Nobel Peace Prize को लेकर इन दिनों अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जबरदस्त बहस चल रही है। इस बार चर्चा में हैं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump), जिनके लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग इज़रायल (Israel) और पाकिस्तान (Pakistan) की ओर से की गई है। इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) ने खुद ट्रंप को नोबेल देने की सिफारिश की है, वहीं पाकिस्तान ने भी अपने आर्मी चीफ आसिम मुनीर (Asim Munir) के अमेरिका दौरे के बाद ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया है।
हालांकि इस मांग को लेकर विरोध भी सामने आ रहा है। स्वीडन (Sweden) के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ड्ट (Carl Bildt) ने इस कदम की आलोचना की है और इसे नेतन्याहू की “चापलूसी” करार दिया है। बिल्ड्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर लिखा कि नेतन्याहू ट्रंप को खुश करने के लिए नोबेल की सिफारिश कर रहे हैं।
अगर ट्रंप को यह पुरस्कार मिल जाता है, तो वह थिओडोर रूज़वेल्ट (Theodore Roosevelt), वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson), जिमी कार्टर (Jimmy Carter) और बराक ओबामा (Barack Obama) के बाद नोबेल जीतने वाले अमेरिका के पांचवें राष्ट्रपति होंगे।
यह पुरस्कार स्वीडिश उद्योगपति अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) की वसीयत के अनुसार दिया जाता है, जिनके नाम पर यह सम्मान स्थापित किया गया। नोबेल की वसीयत के अनुसार यह पुरस्कार उस व्यक्ति को मिलना चाहिए जिसने विश्व शांति, सैन्य तनाव को कम करने और अंतरराष्ट्रीय समझ को बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम कार्य किया हो।
नोबेल शांति पुरस्कार की प्रक्रिया क्या है?
नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन हर साल जनवरी के अंत तक किया जा सकता है, जबकि पुरस्कार की घोषणा अक्टूबर में होती है। इस साल नेतन्याहू और पाकिस्तान द्वारा किया गया नामांकन इसलिए मान्य नहीं माना जाएगा क्योंकि नामांकन की समयसीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है। साथ ही, कोई भी व्यक्ति स्वयं को नोबेल के लिए नामित नहीं कर सकता।
नामांकन करने के पात्रों में सरकारें, सांसद, राष्ट्राध्यक्ष, और समाजशास्त्र, इतिहास, कानून या दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर शामिल होते हैं। अंतिम निर्णय नॉर्वेजियन नोबेल समिति (Norwegian Nobel Committee) द्वारा लिया जाता है, जिसमें नॉर्वेजियन संसद (Norwegian Parliament) द्वारा नियुक्त पांच सदस्य शामिल होते हैं।
नोबेल विवादों से भी रहा है जुड़ा
नोबेल शांति पुरस्कार को कई बार विवादों में घिरा देखा गया है। 1973 में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) और वियतनामी नेता ले डक थो (Le Duc Tho) को यह पुरस्कार देने पर दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था। 1994 में जब यासिर अराफात (Yasser Arafat) को इज़राइल के दो नेताओं के साथ पुरस्कार दिया गया, तब भी एक सदस्य ने नाराज़गी में इस्तीफा दिया था।
बराक ओबामा को यह पुरस्कार राष्ट्रपति बनने के केवल कुछ महीनों के भीतर दे दिया गया था, जिससे कई आलोचनाएं हुईं। नोबेल समिति ने खुद स्वीकार किया है कि कुछ पुरस्कार “राजनीतिक संदेश” देने वाले रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलेगा या नहीं, यह अब 2026 में तय होगा। हालांकि यह बहस न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय राजनीति को गर्मा रही है, बल्कि नोबेल पुरस्कार की प्रक्रिया और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर रही है।