Sanchar Saathi App Mandatory: आपके स्मार्टफोन में एक नया “घुसपैठिया” आ सकता है, और इस बार यह कोई विदेशी हैकर नहीं, बल्कि आपकी अपनी सरकार का बनाया हुआ एक ऐप है। भारत सरकार ने एक विवादित आदेश जारी किया है, जिसके तहत देश में बिकने वाले या आयात किए जाने वाले हर नए मोबाइल फोन में ‘संचार साथी’ (Sanchar Saathi) ऐप का प्री-इंस्टॉल होना अनिवार्य कर दिया गया है। इस आदेश ने नागरिकों की निजता (Privacy) और डेटा सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
‘ना डिलीट होगा, ना डिसेबल’ – आदेश में क्या लिखा है?
सरकार ने स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों (जैसे Apple, Samsung, Vivo, Oppo, Xiaomi) को निर्देश दिया है कि मार्च 2026 से भारत में बनने वाले या आयात होने वाले सभी नए फोनों में ‘संचार साथी’ ऐप पहले से इंस्टॉल होना चाहिए। यहां तक कि जो फोन पहले से बन चुके हैं, उनमें भी अपडेट के जरिए यह ऐप डालने को कहा गया है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात आदेश में लिखी यह शर्त है कि इस ऐप को न तो डिलीट किया जा सकेगा और न ही डिसेबल (Disable) किया जा सकेगा। कंपनियों को इस आदेश का पालन करने के लिए 120 दिनों का समय दिया गया है।
सरकार का तर्क: साइबर फ्रॉड रोकना है मकसद
सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य बढ़ते साइबर फ्रॉड, फोन चोरी और फर्जी सिम कार्ड के इस्तेमाल पर रोक लगाना है। संचार साथी ऐप के जरिए IMEI नंबर चेक किया जा सकेगा, जो हर फोन का एक यूनिक फिंगरप्रिंट होता है। इससे चोरी हुए फोन को ट्रैक करने और उसकी लोकेशन का पता लगाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह ऐप ‘नो योर मोबाइल’ (Know Your Mobile) जैसी सेवाएं भी देगा और फ्रॉड कॉल रिपोर्ट करने में मदद करेगा।
निजता पर खतरा: क्या हम सर्विलांस स्टेट बन रहे हैं?
सरकार के इस कदम की तुलना रूस और उत्तर कोरिया जैसे देशों से की जा रही है, जहां सरकार नागरिकों पर कड़ी निगरानी रखती है। आलोचकों का कहना है कि एक ऐसा सरकारी ऐप जिसे फोन से हटाया न जा सके, वह नागरिकों की हर गतिविधि, लोकेशन और बातचीत को रिकॉर्ड कर सकता है। यह निजता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है और इससे ‘डिजिटल अरेस्ट’ (Digital Arrest) जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जहां हर नागरिक सरकार की चौबीसों घंटे निगरानी में रहेगा।
रूस में भी हाल ही में ‘मैक्स मैसेंजर’ नामक एक सरकारी ऐप को सभी फोनों में अनिवार्य किया गया है, जिसे आलोचक निगरानी का एक और जरिया मान रहे हैं। उत्तर कोरिया में तो स्थिति और भी भयावह है, जहां फोन हर 5 मिनट में स्क्रीनशॉट लेकर सरकार के पास भेजता है।
मंत्री की सफाई से बढ़ा भ्रम
जब इस आदेश पर हंगामा मचा, तो केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सफाई दी कि ‘संचार साथी’ एक वैकल्पिक ऐप है और यूजर इसे डिलीट कर सकते हैं। पीआईबी (PIB) ने भी मंत्री के बयान को ट्वीट किया और इसे ‘मिथक बनाम सच्चाई’ के पोस्टर के जरिए स्पष्ट करने की कोशिश की।
लेकिन, सवाल यह है कि अगर यह ऐप वैकल्पिक है, तो आदेश में इसे ‘अनिवार्य’ और ‘नॉन-डिलीटेबल’ (Non-deletable) क्यों लिखा गया? अगर मंत्री का बयान सही है, तो मूल आदेश को वापस क्यों नहीं लिया गया? इस विरोधाभास ने भ्रम की स्थिति को और बढ़ा दिया है। इंटरनेट फ्रीडम फेडरेशन (IFF) जैसी संस्थाओं ने भी सवाल उठाए हैं कि जब IMEI ट्रैकिंग जैसी सुविधाएं पहले से ही वेब पोर्टल पर मौजूद हैं, तो एक परमानेंट ऐप की क्या जरूरत है?
क्या Apple मानेगा सरकार का आदेश?
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, Apple इस आदेश का विरोध कर सकती है। कंपनी का मानना है कि थर्ड-पार्टी ऐप को प्री-इंस्टॉल करना उसके iOS सिस्टम की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक भारत सरकार के इस फरमान के आगे झुकती है या नहीं।
मुख्य बातें (Key Points)
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भारत सरकार ने नए स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ ऐप अनिवार्य किया।
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आदेश के मुताबिक, ऐप को डिलीट या डिसेबल नहीं किया जा सकेगा।
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सरकार का तर्क है कि यह साइबर फ्रॉड और फोन चोरी रोकने के लिए है।
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निजता के पैरोकारों ने इसे सर्विलांस का जरिया बताते हुए विरोध किया है।
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मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा ऐप वैकल्पिक है, जिससे भ्रम और बढ़ गया है।






