मानसिक रोगी हो सकता है.
कैसे करें डाउन सिंड्रोम की पहचान : डाउन सिंड्रोम का पता गर्भावस्था के दौरान लगाया जा सकता है. मां के एम्नियोसेंटेसिस टेस्ट से इस डिजीज का पता चल जाता है. अगर बच्चे में इस बीमारी का पता लगता है तो प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट कर सकते हैं. यह कानूनी रूप से मान्य भी है. अगर बच्चे को माता-पिता जन्म देना चाहते हैं तो बच्चे को फिजियोथेरेपिस्टसे ट्रीट कराकर रूटीन काम के लायक बनाया जा सकता है. ऐसे बच्चों की स्पीच थेरेपी भी होती है.