Amit Shah Rahul Gandhi Vote Chori Debate : संसद में जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अमित शाह को सीधे-सीधे वोट चोरी पर डिबेट का चैलेंज दे दिया, तो पूरा सदन हक्का-बक्का रह गया। राहुल गांधी ने कहा, “अमित शाह जी, आई चैलेंज यू, आई चैलेंज यू टू हैव अ डिबेट।” लेकिन देश के सबसे ताकतवर गृह मंत्री ने इस चैलेंज को स्वीकार नहीं किया। सवाल उठता है – आखिर क्यों?
क्यों बिफरे अमित शाह?
जब राहुल गांधी ने सदन में वोट चोरी के मुद्दे पर अमित शाह से जवाब मांगा, तो गृह मंत्री का पारा चढ़ गया। उन्होंने कहा, “मेरे भाषण का क्रम वो तय नहीं कर सकते। मैं करूंगा क्योंकि मैं बोल रहा हूं।”
अमित शाह ने यह भी कहा कि विपक्ष के नेता को धैर्य रखना चाहिए और उनकी “मुंसफी” से संसद नहीं चलेगी।
लेकिन असली सवाल यही है – अगर वोट चोरी के आरोपों का ठोस जवाब होता, तो राहुल गांधी के चैलेंज को स्वीकार क्यों नहीं किया गया?
मोहम्मद अली और फोरमैन की फाइट जैसा मौका
इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए एक ऐतिहासिक उदाहरण काफी है। 30 अक्टूबर 1974 को कांगो के जायर में मोहम्मद अली और जॉर्ज फोरमैन के बीच बॉक्सिंग इतिहास की सबसे महान लड़ाई हुई थी।
उम्मीद नहीं थी कि अली जीतेंगे। जनता फोरमैन के साथ थी। लेकिन आठवें राउंड में अली ने फोरमैन को नॉक आउट कर दिया। इस जीत को “Rumble in the Jungle” कहा गया।
अगर उस रात रेफरी ने बेईमानी की होती और फोरमैन को विजेता घोषित कर दिया होता, तो क्या होता? यही सवाल आज भारत के चुनावों पर उठ रहा है – क्या रेफरी यानी चुनाव आयोग निष्पक्ष है?
वोट चोरी पर राहुल गांधी के गंभीर आरोप
राहुल गांधी ने संसद में साफ कहा, “Vote chori is an anti-national act. Those across the aisle are doing an anti-national act. When you destroy the vote, you destroy the fabric of this country. You destroy modern India.”
उन्होंने तीन मुख्य मुद्दे उठाए:
पहला – चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में चीफ जस्टिस को हटाया गया और विपक्ष की आवाज दबा दी गई। इस कानून को वापस लिया जाए।
दूसरा – सीसीटीवी फुटेज 45 दिन बाद नष्ट करने का नियम क्यों बनाया गया?
तीसरा – मशीन से पढ़ी जा सकने वाली मतदाता सूची क्यों नहीं दी जाती?
रविशंकर प्रसाद का बेकार तर्क
बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद ने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री के पास न्यूक्लियर बटन होता है, देश उन पर भरोसा करता है, तो चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए क्यों नहीं?
यह तर्क खोखला है। इस तर्क के आधार पर तो विपक्ष भी देश में नहीं होना चाहिए, मीडिया भी नहीं होनी चाहिए। देश को बस एक काम करना चाहिए – प्रधानमंत्री का चुनाव करना और उन पर भरोसा करना।
इलेक्टोरल बॉन्ड से हज़ारों करोड़ का चंदा
राहुल गांधी ने संसद में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। 2024 में बीजेपी के बैंक अकाउंट में 10,107 करोड़ रुपए हैं, जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 135 करोड़।
यानी बीजेपी के पास कांग्रेस से 75 गुना ज्यादा पैसे हैं। अनुपात है 99:1 का।
इलेक्टोरल बॉन्ड अवैध रूप से लाया गया और उसके जरिए बीजेपी को हज़ारों करोड़ का चंदा मिला। यह पहली गैर-बराबरी थी। गोदी मीडिया का रोल भी इस गैर-बराबरी को बढ़ाने में है।
45 दिन में सीसीटीवी फुटेज नष्ट – क्यों?
दिसंबर 2024 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव की वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज 6 हफ्ते में दी जाए।
लेकिन 10 दिन के भीतर कानून मंत्रालय ने कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के नियम 93 में संशोधन कर दिया। अब चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज जैसे वीडियो रिकॉर्डिंग, सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे और 45 दिन बाद इसकी मांग नहीं की जा सकती।
कर्नाटक में 2 साल बाद वोट चोरी का मामला सामने आया। तब 45 दिन के नियम का क्या मतलब रह जाता है?
अमित शाह का खोखला जवाब
अमित शाह ने कहा कि लाखों बूथ का सीसीटीवी फुटेज बिना कारण के अगर हर नागरिक मांगने लगेगा तो कौन सा चुनाव आयोग दे सकता है।
यह तर्क जमता नहीं। एक को भी वीडियो फुटेज नहीं दिया गया – महमूद प्राचा को। राजनीतिक दलों को बूथ का वीडियो फुटेज दिया जा सकता था। लेकिन नीयत ही नहीं थी।
अगर आयोग चाहता तो सारी फुटेज वेबसाइट पर डाल देता जहां से कोई भी देख सकता था।
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
चुनाव आयोग ने कहा कि सीसीटीवी रिकॉर्डिंग संवैधानिक दस्तावेज नहीं है, यह आंतरिक प्रबंधन है।
यह और भी विचित्र बात है। बूथ के आसपास गड़बड़ी न हो इसके लिए वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है। उम्मीदवार के प्रचार की रिकॉर्डिंग होती है। अगर कोई चुनाव आयोग पर शक करे तो इस वीडियो की मांग क्यों नहीं कर सकता?
महाराष्ट्र में 5 बजे के बाद क्या हुआ?
महाराष्ट्र चुनाव में 5 बजे के बाद पोलिंग बूथ पर भीड़ बढ़ने की अफवाह उड़ी। सवाल उठा कि सीसीटीवी फुटेज दिखाओ – हर बूथ पर कितने लोग आए थे?
राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल उठाया कि इतने कम समय में इतने लोगों की वोटिंग संभव ही नहीं है।
वोट शेयर 7-8-9-10% कैसे बढ़ जा रहा है? इसका जवाब सीसीटीवी फुटेज देखकर सामने आ जाता। लेकिन फुटेज नष्ट कर दी गई।
चुनाव आयुक्तों को इम्यूनिटी का तोहफा
राहुल गांधी ने संसद में कहा, “In December 2023, this government changed the law to make sure that no Election Commissioner could be punished for any action they take while they are Election Commissioner. Why would the Prime Minister and Home Minister give this gift of immunity?”
कोई भी प्रधानमंत्री भारत के इतिहास में चुनाव आयुक्तों को ऐसा तोहफा नहीं दिया था।
अमित शाह ने जवाब दिया कि यह छूट 2003 में ही दी गई थी और मोदी सरकार ने इसे बस रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 में जोड़ा। लेकिन असल सवाल का जवाब नहीं मिला।
267 पर डिबेट का सच
अमित शाह ने कहा कि एनडीए चर्चा से कभी नहीं भागती। लेकिन तथ्य कुछ और कहते हैं।
राज्यसभा में वेंकैया नायडू और धनखड़ के कार्यकाल में नियम 267 के तहत एक भी डिबेट नहीं हुई।
2009 से 2016 के बीच राज्यसभा में विपक्ष के 110 नोटिस पर बहस हुई। लेकिन 2017 से 2024 के बीच यह संख्या गिरकर सिर्फ 36 रह गई।
जुलाई में मणिपुर पर 267 के तहत चर्चा की मांग की गई। तब सभापति धनखड़ ने अस्वीकार कर दिया। जब तृणमूल सांसद डेरेक ओ’ब्रायन बोलने लगे तो उन्हें सस्पेंड करने की धमकी दी गई।
नेहरू-पटेल का उदाहरण बेमानी
अमित शाह ने नेहरू और सरदार पटेल का उदाहरण देकर वोट चोरी का नाम दिया। 1946 में 28 वोट पटेल को मिले और 2 वोट नेहरू को, फिर भी नेहरू प्रधानमंत्री बने।
लेकिन यह तर्क बेकार है। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम के ओरल हिस्ट्री प्रोजेक्ट में के.एम. मुंशी से पूछा गया कि क्या पटेल को प्रधानमंत्री बनाने की बात थी?
मुंशी ने कहा, “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं थी। सरदार खुद यह बात कभी स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर जवाहरलाल को पहचाना जाता है। मेरे लिए अच्छा है कि मैं उनके साथ रहूं।”
तो फिर आडवाणी को क्यों नहीं प्रधानमंत्री बनाया गया? क्या वह भी वोट चोरी थी?
भारत का आईटी सेक्टर और डुप्लीकेट वोटर
भारत आईटी सेक्टर में माहिर माना जाता है। लेकिन चुनाव आयोग कहता है कि उसके पास डुप्लीकेट वोटर पकड़ने का अच्छा सॉफ्टवेयर नहीं है।
इससे शर्मनाक क्या हो सकता है?
अगर मतदाता सूची की हार्ड कॉपी देंगे तो चुनाव भी बैलेट पेपर से करा लीजिए। मशीन पर इतना भरोसा करते हैं और मशीन से पढ़ी जा सकने वाली मतदाता सूची नहीं देते।
अमित शाह के पास क्या नहीं है?
अमित शाह के पास पूरा देश है। पावर है। हज़ारों करोड़ का चंदा है। मंत्री, मुख्यमंत्री, लाखों कार्यकर्ता हैं। दर्जनों फिल्मों का सपोर्ट है।
लेकिन राहुल गांधी के आरोपों पर डिबेट नहीं कर पाए।
बीजेपी और गोदी मीडिया मानते हैं कि राहुल गांधी कमज़ोर नेता हैं, उन्हें बोलना नहीं आता। तब फिर अमित शाह ने राहुल का चैलेंज क्यों नहीं स्वीकार किया?
जब विजेता की जीत पर सवाल उठ जाए
जब विजेता की जीत पर सवाल उठ जाए, उस जीत का मान नहीं रह जाता। अमित शाह जानते हैं चोरी का आरोप छोटा नहीं होता।
राहुल गांधी ने उनके सामने कहा है कि वोट चोरी से आप लोग सत्ता में हैं।
जुलाई से सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। अगर सारे आरोप गलत होते तो बहस नहीं चलती।
अमेरिका जैसी डिबेट की मांग
अमेरिका की तरह डिबेट की मांग बीजेपी ही करती थी। लगता था उसके पास प्रवक्ता हैं, वक्ता हैं। कांग्रेस हमेशा चुप रहती थी।
जब से कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उठकर डिबेट के लिए चैलेंज देना शुरू किया है, बीजेपी पीछे हटने लगी है।
शायद अब बीजेपी अमेरिका की तरह चुनाव नहीं चाहती होगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि चीन और रूस के चुनावों का गहन विशेष अध्ययन किया जा रहा है?
‘क्या है पूरा मामला’
राहुल गांधी ने पिछले कई महीनों से वोट चोरी का मुद्दा उठाया है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया कि कैसे एसआईआर (SIR) में गड़बड़ी हो रही है, सीसीटीवी फुटेज नष्ट की जा रही है, और चुनाव आयोग की नियुक्ति में विपक्ष को दरकिनार किया गया है। इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को हज़ारों करोड़ मिले जबकि विपक्षी दलों के पास संसाधन नहीं। यह गैर-बराबरी चुनावों को कैसे प्रभावित करती है – यही असल सवाल है जिसका जवाब अभी तक नहीं मिला।
मुख्य बातें (Key Points)
- राहुल गांधी ने संसद में अमित शाह को वोट चोरी पर खुली डिबेट का चैलेंज दिया, लेकिन गृह मंत्री ने स्वीकार नहीं किया।
- 45 दिन बाद सीसीटीवी फुटेज नष्ट करने का नियम बनाया गया, जिससे बाद में उठने वाले सवालों के सबूत मिटाए जा सकते हैं।
- बीजेपी के बैंक खाते में 10,107 करोड़ हैं जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 135 करोड़ – अनुपात 75:1 का है।
- चुनाव आयुक्तों को इम्यूनिटी दी गई जो भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं दी गई थी।






