Bihar Elections 2025 – बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस (Congress) एक्टिव हो गई है। राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए कांग्रेस ने दलित वोट बैंक पर फोकस बढ़ा दिया है। इसी रणनीति के तहत इस साल अब तक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) दो बार पटना (Patna) जा चुके हैं। फरवरी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) की दो बड़ी जनसभाएं तय की गई हैं। वहीं, मार्च में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का भी कार्यक्रम बनाया जा रहा है। इसके साथ ही कांग्रेस की चुनावी टीमें बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गई हैं।
खरगे की सभाओं से दलित वोट बैंक पर फोकस
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 22 फरवरी को बक्सर (Buxar) में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। इसके बाद 28 फरवरी को पश्चिम चंपारण (West Champaran) में उनकी दूसरी सभा होगी। इन सभाओं को जय बापू, जय भीम, जय संविधान का नाम दिया गया है, जिससे साफ है कि कांग्रेस दलित समाज को साधने की कोशिश कर रही है। इससे पहले, राहुल गांधी के दोनों कार्यक्रम भी दलित समुदाय को ध्यान में रखकर आयोजित किए गए थे।
पिछले महीने आयोजित संविधान सुरक्षा सम्मेलन में ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के बेटे भागीरथ मांझी (Bhagirath Manjhi) भी शामिल हुए थे। इसके ठीक दो हफ्ते बाद, राहुल गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जगलाल चौधरी (Jagalal Chaudhary) की जयंती के कार्यक्रम में भाग लिया था।
कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन में दलित नेता की कमी!
बिहार की राजनीति में पासवान समाज से चिराग पासवान (Chirag Paswan) और मांझी समाज के बड़े नेता जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) प्रमुख चेहरे हैं, लेकिन दोनों फिलहाल NDA का हिस्सा हैं। बिहार में दलित समाज का एक बड़ा तबका है, लेकिन कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन (RJD-Congress Alliance) में कोई प्रभावी दलित नेता नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस इस वर्ग में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
क्या कांग्रेस अकेले लड़ेगी बिहार विधानसभा चुनाव?
राजनीतिक गलियारों में ये सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या कांग्रेस बिहार में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है? हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अकेले चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन गठबंधन में अपनी ताकत दिखाने की रणनीति पर काम कर रही है।
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, जिनमें से पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी। तब यह संदेश गया कि कांग्रेस की वजह से आरजेडी सत्ता में नहीं आ पाई। इस बार माना जा रहा है कि आरजेडी कांग्रेस को 40 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है। इसके अलावा, लेफ्ट पार्टियां (CPI-ML) ज्यादा सीटों की मांग कर रही हैं और वीआईपी पार्टी (VIP Party) के लिए भी सीटें छोड़नी होंगी, जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
गठबंधन में ‘मजबूरी’ नहीं, ‘मजबूत’ भूमिका चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस बिहार में मजबूरी में गठबंधन करने के बजाय एक मजबूत पार्टनर बनना चाहती है। कांग्रेस की कोशिश सिर्फ अपनी सीटों की संख्या बरकरार रखने की नहीं, बल्कि प्रभावशाली सीटें हासिल करने की भी है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस को मनचाही सीटें नहीं मिली थीं। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस बार अगर उसे पसंद की सीटें मिलती हैं तो वह कुछ कम सीटों पर समझौता कर सकती है। यही वजह है कि कांग्रेस पहले से ही अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू कर चुकी है।
बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी – राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अलावरु
पिछले हफ्ते युवा नेता कृष्णा अलावरु (Krishna Allavaru) को बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया है। उन्हें राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता है। यह नियुक्ति इस संकेत के तौर पर देखी जा रही है कि कांग्रेस बिहार में अपनी नई टीम तैयार करना चाहती है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के करीबी माने जाते हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कांग्रेस गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत रखे और जरूरत से ज्यादा कुर्बानी न देनी पड़े।
कांग्रेस की रणनीति क्या रंग लाएगी?
अगर कांग्रेस अपने दलित कार्ड को सही से भुना पाती है तो यह गठबंधन के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस बिहार में आरजेडी के साए से बाहर निकल पाएगी? बिहार में कांग्रेस की मौजूदा गतिविधियां यह इशारा कर रही हैं कि वह अब आरजेडी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती।
आने वाले हफ्तों में बिहार की राजनीति में कई बड़े घटनाक्रम देखने को मिल सकते हैं। कांग्रेस की रणनीति कितनी सफल होगी, यह तो चुनावी नतीजों से ही तय होगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार कांग्रेस बैकफुट पर नहीं बल्कि आक्रामक राजनीति करने के मूड में है।