भारत-रूस की दोस्ती इतनी गहरी क्यों

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नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (The News Air): ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस रवाना हो गए हैं, जहां वह दो दिन रहेंगे. रूस के कजान शहर में आयोजित सम्मेलन के इतर वह कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे. इसमें सबसे महत्वपूर्ण होगी प्रधानमंत्री मोदी और भारत के सबसे गहरे दोस्त रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात. रूस-यूक्रेन और इजराइल व अन्य देशों के बीच चल रहे युद्धों के बीच भारत-रूस की द्विपक्षीय बैठक पर दुनिया भर की नजरें टिकी रहेंगी, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारत ने रूस से हथियार और तेल न केवल खरीदे हैं, बल्कि उसे हथियार मुहैया भी कराए हैं.

आइए जान लेते हैं कि रूस कितना हथियार भारत से खरीदता है और इसे कितना बेचता है? दोनों देशों की गहरी दोस्ती का कारण क्या है?

दशकों पुराना मजबूत संबंध

भारत और रूस के बीच दशकों पुराना बेहद मजबूत रक्षा संबंध है. भारतीय सेनाओं में आज भी 85 फीसदी से ज्यादा उपकरण रूसी मूल के ही हैं. भारत के पुराने शेर मिग-21 लड़ाकू विमान रहे हों या फिर सुखोई जेट, ब्रह्मोस मिसाइल से लेकर एस-400 मिसाइल सिस्टम तक रूस ही भारत को देता आया है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) की इसी साल मार्च में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले पांच सालों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बन गया है. इस आयात में रूस की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है.

Russian President Putin

रूसी राष्ट्रपति पुतिन. 

भारत के हथियार आयात में इतनी हिस्सेदारी

साल 2014 से 2018 और 2019 से 2020 के बीच भारत का हथियार आयात 4.7 फीसदी बढ़ा है. इस दौरान भारत ने अपने कुल हथियार आयात का 45 फीसदी हिस्सा रूस से ही लिया है. रूस के कुल हथियार निर्यात में यह हिस्सेदारी 36 फीसदी है. हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इसमें गिरावट भी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1960-64 के सोवियत संघ के दौर के बाद पहली बार भारत के हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी घट कर 50 फीसदी से कम हो गई है.

रूस ने वोस्त्रो खातों के जरिए खरीदे चार अरब डॉलर के हथियार

यही नहीं, भारत और रूस के बीच व्यापार के लिए अब भारतीय रुपए का इस्तेमाल हो रहा है. खासकर रूस के व्यापारियों ने भारतीय रुपए में व्यापार शुरू किया है. इसके लिए वोस्त्रो खाते भी खोले गए हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए तो इन खातों में रूसी व्यापारियों के आठ अरब डॉलर फंस गए. मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में निवेश के अवसर घटने से भी ये रुपए फंसे थे.

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान इन खातों का इस्तेमाल रूसी व्यापारियों ने भारत से हथियार और अन्य साज-ओ-सामान की खरीदारी के लिए किया. वास्त्रो खाते में पड़े चार अरब डॉलर से रूस ने भारत से हथियार खरीद लिए हैं.

इतनी गहरी है दोनों देशों की दोस्ती

भारत और रूस की दोस्ती सात दशक से भी पुरानी है. सोवियत संघ के दौर में पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ खड़े थे. ऐसे में सोवियत संघ ने आगे बढ़कर भारत का साथ दिया और अमेरिका ने जब भारत-पाक युद्ध के दौरान अपना जंगी जहाज भारत पर हमले के लिए रवाना किया था, तब रूस ने भारत की रक्षा के लिए अपना जंगी बेड़ा रवाना कर दिया था. भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए, तब भी रूस ने भारत का साथ दिया था. सच में कहें तो जब भी भारत मुश्किल में पड़ा, रूस ने साथ दिया. इसीलिए रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी किसी न किसी रूप में भारत रूस के साथ खड़ा रहा.

इस दौर में भी रूस ने भारत को सस्ता कच्चा तेल मुहैया कराया तो तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से भारत ने अपने साथ ही रूस की भी मदद की. रूस की चीन से नजदीकी और भारत की अमेरिकी से करीबी भी इसमें आड़े नहीं आई.

External Affairs Minister S Jaishankar

विदेश मंत्री एस जयशंकर.

विदेश मंत्री के बयान से समझें भारत-रूस की दोस्ती के मायने

रूस और भारत की दोस्ती का कारण पिछले साल अक्तूबर में ही कैनबरा में दिए गए विदेश मंत्री एस जयशंकर के बयान से पता चल जाता है. उस वक्त विदेश मंत्री ने पूछा गया था कि यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण के चलते क्या भारत रूस पर हथियारों की निर्भरता घटाएगा? इस पर उन्होंने कहा था कि रूस-भारत के बीच काफी लंबे समय से संबंध है.

सोवियत संघ के दौर में और बाद में रूस से खरीदे जाने वाले हथियारों की सूची लंबी है, जो कई कारणों से बढ़ती रही. खासकर पश्चिमी देशों ने भारत को हथियार देने के बजाय पड़ोसी देश पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही का साथ दिया.

यह बात और है कि भारत-पाकिस्तान शीत युद्ध के दौरान भी पश्चिमी देश पाकिस्तान का साथ देते रहे पर बाद में उनको अक्ल आई. अब अमेरिका जैसे देश भी भारत को साथ लेने के लिए तत्पर दिखते हैं. यहां तक कि परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाने वाला अमेरिका साल 2008 से इसे सिविल जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा भी मुहैया करा रहा है.

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