देहरादून। उत्तराखंड UCC (Uniform Civil Code) लागू करने वाला भारत का पहला राज्य है। लोकसभा चुनाव के बीच देश में UCC पर चर्चा हो रही है। इसी मुद्दे पर एशियानेट न्यूजेबल के रिपोर्टर अनीश कुमार ने उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी भूषण ने खास बातचीत की। इस दौरान रितु खंडूरी ने बताया कि आज UCC क्यों जरूरी है।
UCC लाने की क्या जरूरत थी?
रितु खंडूरी भूषण: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तय किया था कि UCC समय की मांग है। हमारे देश में अनेक धर्म, जातियां और वर्ग हैं। सबसे कमजोर कड़ी हमेशा महिलाएं होती हैं। महिलाओं को ही सबसे अधिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। संपत्ति के अधिकार का मामला हो या तलाक, उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है। लिव-इन रिलेशनशिप में हो तब भी नतीजा भुगतना पड़ता है। इसलिए मुझे लगता है कि UCC महिलाओं को सशक्त बनाने का एक तरीका है। लंबे समय तक महिलाओं को वोट बैंक के रूप में देखा गया, लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी गई। पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम पुष्कर धामी ने उनकी आवाज सुनी। आजादी के 70 साल बाद महिलाओं को संपत्ति में अधिकार मिला है।
कुछ धर्म में आज भी जब लड़की का मासिक धर्म शुरू होता है उसे विवाह की उम्र माना जाता है। क्या आपको लगता है कि 21वीं सदी में यह सही बात है? मैं ऐसा नहीं सोचती। हम डार्क एज में नहीं रह सकते। इसलिए यूसीसी में इस तरह के प्रावधान कर हम न सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण कर रहे हैं, बल्कि समाज का भी सशक्तिकरण कर रहे हैं।
क्या कोई डेटा है, जिसके आधार पर आप बता सें कि इस कानून लाने की जरूरत थी?
रितु खंडूरी भूषण: मुझे यकीन है कि सरकार के पास डेटा हैं। हम समाज में देख सकते हैं कि महिलाओं को पीड़ा झेलनी पड़ रही है। तीन तलाक पर रोक लगाए जाने से सबसे अधिक खुशी महिलाओं को हुई। अगर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तय करते हैं कि USS जरूरी है तो यह फैसला आंकड़े और समाज की जरूरत के आधार पर लिया गया होगा।
विपक्षी नेताओं और अल्पसंख्यकों का आरोप है कि यह हिंदू कोड है, जिसे सभी पर थोपा गया है। आप इसे कैसे देखते हैं?
रितु खंडूरी भूषण: मैं ऐसा नहीं सोचती। सभी चीजों को राजनीति की नजर से देखना बंद करना चाहिए। यूसीसी बेहतरीन है। यह महिलाओं को सशक्त करता है। यह समाज को सशक्त करता है। उत्तराखंड देवभूमि है। हम यूसीसी लागू करने में सबसे आगे हैं। यह अंत नहीं है। अगर जरूरत महसूस हुई तो बदलाव किए जा सकते हैं।
UCC में प्रावधान है कि लिव-इन पार्टनर्स को अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना होगा। क्या आपको नहीं लगता कि यह लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है? यह उनकी निजता के अधिकार और पसंद की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।रितु खंडूरी भूषण: ये बातें दिल्ली में बोली गईं हैं। आपने देखा है कि महिलाओं को कितना कष्ट सहना पड़ता है। बच्चियों को बरगलाया जाता है। उन्हें घुमाया जाता है। बाद में नतीजे लड़कियों को भुगतने पड़ते हैं। अगर आपकी उम्र इतनी है कि आप तय कर सकें कि किस व्यक्ति के साथ लिव-इन में रहना है तो हमें कोई परेशानी नहीं है। आपको समाज को इसे बताना चाहिए, आप इसे क्यों छिपाना चाहते हैं। गांवों में जाकर दिखिए युवतियों के लिए यह कितना कठिन है। उन्हें कैसे घुमाया जाता है। लड़के उनके साथ रहते हैं, धर्म बदलवाते हैं, लिव-इन रिलेशनशिप में आ जाते हैं। बाद में लड़के भाग जाते हैं। उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।