Bahujan Samaj Party (BSP) में बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया है। पार्टी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने अपने भतीजे आकाश आनंद (Aakash Anand) को पार्टी से बाहर कर दिया है। पहले उन्हें राष्ट्रीय संयोजक (National Coordinator) पद से हटाया गया और अब पार्टी से पूरी तरह निष्कासित कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक, आकाश आनंद पर आरोप था कि वह सिर्फ एक गुट को प्रमोट कर रहे थे, जिससे पार्टी में गुटबाजी बढ़ रही थी। लेकिन यह फैसला खुद बसपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
BSP में लीडरशिप को लेकर पहले भी भ्रम की स्थिति रही है। कभी सतीश चंद्र मिश्रा (Satish Chandra Mishra) को आगे बढ़ाया जाता है, तो कभी उन्हें बैकफुट पर कर दिया जाता है। लोकसभा चुनाव से पहले आकाश आनंद को आक्रामक राजनीति के लिए लाया गया था, लेकिन अब उन्हें बाहर कर दिया गया। इस तरह के फैसलों ने कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस और हताशा बढ़ा दी है।
BSP का लगातार कमजोर होता जनाधार
2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद से मायावती ने कई कद्दावर नेताओं को पार्टी से निकाला है, जिनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी (Nasimuddin Siddiqui), बाबू सिंह कुशवाहा (Babu Singh Kushwaha), स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya), आरके सिंह (R.K. Singh) जैसे नाम शामिल हैं। इससे BSP का सांगठनिक ढांचा कमजोर हुआ और पार्टी धीरे-धीरे हाशिए पर जाती दिख रही है।
2019 में जब BSP ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party – SP) के साथ गठबंधन किया था, तब उसे 10 सीटें मिली थीं, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 1 सीट पर सिमट गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी पूरी तरह सिफर (Zero) पर आ गई। BSP के कार्यकर्ता और नेता अब सपा और भाजपा की ओर शिफ्ट हो रहे हैं।
BSP की कमजोरी से सपा और भाजपा को फायदा
BSP का दलित वोट बैंक अब दो धड़ों में बंट चुका है। एक तरफ मायावती के फैसलों से निराश लोग समाजवादी पार्टी (SP) के पाले में जा रहे हैं, तो दूसरी ओर भाजपा ने भी दलित समुदाय को अपने साथ जोड़ने में कामयाबी हासिल की है। 2014, 2017 और 2019 में भाजपा को बसपा समर्थक समाज के बड़े हिस्से का समर्थन मिला था। 2022 में सपा को कुछ वोट मिले और 2024 में भी बसपा का दलित वोट बैंक सपा और भाजपा के बीच बंटा रहा।
चंद्रशेखर की एंट्री से नया सियासी समीकरण
BSP के इस कमजोर दौर में भीम आर्मी (Bhim Army) के संस्थापक और नगीना (Nagina) से सांसद चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। उन्होंने पश्चिम यूपी के साथ-साथ पूरे प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। उनके लगातार दौरों और आक्रामक राजनीति ने बसपा के बचे-खुचे जनाधार को भी प्रभावित किया है।
अब बड़ा सवाल यह है कि मायावती की कमजोरी का सबसे ज्यादा फायदा किसे मिलेगा?
- समाजवादी पार्टी (SP): दलितों के साथ OBC और मुस्लिम वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश
- भारतीय जनता पार्टी (BJP): दलितों को अपने हिंदुत्व और विकास मॉडल से जोड़ने की रणनीति
- चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad): BSP के कोर वोट बैंक को खुद की ओर खींचने की योजना
BSP की मौजूदा हालत देखकर कहा जा सकता है कि पार्टी का भविष्य अनिश्चित है। मायावती के नेतृत्व में बार-बार लिए गए कठोर फैसलों ने पार्टी को कमजोर किया है और अब सवाल यह है कि क्या 2024 के बाद बसपा भारतीय राजनीति में अपनी जगह बरकरार रख पाएगी या फिर यह पार्टी पूरी तरह हाशिए पर चली जाएगी?