हर बुराई का इलाज हमारे पास नहीं है…सुप्रीम कोर्ट ने ‘अंधविश्वास खत्म’….

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नई दिल्ली, 03 अगस्त (The News Air): कोई भी मुद्दा हो, किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो। कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का हो या व्यवस्थापिका के, ये एक ट्रेंड सा चल पड़ा है कि पीआईएल के नाम पर सीधे सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा दी जा रही है। कई बार इस तरह के पीआईएल में पब्लिक का इंट्रेस्ट नहीं बल्कि पब्लिसिटी स्टंट का पुट ज्यादा होता है।

सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर ऐसी पीआईएल डालने वालों पर जुर्माना या कड़ी फटकार लगाता है। अब एक ताजा मामला देख लीजिए। अंधविश्वास खत्म करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर दी गई। शीर्ष अदालत ने ये कहते हुए कि उसके पास हर मर्ज की दवा नहीं है, याचिका को स्वीकर करने से इनकार कर दिया जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उसे वापस ले ली।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में सरकार को अंधविश्वासों को खत्म करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। जजों ने कहा कि लोगों में वैज्ञानिक सोच कैसे विकसित की जाए, यह अदालत तय नहीं कर सकती।

यह जनहित याचिका (PIL) चर्चित वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी। उनका कहना था कि हर साल अंधविश्वास के कारण सैकड़ों लोगों की जान जाती है। उन्होंने अदालत से गुजारिश की कि सरकारों को लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया जाए।

मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अदालत के आदेश से लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हो सकती। बेंच ने कहा, ‘हम यह निर्देश नहीं दे सकते कि स्कूलों में छात्रों को क्या पढ़ाया जाए। यह सरकार के शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों के नीतिगत क्षेत्र में आता है।’ CJI ने कहा, ‘छात्र पहले से ही पढ़ाई के बहुत विस्तृत पाठ्यक्रमों के बोझ तले दबे हुए हैं। हम न्यायिक आदेश से उसमें इजाफा नहीं कर सकते।’

जब याचिकाकर्ता ने कहा कि यह सामाजिक सुधारों के लिए एक वास्तविक जनहित याचिका है, तो CJI ने कहा, ‘संवैधानिक अदालतों में जनहित याचिका दायर करने से कोई समाज सुधारक नहीं बन जाता। आप अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को शिक्षित करने के लिए जमीनी स्तर पर काम कर सकते हैं।’ उपाध्याय द्वारा अदालत को मनाने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, जिसके बाद उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली।

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