Vande Mataram Controversy को लेकर संसद का शीतकालीन सत्र पूरी तरह से सियासी अखाड़े में तब्दील हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास के पन्ने पलटते हुए कांग्रेस पर राष्ट्रगीत के साथ छेड़छाड़ करने का गंभीर आरोप लगाया, तो वहीं राहुल गांधी ने मीडिया के तीखे सवालों का महज चार शब्दों में जवाब देकर पूरे मामले से किनारा कर लिया। 150 साल पुराने इस गीत पर छिड़ी यह बहस अब सड़क से लेकर संसद तक गूंज रही है।
प्रधानमंत्री का वार और 1937 का इतिहास
संसद में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि इतिहास में राष्ट्रगीत के साथ नाइंसाफी की गई है। पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि 1937 के फैजाबाद सत्र में कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम’ के कुछ हिस्सों और पैराग्राफ को हटा दिया था। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद सदन का माहौल गरमा गया और यह मुद्दा तुरंत सियासी गलियारों की सबसे बड़ी सुर्खी बन गया।
राहुल गांधी का चार शब्दों में जवाब
जब यह विवाद गहराया, तो संसद पहुंचे राहुल गांधी को मीडिया ने घेर लिया। उनसे प्रधानमंत्री के आरोपों और वंदे मातरम विवाद पर प्रतिक्रिया मांगी गई। लेकिन राहुल गांधी ने इस पर लंबी चौड़ी बात करने के बजाय बहुत ही सधे हुए अंदाज में पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने मीडिया से सिर्फ इतना कहा, “प्रियंका का भाषण सुनो।” यह कहकर वे आगे बढ़ गए। उनका यह संक्षिप्त जवाब अब राजनीतिक चर्चा का विषय बना हुआ है।
टैगोर की सलाह और कांग्रेस की सफाई
प्रधानमंत्री के आरोपों पर कांग्रेस पार्टी ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। कांग्रेस ने पीएम के दावों को खारिज करते हुए कहा कि 1937 में जो भी फैसला लिया गया था, वह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह पर लिया गया था। पार्टी ने उलटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से माफी की मांग कर डाली है। कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी ने तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी का अपमान किया है, जिसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए।
संसद की मर्यादा और सियासी संग्राम
यह विवाद शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले ही सुगबुगाहट पैदा कर रहा था। राज्यसभा सचिवालय ने सभी सांसदों से अपील की थी कि वे सदन की मर्यादा बनाए रखने के लिए संसद के भीतर ‘वंदे मातरम’ और ‘जय हिंद’ जैसे नारों का इस्तेमाल न करें। इस पर भी कांग्रेस ने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को घेरा था और आरोप लगाया था कि सत्ता पक्ष राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर असहज है।
गुलामी की जंजीरों के खिलाफ आवाज
इस पूरे विवाद के बीच उस जज्बे को भी याद किया गया जो इस गीत से जुड़ा है। यह वही रचना है जिसने कभी गुलामी की जंजीरों को चुनौती दी थी और लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संघर्ष में एक सूत्र में पिरोया था। 19वीं सदी में जब ब्रिटिश हुकूमत ने सार्वजनिक संस्थानों में ‘गॉड सेव द क्वीन’ (God Save the Queen) गाना अनिवार्य कर दिया था, तब बंकिम चंद्र चटर्जी के मन में एक विद्रोह जागा था। उन्हें यह बात कचोट गई कि क्या अपनी ही मातृभूमि पर विदेशी सत्ता की प्रशंसा करनी होगी? इसी पीड़ा से ‘वंदे मातरम’ का जन्म हुआ, जो आज भी वही ऊर्जा और गर्व जगाता है।
क्या है पृष्ठभूमि
हाल ही में 7 नवंबर को राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। इसी उपलक्ष्य में संसद में एक खास चर्चा का आयोजन किया गया था। लेकिन यह चर्चा उत्सव के बजाय राजनीतिक आरोपों और प्रत्यारोपों में बदल गई। जहां एक तरफ इसके ऐतिहासिक महत्व पर बात होनी थी, वहां अब यह बहस छिड़ गई है कि क्या हटाए गए पैराग्राफ को वापस जोड़ा जाना चाहिए या नहीं।
मुख्य बातें (Key Points)
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पीएम मोदी ने कांग्रेस पर 1937 में वंदे मातरम के हिस्से हटाने का आरोप लगाया।
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राहुल गांधी ने सवाल पूछने पर कहा- “प्रियंका का भाषण सुनो।”
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कांग्रेस ने सफाई में रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह का हवाला दिया।
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7 नवंबर को वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ थी।






