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Home Breaking News

क्या दे पाएगा चुनाव आयोग जवाब? तिवारी और अखिलेश के 5 ‘तीखे’ सवालों से हड़कंप!

लोकसभा में अखिलेश यादव और मनीष तिवारी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और ईवीएम पर उठाए गंभीर सवाल, बैलेट पेपर से चुनाव की मांग।

The News Air by The News Air
मंगलवार, 9 दिसम्बर 2025
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Election Commission Reforms
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Election Commission Reforms: लोकसभा में चुनाव सुधारों को लेकर हुई हालिया बहस ने भारतीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सदन में ऐसे तथ्य रखे, जिसने न केवल चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा किया, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या अब चुनावी मैदान वाकई बराबरी का रह गया है?

लोकसभा में गूंजी आवाजों ने स्पष्ट कर दिया कि विपक्ष अब केवल ईवीएम पर ही नहीं, बल्कि पूरी चुनावी मशीनरी की कार्यप्रणाली पर उंगली उठा रहा है। चर्चा का केंद्र बिंदु यह रहा कि क्या चुनाव आयोग और मोदी सरकार विपक्ष को बराबरी का मौका देंगे या यह बहस सिर्फ संसद की चारदीवारी तक ही सीमित रह जाएगी।

‘मीडिया और चुनाव: एकतरफा खेल’

अखिलेश यादव ने अपने भाषण में सबसे पहले मीडिया की भूमिका पर तीखा प्रहार किया। उनका कहना था कि चुनाव निष्पक्ष तभी हो सकते हैं जब मीडिया में सभी राजनीतिक दलों को बराबर का स्थान मिले। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि गरीब मतदाता अक्सर उनसे पूछते हैं कि “आप टीवी पर आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन कुछ लोग (सत्ता पक्ष) तो टीवी पर आते हैं और जाते ही नहीं हैं।” अखिलेश ने साफ कहा कि अगर विपक्ष को मीडिया में स्पेस नहीं मिलेगा, तो चुनाव निष्पक्ष नहीं माने जा सकते। उन्होंने याद दिलाया कि अखबार और टीवी कवरेज में विपक्ष गायब रहता है और सिर्फ एक पार्टी का प्रोपेगेंडा हावी रहता है।

‘रामपुर और मिल्कीपुर: धांधली के सबूत’

चुनावी प्रक्रियाओं में प्रशासन के दुरुपयोग का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव ने रामपुर और मिल्कीपुर उपचुनावों का काला सच सदन के सामने रखा। उन्होंने आरोप लगाया कि रामपुर लोकसभा उपचुनाव में पुलिस और प्रशासन का एकमात्र लक्ष्य समाजवादी पार्टी को हराना था। उन्होंने कहा, “वोटिंग के दिन पुलिस और प्रशासन इस बात पर लगा था कि कोई भी वोटर घर से न निकले।”

अखिलेश ने दावा किया कि उन्होंने चुनाव आयोग को वीडियो और सबूत भेजे कि पुलिस कहां बैरिकेडिंग लगा रही है और किसे रोक रही है, लेकिन आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। मिल्कीपुर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वहां पहले से तय कर लिया गया था कि किस अधिकारी को पीठासीन अधिकारी बनाना है ताकि भाजपा की जीत सुनिश्चित हो सके।

‘ईवीएम बनाम बैलेट पेपर: दुनिया का उदाहरण’

ईवीएम की विश्वसनीयता पर मनीष तिवारी और अखिलेश यादव, दोनों ने सवाल उठाए। अखिलेश ने जापान और जर्मनी जैसे तकनीकी रूप से उन्नत देशों का उदाहरण देते हुए पूछा कि अगर वे देश ईवीएम को स्वीकार नहीं कर रहे, तो भारत क्यों अड़ा हुआ है? उन्होंने चुनौती दी कि आगामी छह राज्यों केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, पुडुचेरी में बैलेट पेपर से चुनाव करा लिए जाएं, “दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”

मनीष तिवारी ने स्पष्ट किया कि सवाल यह नहीं है कि ईवीएम मैनिपुलेट हो रही हैं, बल्कि सवाल यह है कि जनता को चिंता है कि वे मैनिपुलेट हो सकती हैं। उन्होंने सरकार से पूछा कि ईवीएम का ‘सोर्स कोड’ किसके पास है—चुनाव आयोग के पास या मशीन बनाने वाली कंपनियों के पास? जिसका जवाब उन्हें आज तक नहीं मिला।

‘एसआईआर और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति’

मनीष तिवारी ने कानूनी दांवपेच के जरिए चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को घेरा। उन्होंने मतदाता सूची में संशोधन (SIR – Special Intensive Revision) के मुद्दे पर कहा कि पूरे राज्य या देश में एसआईआर कराने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। यह तभी हो सकता है जब किसी विशिष्ट क्षेत्र में गड़बड़ी हो और उसके कारण लिखित में सार्वजनिक किए जाएं। उन्होंने सरकार से मांग की कि जिन क्षेत्रों में एसआईआर हो रहा है, उनके कारण सदन के पटल पर रखे जाएं।

इसके अलावा, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और कैबिनेट मंत्री के अलावा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को भी शामिल किया जाना चाहिए, ताकि संतुलन बना रहे।

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‘नोट के बदले वोट और कर्ज का बोझ’

मनीष तिवारी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी खजाने के दुरुपयोग का भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि चुनाव से ठीक पहले नकद राशि (Cash Transfer) बांटने की होड़ ने राज्यों को कर्ज के जाल में फंसा दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर किसी राज्य का कर्ज-जीडीपी अनुपात 20% से ज्यादा है, तो उसे चुनाव से पहले कैश ट्रांसफर की अनुमति नहीं होनी चाहिए। उनका तर्क था कि “आप राष्ट्रीय या राज्य के खजाने की कीमत पर चुनाव नहीं जीत सकते, यह लोकतंत्र को दिवालिया बना देगा।”

आम आदमी पर असर

जब चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं, तो सबसे ज्यादा नुकसान आम मतदाता के भरोसे का होता है। अगर ईवीएम, मीडिया कवरेज या प्रशासनिक मशीनरी एकतरफा हो जाए, तो जनता का वोट अपनी ताकत खो देता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि हर नागरिक को यह विश्वास हो कि उसका वोट सही जगह गया है और चुनाव परिणाम उसकी इच्छा का सच्चा प्रतिबिंब हैं।

‘जानें पूरा मामला’

संसद के शीतकालीन सत्र में चुनाव सुधारों के विषय पर चर्चा हो रही थी। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग अब एक निष्पक्ष अंपायर की भूमिका में नहीं है। हालिया कानूनों के जरिए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सरकार का दखल बढ़ा है (CJI को समिति से हटाना), जिसे लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है। यह बहस उसी संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि क्या आगामी चुनावों में सभी दलों को समान अवसर (Level Playing Field) मिल पाएगा।

‘मुख्य बातें (Key Points)’
  • अखिलेश यादव ने मीडिया कवरेज में भेदभाव और प्रशासनिक धांधली (रामपुर/मिल्कीपुर) के आरोप लगाए।

  • विपक्ष ने आगामी 6 राज्यों के चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की।

  • मनीष तिवारी ने ईवीएम के सोर्स कोड और एसआईआर (SIR) की वैधानिकता पर सवाल उठाए।

  • चुनाव आयुक्तों की चयन समिति में CJI और राज्यसभा विपक्ष के नेता को शामिल करने का सुझाव दिया गया।

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