उत्तर प्रदेश,17 जुलाई (The News Air): उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज बीजेपी कोटे के मंत्रियों की बैठक बुलाई है. बैठक का मुख्य एजेंडा प्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव हैं. लिहाजा सहयोगी दलों को मंत्री अशीष पटेल और संजय निषाद को भी इस बैठक में बुलाया गया है. दरअसल बीजेपी ने सभी 10 सीटों के लिए जिन 16 मंत्रियों को जिम्मेदारी दी है, उनमें आशीष पटेल और संजय निषाद शामिल हैं.
BJP के लिए आसान नहीं होंगे उपचुनाव
उत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें से 5 सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था, बाकी की 5 सीटें BJP और उसके सहयोगी दलों के पास थीं. यानी मुकाबला बराबरी का होना चाहिए, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद समीकरण बदल चुके हैं. यूपी में बीजेपी की ना केवल सीटें घटीं बल्कि वोट शेयर भी गिरकर 41 फीसदी रह गया. यही नहीं इस बार के चुनाव में SC-ST और OBC वोटर भी बीजेपी से छिटका हुआ नज़र आया, जिसके बाद ये माना जा सकता है कि उपचुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं होने वाला है.
सभी 10 सीटों पर जीत का रखा लक्ष्य
रविवार (14 जुलाई) को लखनऊ में हुई बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में सीएम योगी ने सभी सीटों पर उपचुनाव जीतने का लक्ष्य रखा था. इसके लिए बीजेपी हर एक सीट का दायित्व तीन-तीन मंत्रियों के अलावा संगठन के एक-एक पदाधिकारी को सौंपा गया है. वहीं बीते दिनों उपचुनाव को लेकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने भी चुनावी रणनीति तय की थी. वहीं अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव की तैयारियों को लिए बैठक बुलाई है.
10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की वजह
उत्तर प्रदेश की कटेहरी, मिल्कीपुर, करहल, फूलपुर, मझवां, गाजियाबाद, मीरापुर, कुंदरकी और खैर विधानसभा सीट पर विधायक से सांसद बने नेताओं के इस्तीफे की वजह से उपचुनाव होना है. वहीं कानपुर की सीसामऊ सीट पर उपचुनाव की वजह है विधायक इरफान सोलंकी को मिली 7 साल की सजा. दरअसल सीसामऊ से समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी को 2 साल पुराने आगजनी के मामले में 7 साल की सजा सुनाई गई जिसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई.
उपचुनाव वाली सीटों का समीकरण समझिए
मैनपुरी जिले की करहल सीट पर उपचुनाव अखिलेश यादव के इस्तीफे की वजह से होना है. अखिलेश यादव ने कन्नौज से लोकसभा चुनाव जीता है, उनके इस्तीफे के बाद करहल सीट खाली हुई है. अखिलेश यादव इस सीट से अपने भतीजे तेजप्रताप को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी को इस सीट पर मजबूत उम्मीदवार उतारने की जरूरत होगी जो न केवल भाजपा के वोटबैंक को अपने साथ बरकरार रखे बल्कि अखिलेश खेमे के वोटों में भी सेंध लगा पाए.
अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा ऐसी सीट है, जहां से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद 9 बार विधायक रहे हैं. लोकसभा चुनाव में अवधेश प्रसाद ने फैजाबाद (अयोध्या) सीट से चुनाव जीतकर अपना परचम बुलंद कर दिया है. विधायक पद से उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई मिल्कीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी उनके बेटे अजीत प्रसाद को चुनाव लड़ा सकती है. लोकसभा चुनाव में अयोध्या की सीट पर जीत से विपक्ष उत्साहित है, ऐसे में बीजेपी चाहेगी कि कम से कम विधानसभा उपचुनाव में इस सीट को अपने पाले में किया जाए.
मुरादाबाद जिले की कुंदरकी सीट संभल लोकसभा में आती है, मुस्लिम बहुल होने की वजह से यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है. समाजवादी पार्टी के जियाउर रहमान बर्क यहां से विधायक थे, जो लोकसभा चुनाव में संभल से जीतकर सांसद बने हैं. ऐसे में यह सीट भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी, हालांकि आरएलडी के साथ आने से बीजेपी को इस सीट पर थोड़ा-बहुत फायदा मिल सकता है.
अंबेडकरनगर की इस सीट पर भी समाजवादी पार्टी का ही कब्जा था. यहां से सपा के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा विधायक थे और इस बार वह अंबेडकर नगर से सांसद चुने गए हैं. लालजी वर्मा के इस्तीफे से खाली हुई यह सीट भी बीजेपी के लिए मुश्किल सीटों में से एक है.
गाजियाबाद सांसद अतुल गर्ग इस सीट से विधायक थे. उनके सांसद बनने के बाद गाजियाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा और यहां से संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर डॉली शर्मा को उतारा था. उम्मीद की जा रही है कि उपचुनाव में भी दोनों दल इस सीट पर साझा उम्मीदवार उतारकर जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे.
मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर BJP की सहयोगी आरएलडी का कब्जा था, लेकिन RLD ने यह सीट समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ कर जीती थी. ऐसे में अब चूंकि समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं लिहाजा यह सीट भी बीजेपी के लिए आसान नहीं होगी. इस सीट से आरएलडी के विधायक चंदन सिंह अब बिजनौर से सांसद बन चुके हैं और मुस्लिम बहुल होने की वजह से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की उम्मीदें इस सीट पर बढ़ गईं हैं.
अलीगढ़ की खैर सीट पर भी बीजेपी का कब्जा था. 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अनूप प्रधान वाल्मीकि खैर सीट से विधायक चुने गए थे. लोकसभा चुनाव में हाथरस सीट से चुनाव जीतकर संसद में एंट्री ली है. उनके विधायक पद से इस्तीफे की वजह से खैर में उपचुनाव होना है. विधानसभा चुनाव में अनूप वाल्मीकि ने BSP की उम्मीदवार चारू को हराया था, अब जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी उपचुनाव में उतरने का मन बना लिया है तो ऐसे में यहां मुकाबला रोचक हो सकता है.
विधानसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, प्रवीण पटेल अब फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुन लिए गए हैं. प्रवीण के विधायक पद से इस्तीफे के चलते यहां उपचुनाव होगा. इस सीट पर बीजेपी की ओर से कई दावेदार हैं ऐसे में देखना होगा कि पार्टी किस उम्मीदवार पर दांव लगाएगी.
मिर्जापुर की मझवां सीट से बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के डॉ. विनोद कुमार बिंद ने विधानसभा चुनाव जीता था. अब वो भदोही से सांसद बन चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतारती है या फिर सहयोगी निषाद पार्टी को मौका देगी.
उपचुनाव वाली 10 सीटों में सीसामऊ अकेली ऐसी सीट है जहां मौजूदा विधायक की अयोग्यता के चलते उपचुनाव होना है. समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी को सजा सुनाए जाने के बाद यह सीट खाली हुई है. माना जा रहा है कि उपचुनाव के लिए अखिलेश यहां इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को टिकट मौका दे सकते हैं.
उपचुनाव की वजह से बैकफुट पर बीजेपी?
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और कन्नौज सांसद अखिलेश यादव ने बीजेपी सरकार पर जमकर निशाना साधा है. अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X पर लिखा है कि सरकार ने उपचुनाव में हार के डर से शिक्षकों के डिजिटल अटेंडेंस और लखनऊ में पंतनगर-इंद्रप्रस्थ के ध्वस्तीकरण का आदेश स्थगित कर दिया है. अखिलेश यादव ने कहा है कि सरकार को अपना ये आदेश पूरी तरह से रद्द करना चाहिए. साथ ही उन्होंने यह भी लिखा है कि, “BJP का असली चेहरा शिक्षकों और आम जनता के सामने आ गया है. शिक्षक और आम जनता बीजेपी को उपचुनाव ही नहीं, अगला हर चुनाव हराएगी. जनता ने बीजेपी सरकार की मनमानी के बुलडोज़र के ऊपर जनशक्ति का बुलडोज़र चला दिया है.”






