Indian Women: भारत में महिलाओं का स्थान हमेशा से देवताओं के समान रहा है, लेकिन विदेशी मानसिकता ने आज समाज की सोच को दूषित कर दिया है। राजीव दीक्षित ने भारतीय और पश्चिमी संस्कृति की तुलना करते हुए बताया कि कैसे Europe के प्रभाव ने नारी को सम्मान की जगह ‘वस्तु’ बना दिया है, जिससे समाज में अपराध बढ़ रहे हैं।
भारतीय संस्कृति की मूल भावना रही है—”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”, यानी जहाँ नारी की पूजा होती है, वहीं देवताओं का निवास होता है। हमारे यहाँ हमेशा नारी का स्थान नर से ऊँचा रहा है।
यही कारण है कि हम लक्ष्मी-नारायण नहीं, बल्कि ‘नारायण-लक्ष्मी’ या ‘राम-सीता’ नहीं, बल्कि ‘सीता-राम’ और ‘उमा-महादेव’ कहते हैं। भगवान ने महिलाओं को विशेष गुण और क्षमता दी है, जिससे वे परिवार और समाज को संभालने में पुरुषों से कहीं आगे हैं।
‘माँ के बिना संस्कार अधूरे’
राजीव दीक्षित बताते हैं कि अगर किसी बच्चे के पिता का देहांत हो जाए लेकिन माँ जीवित हो, तो उसका लालन-पालन और संस्कार बहुत अच्छे से हो जाते हैं। लेकिन अगर माँ चली जाए और पिता जीवित भी रहे, तो बच्चे को सही संस्कार मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है।
वैदिक काल से लेकर 8वीं शताब्दी तक भारत में महिलाओं का स्थान सर्वोच्च था। लेकिन जैसे-जैसे विदेशी हमले हुए और हम Foreign Culture के अधीन होते गए, महिलाओं की स्थिति में गिरावट आने लगी। मुगलों के बाद अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और पुर्तगालियों के शासन में यह गिरावट सबसे ज्यादा देखी गई।
‘महिलाओं में नहीं होती आत्मा’
Europe और America के दार्शनिकों की सोच ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। अरस्तु (Aristotle) से लेकर सुकरात (Socrates) तक, यूरोप के सभी बड़े दार्शनिकों का मानना था कि “स्त्री में आत्मा नहीं होती”। उनके अनुसार, स्त्री केवल एक वस्तु (Object) है, जैसे मेज या कुर्सी।
पश्चिमी सभ्यता में यह मान्यता रही है कि जैसे पुरानी मेज-कुर्सी को फेंक दिया जाता है या कपड़े बदल लिए जाते हैं, वैसे ही स्त्री का भी केवल उपयोग और उपभोग किया जाना चाहिए। यही विकृत मानसिकता अंग्रेजों के जरिए भारत में आई और आज हमारे समाज के एक बड़े वर्ग में घर कर गई है।
‘दहेज और भ्रूण हत्या का कारण’
इस विदेशी मानसिकता का ही नतीजा है कि आज भारत में बेटियों को गर्भ में ही मारा जा रहा है। समाज में यह डर बैठ गया है कि बेटी होगी तो दहेज देना पड़ेगा या छेड़खानी का शिकार होगी। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर घंटे दो महिलाओं की दहेज के लिए हत्या कर दी जाती है।
हर घंटे तीन से ज्यादा महिलाओं के साथ Rape और चार से पांच के साथ छेड़खानी की घटनाएं होती हैं। एक करोड़ से ज्यादा कन्याओं की भ्रूण हत्या इस बात का प्रमाण है कि हम उस संस्कृति से कितने दूर हो गए हैं जहाँ नारी की पूजा होती थी। हम शारीरिक रूप से आजाद हो गए हैं, लेकिन मानसिक रूप से आज भी उसी विदेशी प्रभाव में जकड़े हुए हैं।
‘वोट और गवाही का अधिकार नहीं’
पश्चिमी देशों की असलियत बताते हुए राजीव दीक्षित कहते हैं कि 1950 तक Europe के किसी भी देश में महिलाओं को Vote डालने का अधिकार नहीं था, क्योंकि उन्हें इंसान माना ही नहीं जाता था। वहाँ की अदालतों में हजारों सालों तक यह नियम था कि तीन महिलाओं की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर मानी जाएगी।
रोमन साम्राज्य में भी महिलाओं की स्थिति बेहद खराब थी। यहाँ तक कि America और Europe में आज भी कई जगह समान पद पर होने के बावजूद महिलाओं को पुरुषों से कम Salary मिलती है। 40 साल पहले तक वहाँ महिलाओं को Bank में स्वतंत्र रूप से खाता खोलने का अधिकार नहीं था; उन्हें अपने पिता या पति के साथ ही खाता खुलवाना पड़ता था।
‘सम्मान से ही आएगा बदलाव’
राजीव दीक्षित ने चेतावनी दी कि अगर हम माताओं, बहनों और बेटियों का सम्मान वापस नहीं ला पाए, तो समाज को आगे बढ़ाना असंभव होगा। व्यवस्था में कोई भी बड़ा बदलाव महिलाओं के पूर्ण सहयोग के बिना नहीं हो सकता। भारत को अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटना होगा और नारी को ‘भोग की वस्तु’ समझने वाली पश्चिमी सोच को त्यागना होगा।
जानें पूरा मामला
स्वर्गीय राजीव दीक्षित एक प्रखर वक्ता और भारतीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक थे। उन्होंने अपने व्याख्यानों के माध्यम से लगातार भारतीय इतिहास, संस्कृति और स्वदेशी के महत्व को उजागर किया। इस वीडियो में वे बता रहे हैं कि कैसे औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) ने भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया है, जो आज के अपराधों की मुख्य जड़ है।
मुख्य बातें (Key Points)
-
भारतीय संस्कृति में ‘सीता-राम’ जैसे संबोधनों में नारी का स्थान हमेशा पुरुष से पहले रहा है।
-
यूरोप के दार्शनिक मानते थे कि महिलाओं में आत्मा नहीं होती, वे केवल उपभोग की वस्तु हैं।
-
विदेशी प्रभाव के कारण ही भारत में दहेज, बलात्कार और भ्रूण हत्या जैसे अपराध बढ़े हैं।
-
1950 तक यूरोप में महिलाओं को वोटिंग का अधिकार नहीं था और कोर्ट में उनकी गवाही की कीमत कम थी।
-
राष्ट्र निर्माण और व्यवस्था परिवर्तन के लिए महिलाओं का सम्मान और सहयोग अनिवार्य है।






