WhatsApp Sim Binding News देश में मैसेजिंग ऐप्स की दुनिया एक बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुजरने वाली है। सुबह उठते ही जिस व्हाट्सएप (WhatsApp) या टेलीग्राम (Telegram) पर आपकी उंगलियां दौड़ने लगती हैं, अब उन्हें चलाने का तरीका पूरी तरह बदलने वाला है। केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सिर्फ इंटरनेट होना ही काफी नहीं होगा, बल्कि अब आपकी जेब में ‘एक्टिव सिम कार्ड’ होना सबसे जरूरी शर्त होगी।
दूरसंचार विभाग (DoT) ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मैसेजिंग ऐप्स के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं। यह फैसला उन करोड़ों यूजर्स के लिए एक बड़े झटके जैसा है जो अब तक बिना सिम के वाई-फाई के जरिए इन ऐप्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते थे।
‘बिना सिम के बंद हो जाएंगे ऐप्स’
सरकार ने व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल, स्नैपचैट, शेयरचैट, जियोचैट, अरात्ताई और जोश जैसी सेवाओं के लिए नई शर्तें लागू कर दी हैं। अब ये तमाम बड़े प्लेटफॉर्म्स आपके फोन में तभी चलेंगे जब उस डिवाइस में सक्रिय (Active) सिम कार्ड मौजूद हो।
आसान भाषा में कहें तो, अगर आपके फोन में इंटरनेट चल रहा है लेकिन सिम कार्ड बंद है या निकाल दिया गया है, तो ये ऐप भी काम करना बंद कर देंगे। दूरसंचार विभाग ने इसे ‘सिम बाइंडिंग’ (Sim Binding) का नाम दिया है और इसे सख्ती से लागू करने के आदेश दे दिए हैं।
‘क्या है सिम बाइंडिंग का गणित?’
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह सिम बाइंडिंग क्या बला है? दरअसल, सिम बाइंडिंग का मतलब है कि आपका मैसेजिंग ऐप हमेशा आपके मोबाइल नंबर और उसी डिवाइस से जुड़ा (Link) रहेगा जिसमें सिम लगी है।
इसे आप यूपीआई (UPI) ऐप्स जैसे गूगल पे (Google Pay) या फोनपे (PhonePe) की तरह समझ सकते हैं। जैसे बिना एक्टिव सिम के आप पैसे ट्रांसफर नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही अब चैट ऐप्स को भी हर सेकंड सिम से लिंक रहना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि यूजर का सिम किसी भी समय ऐप से अलग न हो।
‘कंपनियों को मिली 90 दिन की मोहलत’
इस नई व्यवस्था को लागू करने के लिए सरकार ने ऐप कंपनियों को तैयारी करने के लिए 90 दिन का समय दिया है। साथ ही, 120 दिनों के भीतर उन्हें सरकार के आदेश का पूर्ण पालन करना होगा और इसकी अनुपालन रिपोर्ट भी सौंपनी होगी।
यह निर्देश ‘टेलीकम्युनिकेशन साइबर सिक्योरिटी अमेंडमेंट रूल्स 2025’ के तहत लागू किए जा रहे हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि इंटरनेट बेस्ड चैट ऐप्स को टेलीकॉम नियमों जितनी सख्त निगरानी के दायरे में लाया गया है। सरकार ने इन ऐप्स को अब एक नई श्रेणी ‘टेलीकम्युनिकेशन आइडेंटिफायर यूजर एंटिटीज’ में रखा है।
‘वेब यूजर्स पर बड़ा असर: हर 6 घंटे में लॉग आउट’
सिर्फ मोबाइल ही नहीं, लैपटॉप और कंप्यूटर पर व्हाट्सएप वेब या टेलीग्राम वेब इस्तेमाल करने वालों के लिए भी नियम बदल गए हैं। अब आप लगातार कई दिनों तक अपना अकाउंट लॉग इन नहीं रख पाएंगे।
सुरक्षा के लिहाज से अब आपका वेब अकाउंट हर 6 घंटे में ऑटो लॉग आउट (Auto Log out) हो जाएगा। दोबारा लॉग इन करने के लिए आपको फिर से क्यूआर कोड (QR Code) स्कैन करना अनिवार्य होगा। इसका मुख्य उद्देश्य दूरदराज से चलाई जा रही फ्रॉड आईडीज को तुरंत रोकना है, ताकि कोई आपके अकाउंट का गलत इस्तेमाल न कर सके।
‘क्यों पड़ी इन सख्त नियमों की जरूरत?’
सीओएआई (COAI) यानी सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने पहले ही चेताया था कि मैसेजिंग ऐप्स का सिम से स्वतंत्र रूप से काम करना सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
अक्सर देखा गया है कि साइबर अपराधी, खासकर विदेशों से संचालित गिरोह, सिम बंद होने या बदलने के बाद भी पुराने सिम से बने व्हाट्सएप अकाउंट के जरिए धोखाधड़ी जारी रखते हैं। ऐसे में पुलिस के लिए लोकेशन या कॉल रिकॉर्ड से अपराधियों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है। अनिवार्य सिम बाइंडिंग से फोन नंबर और डिवाइस के बीच एक भरोसेमंद लिंक बनेगा, जिससे स्पैम कॉल और वित्तीय धोखाधड़ी पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
‘क्या है जानकारों की राय?’
इस बदलाव पर विशेषज्ञों की राय मिली-जुली है। कुछ साइबर एक्सपर्ट्स इसे सुरक्षा की दिशा में एक जरूरी और ठोस कदम मान रहे हैं। उनका मानना है कि भारत में मोबाइल नंबर ही सबसे मजबूत डिजिटल पहचान है।
वहीं, कुछ का कहना है कि अपराधी नकली दस्तावेजों पर आसानी से नए सिम हासिल कर लेते हैं, इसलिए इसका असर सीमित हो सकता है। आम यूजर्स के लिए परेशानी यह होगी कि अब एक से ज्यादा डिवाइस पर स्वतंत्र रूप से ऐप चलाने की आजादी खत्म हो जाएगी।
मुख्य बातें (Key Points)
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व्हाट्सएप, टेलीग्राम और अन्य मैसेजिंग ऐप्स अब बिना एक्टिव सिम कार्ड के फोन में काम नहीं करेंगे।
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सरकार ने ‘सिम बाइंडिंग’ अनिवार्य कर दी है, जिसे लागू करने के लिए कंपनियों को 120 दिन का समय मिला है।
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व्हाट्सएप वेब और टेलीग्राम वेब अब हर 6 घंटे में ऑटो लॉग आउट हो जाएंगे, दोबारा स्कैन करना जरूरी होगा।
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यह कदम साइबर फ्रॉड रोकने और यूजर की पहचान को डिवाइस के साथ पुख्ता तौर पर जोड़ने के लिए उठाया गया है।






