Waqf Amendment Act 2025 : वक्फ संशोधन कानून 2025 (Waqf Amendment Act 2025) को लेकर देशभर में उबाल है। जहां एक ओर इस कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2025 से इस कानून को पूरे देश में लागू कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में केविएट (Caveat) दाखिल कर यह मांग की है कि इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई भी आदेश देने से पहले केंद्र की बात सुनी जाए।
केंद्र सरकार (Central Government) की यह कानूनी पहल ऐसे वक्त पर सामने आई है जब वक्फ कानून (Waqf Law) के खिलाफ कई संस्थाएं और राजनीतिक नेता सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में अब तक इस कानून के खिलाफ 10 से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। इनमें जमीअत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind), ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) और कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की याचिकाएं शामिल हैं। इन याचिकाओं में मुख्य रूप से वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिक वैधता (constitutional validity) को चुनौती दी गई है।
गौरतलब है कि यह कानून संसद में लंबी बहस (Parliamentary Debate) के बाद पारित हुआ था और 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने इसे मंजूरी दी थी। इसके महज तीन दिन बाद इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया, जिससे इस पर कानूनी और सामाजिक बहस तेज हो गई।
केविएट याचिका (Caveat Petition) का मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि अदालत कोई भी एकतरफा अंतरिम आदेश (Ex Parte Interim Order) न दे और फैसला लेने से पहले संबंधित पक्ष की दलीलें सुनी जाएं। केंद्र सरकार की यह अर्जी इसीलिए डाली गई है ताकि यदि सुप्रीम कोर्ट कोई रोक लगाने की सोच रहा हो तो पहले उसकी बात सुनी जाए।
पीटीआई (PTI) की रिपोर्ट के मुताबिक, इन याचिकाओं को 15 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट (Supreme Court Website) पर इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है। 7 अप्रैल को, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (Chief Justice Sanjiv Khanna) की अगुवाई वाली पीठ ने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) को भरोसा दिलाया था कि उनकी याचिका को जल्द ही लिस्ट किया जाएगा।
कुल मिलाकर, वक्फ संशोधन कानून 2025 पर एक बड़ी संवैधानिक बहस की नींव रखी जा चुकी है। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस कानून के भविष्य और देश में अल्पसंख्यक अधिकारों पर व्यापक प्रभाव डाल सकती है।