मुंबई, 20 अप्रैल (The News Air): महाराष्ट्र का अमरावती लोकसभा चुनाव क्षेत्र इस समय देश की धड़कन बन गया है। संसद में बेबाक तरीके से अपनी बात रखने वाली और हनुमान चालीसा के माध्यम से ठाकरे परिवार को चुनौती देने वाली नवनीत राणा बीजेपी के चुनाव चिह्न कमल पर चुनाव लड़ रही हैं। अमरावती लोकसभा सीट से बीजेपी पहली बार चुनाव लड़ रही है, इसलिए बीजेपी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। परंतु नवनीत राणा की उम्मीदवारी को लेकर बीजेपी में ही भारी विरोध है। विरोध करने वालों की देवेंद्र फडणवीस ने बुलाकर परेड ली है। वैसे राणा परिवार का सभी राजनीति दलों के नेताओं के साथ विवाद है, लिहाजा उनके विरोधी मौके की तलाश कर ही रहे हैं। उद्धव ठाकरे समर्थक पहले से ही नवनीत से खार खाएं बैठे हैं, अब उन्हें मौका मिल गया है। ये सभी राणा को सबक सिखाने के लिए मैदान में उतरेंगे। इस लोकसभा चुनाव क्षेत्र में ही मेलघाट है, जो कुपोषण के चलते हमेशा खबरों में रहा है। यहां कांग्रेस के बलवंत वानखेडे के लिए मौका बन रहा है।
वंस अपान ए टाइम…
एक समय अमरावती लोकसभा सीट कांग्रेस की हुआ करती थी। देश में पहली बार 1952 में जब लोकसभा के चुनाव हुए, तब से 1984 तक कांग्रेस ही जीतती रही। 1989 में कम्युनिस्ट पार्टी ने बाजी मारी, फिर 1992 में कांग्रेस ने वापसी की। 1996 में पहली बार बीजेपी के साथ मिलकर शिवसेना चुनाव में उतरी और जीत हासिल की। 1998 में कांग्रेस के समर्थन से आरएस गवई रिपब्लिकन पार्टी से जीतकर आए, लेकिन उसके बाद फिर शिवसेना जीत गई। शिवसेना 1999, 2004, 2009 और 2014 तक जीतती रही, लेकिन 2019 के चुनाव में नवनीत राणा ने शिवसेना के आनंदराव अडसुल को हरा दिया। राज्य में जो सरकार रहती है, उनके साथ राणा दंपती के मधुर संबंध बन जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी-शिवसेना की सरकार थी। कहते हैं पिछले चुनाव में बीजेपी के लोगों ने शिवसेना के अडसुल के बजाय निर्दलीय नवनीत के लिए काम किया। कांग्रेस और एनसीपी का उन्हें पहले से ही समर्थन हासिल था। नवनीत ने शिवसेना के अडसुल को 1,37,932 मतों के अंतर से पराजित किया। जीतने के बाद नवनीत बीजेपी के साथ हो गईं। इस बार बीजेपी के उम्मीदवार घोषित करने बाद नवनीत बीजेपी में शामिल हुईं।
अमरावती का राजनीतिक गणित
छह विधायकों वाले संसदीय क्षेत्र में तीन कांग्रेस के विधायक हैं, जबकि बच्चू कडू के प्रहार जनशक्ति पार्टी के दो और नवनीत के पति रवि राणा निर्दलीय विधायक हैं। सांसद नवनीत राणा के खिलाफ कांग्रेस ने पार्टी के ही विधायक बलवंत वानखडे को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी-शिंदे सेना को समर्थन देने वाले बच्चू कडू ने नवनीत राणा को टिकट देने का शुरू से ही विरोध किया, लेकिन बीजेपी ने उन्हें ही टिकट दिया। इससे नाराज बच्चू कडू ने अपनी पार्टी से दिनेश बूब को उतारा दिया। इस क्षेत्र में बूब की छवि कट्टर हिंदूवादी की है। वे शिवसेना के शहर प्रमुख भी रहे हैं। बूब लंबे समय तक अमरावती महानगरपालिका में नगरसेवक थे। बूब राणा का खेल बिगाड़ सकते हैं। कहते हैं बूब को मिलने वाला वोट नवनीत की ही परेशानी बढ़ाएगा। राणा के चुनाव प्रचार के लिए उनके चुनाव क्षेत्र से लगकर ही वर्धा है, जहां प्रधानमंत्री प्रचार करने आ रहे हैं। दरियापुर में अमित शाह की सभा रद्द कर दी गई है। वैसे, नवनीत राणा ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से समय मांगा है।
हिंदी भाषी वोट निर्णायक
अमरावती लोकसभा चुनाव क्षेत्र में शहर में करीब 6 लाख वोटर हैं, जबकि ग्रामीण में 12 लाख के आसपास वोट हैं। ऐसा माना जाता है कि शहर में ज्यादातर मतदाता बीजेपी के साथ हैं, वहीं ग्रामीण में रवि राणा की अच्छी पकड़ है। यहां पर करीब 3 लाख वोटर हिंदी भाषी हैं, जो सभी उम्मीदवारों के लिए बहुत उपयोगी हैं। इन्हें अपनी ओर खींचने के लिए राणा, बूब और वानखडे सहित अन्य उम्मीदवारों की कोशिश जारी है। क्षेत्र में 28 प्रतिशत दलित और आदिवासी, 22 प्रतिशत कुनबी और मराठा वोटर, 30 प्रतिशत वोट ओबीसी समाज के वोट हैं, लेकिन इसमें कुनबी को शामिल नहीं किया गया। मुस्लिम वोटर भी 8 प्रतिशत है। कांग्रेस के वानखडे बौद्ध समाज से हैं, जबकि बच्चू कडू की पार्टी के बूब राजस्थानी समाज से और राणा पंजाबी समाज से हैं। डॉ.Ṇ बाबा साहेब आंबेडकर के पोते आनंदराज आंबेडकर भी निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं। कांग्रेस के बलवंत वानखडे और बीजेपी की नवनीत राणा के बीच कड़ी टक्कर है। इनकी जीत-हार में बूब महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
2024 के लोकसभा चुनावा में पार्टियों के प्रत्याशी
- बीजेपी-नवनीत कौर राणा
- कांग्रेस-बलवंत वानखेडे
- निर्दलीय-आनंदराज आंबेडकर
- बसपा-संजय कुमार गाडगे
- प्रहार जनशक्ति पार्टी-दिनेश बूब
2019 लोकसभा चुनाव परिणाम
दल | उम्मीदवार | वोट |
निर्दलीय | नवनीत कौर राणा | 5,10,947 |
शिवसेना | आनंदराव अडसुल | 4,73,996 |
वीबीए | गुणवंत देवपारे | 65,135 |
बसपा | अरुण वानखेडे | 12,336 |
क्या कहते हैं वोटर
अमरावती में बस से उतरते ही एक ऑटो वाले ने बातचीत में बताया कि अमरावती में कई सारे विधायक, नेता हैं, लेकिन कोई काम नहीं करता है। अगर काम करता तो हमारी सड़कों की ऐसी बुरी स्थित नहीं होती। वोट देने के बारे में पूछा तो उसने कहा कि उसकी इच्छा है कि वह वोट करने नहीं जाए, क्योंकि जब ये काम ही नहीं करते तो वोट क्यों दे? साइन स्क्वायर ग्राउंड पर सुबह-सुबह लोग जॉगिंग करते दिखाई दिए। युवा क्रिकेट खेल रहे थे। इन लोगों की शिकायत है कि इस ग्राउंड की हालत खराब है। नेता से लेकर अधिकारी तक से शिकायत की, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। वहीं जॉगिंग कर रहे पवन श्री कहते हैं कि राणा मजबूत हैं और दूसरों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं। उनके चुनाव प्रचार के लिए बड़े-बड़े नेता आ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार के लिए संजय राउत ही आए, जबकि वे कांग्रेस पार्टी से नहीं हैं। अमूल मोहित कहते हैं कि सरकार महंगाई पर काबू पाने में असफल रही, जबकि 2014 में महंगाई के नाम पर ही मोदी चुनकर आए थे। रामपुरी कैंप में जहां सिंधी समाज के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, वहां एक दुकान में एक 70 वर्षीय महिला से पूछने पर उसने कहा कि उनके पास वोट मांगने के लिए सिर्फ बीजेपी के लोग आए और दूसरा कोई आया ही नहीं।